मध्य प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद दो महीने से पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं का सिलसिला थम नहीं रहा है। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी पार्टी छोड़ने वाले नेताओं को रोकने में अब तक नाकाम साबित हुए हैं तथा संगठन में काम करने वाले पदाधिकारियों के मूल्यांकन नहीं होने से नेताओं में नाराजगी धीरे-धीरे बढ़ रही है। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश कांग्रेस में विधानसभा चुनाव में हार के बाद नेताओं और कार्यकर्ताओं में जो निराशा का भाव आया था, उसे दूर करने का युवा नेतृत्व ने अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए हैं। यही कारण है कि पार्टी में कई दशकों तक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने वाले नेताओं को अपने काम का मूल्यांकन नहीं होने से निराशा बढ़ती जा रही है। मंगलवार को कांग्रेस के एक और पूर्व विधायक शशांक भार्गव ने पार्टी छोड़ने के साथ भाजपा को ज्वाइन कर लिया। उनके साथ विदिशा, नरसिंहपुर, नर्मदापुरम, रायसेन जिलों के कांग्रेस कमेटियों के कई पदाधिकारियों ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ली।
कुछ और पूर्व विधायकों के जाने की चर्चाएं
प्रदेश कांग्रेस संगठन में लगातार पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की चर्चाओं के बाद भी दूसरे नेताओं को पार्टी से नहीं जाने देने के लिए कोई ठोस रणनीति नजर नहीं आ रही है। अब तक जो भी नेता भाजपा में शामिल हुए हैं, उसके पहले अधिकांश नेताओं की चर्चाएं दो-तीन दिन पहले से शुरू हो गई थीं लेकिन उनसे पार्टी नहीं छोड़ने के लिए संगठन की तरफ से कोई ठोस पहल नहीं की गई। ऐसे में नेताओं ने सम्मान नहीं मिलने का कारण बताकर पार्टी छोड़ी और अब आने वाले दिनों में कुछ पूर्व विधायकों से कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ जाने की चर्चाएं तेज हो गई हैं।
पचौरी-कमलनाथ के कार्यकाल जैसे चल रहा संगठन
जीतू पटवारी प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद अब तक संगठन में अपनी टीम नहीं बना सके हैं और जिन लोगों के भरोसे वे संगठन चला रहे हैं, उनकी कार्यप्रणाली पूर्ववर्ती पीसीसी प्रमुखों के कार्यकालों जैसी ही है। एआईसीसी की नियुक्तियों पर सीधे पीसीसी से कार्रवाई करने की त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली से लेकर पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के समर्थकों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देने जैसे फैसलों पर जीतू पटवारी से सहमति के साथ आदेश किए जा रहे हैं।
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