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लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में हार की जिम्मेदारी तो भाजपा में पॉवर की लड़ाई, देखिये रिपोर्ट

मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के क्लीनस्वीप की जिम्मेदारी पर तो भाजपा में पॉवर की राजनीति को लेकर घमासान जैसी स्थिति है। कांग्रेस में एक के बाद एक नेता चुनाव परिणामों की जिम्मेदारी पर प्रदेश नेतृत्व को घेर रहे हैं तो भाजपा में जीत के बाद कौन कितना ताकतवर है, उस पर नेताओं में शतरंज की तरह राजनीतिक चाल चली जा रही हैं। आपको मध्य प्रदेश की इस राजनीतिक चालबाजियों में किस नेता का क्या दांव चला जा रहा है, वही इस रिपोर्ट में बताने की कोशिश कर रहे हैं। पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र कैलासिया की रिपोर्ट।
लोकसभा परिणामों को आए दो सप्ताह का समय हो गया है और मोदी की तीसरी कैबिनेट में किसे क्या मिला, वह स्थिति भी साफ हो गई है। चुनाव परिणामों में मध्य प्रदेश से कांग्रेस के सफाये को लेकर प्रदेश के कांग्रेस नेतृत्व पर ऊपरी तौर पर कोई खास फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि नेतृत्व द्वारा प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में संगठन की जगह इंफ्रांस्ट्रक्चर पर जिस तरह से काम किया जा रहा है, वह बेफिक्र नेतृत्व की भांति नजर आ रहा है। संगठन के ढांचे में नेतृत्व परिवर्तन के छह महीने बाद भी कोई बदलाव नहीं हुआ है और जो बदलाव करने की कोशिश की गई उसे मौजूदा ताकतवर नेता बुलंदी के साथ नकारते हुए चुनौती दे चुके हैं। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने के बीच तक पार्टी प्रदेश मुख्यालय में संगठन की तरफ से प्रदेश से लेकर जिला-ब्लॉक तक को एक्टिव करने के लिए ठोस प्रयास की बजाय रंगरोगन को ज्यादा तव्वजोह दी गई।
कांग्रेस की हार में दलबदल के साथ केंद्रीयकृत व्यवस्था
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त हार की जिम्मेदारी तय करने में अभी तक हाईकमान ने कोई बयान नहीं दिया है जबकि प्रदेश नेतृत्व को चुनाव में संगठन को एक्टिव करने के लिए दलबदल करके जाने वालों को रोकने की कोशिश करना चाहिए थी। जो लोग पार्टी छोड़कर गए उनसे किसी ने एक बार भी चर्चा नहीं की बल्कि उनके जाने पर दशकों तक पार्टी से जुड़े रहने वाले उन नेताओं को कचरा तक कहा गया। चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों को मजबूत करने के लिए संगठनात्मक मदद के लिए नेताओं को जिम्मेदारी नहीं दी गई। जातीय समीकरण या संगठन पर पकड़ रखने वाले नेताओं को विभिन्न सीटों पर भेजने की रणनीति नहीं बनाई गई।
अब उठने लगे नेतृत्व पर सवाल
चुनाव परिणामों के दो सप्ताह बाद अब कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष व विधायक अजय सिंह ने जिस तरह 2013 में उनसे पार्टी की हार पर इस्तीफा मांगा गया था, इस बार भी यह होने की बात कही थी। उन्होंने एक तीर से कई नेताओं पर निशाना साधा जिसकी जद में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से कमलनाथ, जीतू पटवारी सभी आए हैं। अजय सिंह के बाद अब राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने भी चुनाव परिणामों के बाद प्रदेश नेतृत्व को जिम्मेदार बताते हुए बदलाव की बात कही है।
भाजपा में पॉवर पालिटिक्स
दूसरी तरफ भाजपा में लोकसभा चुनाव के सकारात्मक परिणामों के बाद अब पॉवर पालिटिक्स तेज हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा चुनाव में जिस तरह पार्टी की जीत के बाद भी एक किनारे किए गए थे, अब वापस पॉवर में लौटते नजर आ रहे हैं। उनके पॉवर आने की सुर्खियों की हवाओं से ही मध्य प्रदेश में भाजपा राजनीति में हलचल तेज हो गई। चौहान के मंत्री बनने के बाद पहली बार भोपाल आने पर उनके समर्थकों ने अपने स्तर पर जिस तरह स्वागत की तैयारियां की थीं जिन्हें देखकर विरोधियों के कान खड़े हो गए। पहले चौहान अकेले भोपाल आने के प्रोग्राम को फीका करने के लिए प्रदेश के सभी केंद्रीय मंत्रियों का कार्यक्रम आयोजित करने का ऐलान किया गया। मगर विरोधियों के प्रयासों को उस समय और कामयाबी के पंख लग गए जब एक शोक समाचार की वजह से शोरशराबे वाले प्रोग्राम को निरस्त करने का ऐलान हो गया।
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