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उज़्बेकिस्तान में कोकन अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प महोत्सव में बाग प्रिंट कला का लहराया
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उज़्बेकिस्तान में कोकन अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प महोत्सव में बाग प्रिंट कला का लहराया

भारत की अनमोल धरोहर और मध्य प्रदेश के धार जिले की शान बाग प्रिंट ने एक बार फिर
वैश्विक मंच पर अपनी चमक बिखेरी है। उज़्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर कोकन में 19 से
21 सितंबर तक आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प महोत्सव 2025 में बाग प्रिंट के युवा
शिल्पकार मोहम्मद खत्री ने अपनी अद्भुत कारीगरी से सबका मन मोह लिया। इस महोत्सव
में 70 देशों के 278 मास्टर कारीगरों ने भाग लिया, वहीं भारत से केवल 2 शिल्पकार आमंत्रित
हुए।
महोत्सव में विशेष आकर्षण का केंद्र बने मोहम्मद खत्री को उनकी बाग प्रिंट कला और परंपरा
के संरक्षण हेतु “मास्टर ऑफ द बेस्ट क्राफ्ट” के सम्मान से नवाजा गया। यह खिताब उन्हें
उज़्बेकिस्तान के फरगना रीजन के गवर्नर ख़ैरुल्लो बोज़ारोव ने प्रदान किया। विदेशी फैशन
डिजाइनर्स और कला समीक्षकों ने भी माना कि खत्री की बाग प्रिंट कला “विश्वस्तरीय फैशन
का भविष्य” है और इसे सस्टेनेबल टेक्सटाइल की दिशा में ऐतिहासिक कदम कहा।
यह पहला मौका नहीं है जब मोहम्मद खत्री ने भारत का नाम ऊँचा किया हो। वर्ष 2017 में
उन्हें बैंकॉक (थाईलैंड) में इंटरनेशनल फैशन डिजाइनर क्रिएशन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा
चुका है। वहीं मलेशिया के कुआलालम्पुर इंटरनेशनल क्राफ्ट्स फेस्टिवल में भी उन्होंने बाग
प्रिंट की अद्वितीय छाप छोड़ी थी। भारत में भी मोहम्मद खत्री निरंतर बाग प्रिंट की परंपरा
को आगे बढ़ा रहे हैं। देशभर में कई राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में उन्होंने अपनी कला से दर्शकों का
दिल जीता है।
मोहम्मद खत्री ने बाग प्रिंट की कारीगरी अपने दादा बाग प्रिंट के जनक शिल्प गुरु इस्माइल
सुलेमानजी खत्री, उनके पिता अब्दुल कादर खत्री एवं माता रशीदा बी खत्री से सीखी। उनके
पिता अब्दुल कादर खत्री भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित मास्टर कारीगर रहे हैं, जिन्हें
भारत सरकार का राष्ट्रीय पुरस्कार, युनेस्को एवं वर्ल्ड क्राफ्ट्स काउंसिल का “अवार्ड ऑफ
एक्सीलेंस”, और राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
अपनी सफलता पर मोहम्मद खत्री ने कहा –
इस सम्मान के पीछे मेरे पूर्वजों की मेहनत, मेरे परिवार की परंपरा और भारत की मिट्टी की
खुशबू है। बाग प्रिंट सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की पहचान है। इस कला को
मैं दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाना चाहता हूँ ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी परंपरा
और संस्कृति से जुड़ी रहें।
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