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जल संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं वन्यजीव कॉरिडोर

प्रदेश के हिल्स स्टेशन पचमढ़ी में मध्य भारत में वन्य प्राणी प्रबंधन को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए वन्यजीव कॉरिडोर को विकसित करने के मुद्दे पर दो दिवसीय परिचर्चा पचमढ़ी में संपन्न हुई. यह पहला प्रयास है, जब सतपुड़ा-पेंच तथा सतपुड़ा-मेलघाट कॉरिडोर को अधिक प्रभावशाली बनाने पर चर्चा की गई. वन्यजीव कॉरिडोर क्षेत्र के लिए सामाजिक पहलुओं पर ध्यान रखते हुए वन्यजीव तथा वनों के संरक्षण के लिए संयुक्त योजना बनाने के लिए सहमति बनी. इसके प्रभावशाली प्रबंधन से जल संरक्षण को विशेष बल मिलेगा. हालांकि इसका प्रबंधन जटिल है किंतु इसके लिए वन कृषि तथा राजस्व समुचित संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा.
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति ने पहली बार सतपुड़ा टाइगर रिजर्व- मेलघाट टाइगर रिजर्व महाराष्ट्र और पेंच टाइगर रिजर्व मप्र- पेंच टाइगर रिजर्व महाराष्ट्र कॉरीडोर को विकसित और संरक्षित गन्ने के मुद्दे को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला पचमढ़ी में रखी गई. इस परिचर्चा में 13 गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों, 4 टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर, 8 वन मंडलों के अधिकारी और विषय-विशेषज्ञों ने अपने अपने विचार रखे. इसमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट्स के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी के डीन जगदीश कृष्णस्वामी भी शामिल थे.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट्स के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी के डीन कृष्णस्वामी कहते हैं कि वन्यजीव कॉरिडोर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए जल सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं. कृष्णस्वामी ने कहा कि जलवायु स्टॉक के खिलाफ एक बफर के रूप में कार्य कर सकते हैं. कृष्णस्वामी ने कहा कि बाघ और लुप्तप्राय प्रजातियों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वन्यजीव कॉरिडोर आवश्यक है. चूंकि कॉरिडोर जंगलों कृषि भूमि और राजस्व भूमि तक फैला है, इसलिए गैर सरकारी संगठनों, सरकारी एजेंसियों, स्थानीय लोगों और स्टॉक होल्डर के सहयोग के बिना कॉरिडोर संरक्षण एवं प्रबंधन जटिल है.
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के क्षेत्र निदेशक एल कृष्णमूर्ति कहते हैं कि कॉरिडोर की एक आम समझ रखने और वन्य जीवन और समुदायों की बेहतरी के लिए विकासात्मक गतिविधियों को सुव्यवस्थित करने पर चर्चा करने के लिए सभी हितधारकों को एक साथ लाने का यह पहला प्रयास है. सतपुड़ा-पेंच और सतपुड़ा-मेलघाट कॉरिडोर जंगलों और कृषि का एक मोज़ेक है, जिसमें गलियारों और सड़कों पर गांव और कस्बे हैं, जिनके बीच से रेलवे लाइन गुजरती है. कॉरिडोर संरक्षण, इसलिए, वन विभाग, अन्य सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और गलियारे में रहने वाले समुदायों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच मजबूत सहयोग की आवश्यकता है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के साथ काम करने वाली प्राची थत्ते कहती हैं कि एक प्रभावी कॉरिडोर संरक्षण योजना वन विभाग, समुदायों और अन्य जमींदारों को वन्य जीवन, भूमि, पानी और लोगों की आवश्यकताओं का ध्यान रखने वाले कई उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक साथ काम करने में मदद कर सकती है. वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट में संरक्षण अनुसंधान के प्रमुख आदित्य जोशी कहना था कि यह कार्यशाला इस परिदृश्य में संरक्षण प्राथमिकताओं को स्थापित करने और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग के माध्यम से सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी. एनटीसीए के सहायक महानिदेशक हेमंत कामदी ने टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर की सराहना करते हुए कहा है कि ऐसी कार्यशाला आयोजित करना बहुत आवश्यक है.
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