महाराणा प्रताप जयंती पर सामान्य अवकाश, सोमवार को प्राकट्य दिवस मनेगा

मध्य प्रदेश सरकार ने महाराणा प्रताप जयंती के मौके पर सोमवार को सामान्य अवकाश की घोषणा की है। इस मौके पर भोपाल के लालपरेड मैदान के मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में महाराणा प्रताप और महाराजा छत्रसाल की जयंती को शूरवीरों के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाएगा और महारानी पद्मावती की प्रतिमा का अनावरण भी किया जाएगा।

मध्य प्रदेश शासन ने महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर पूर्व में 22 मई को ऐच्छिक अवकाश घोषित किया था लेकिन इसे रविवार को संशोधित आदेश जारी कर महाराणा प्रताप और महाराजा छत्रसाल जयंती के मौके पर अब 22 मई को सामान्य अवकाश घोषित कर दिया गया है। इस दिन भोपाल में महाराणा प्रताप और महाराजा छत्रसाल का प्राकट्य दिवस भी मनाया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और महाराणा प्रताप के वंशज महाराज कुमार डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ “शूरवीरों के प्राकट्य दिवस” में शामिल होंगे। समारोह दोपहर 12 बजे मोतीलाल नेहरू स्टेडियम, लाल परेड ग्राउंड भोपाल में होगा।
महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप का नाम लेते ही हमारे सामने एक देश प्रेमी, स्वतंत्रता का उपासक, स्वाभिमानी, वीरता के ओज से भरे मुँह, लम्बी मूंछों वाले, हाथों में भाला लिये चेतक सवार अश्वारोही का चित्र उभरकर आता है। हर भारतीय उन्हें श्रद्धा का पात्र और जन्म-भूमि के स्वतंत्रता के संघर्ष का प्रतीक मानता है। महाराणा प्रताप का जन्म सूर्यवंशी राम के वंश के क्षत्रिय वर्ग की गहलोत वंशावली में सिसोदिया कुल में उदयपुर के राणा उदय सिंह के घर चित्तौड़ दुर्ग में सन् 1540 को हुआ। योद्धा के रूप में राणा पदवी इस वंश को सम्मान में दी गई थी।
महाराजा छत्रसाल
मध्यकालीन राजपूत योद्धा महाराजा छत्रसाल बुन्देला (4 मई 1649 – 20 दिसम्बर 1731) भारत के मध्ययुग के एक महान प्रतापी योद्धा थे। उन्होंने मुगल शासक औरंगज़ेब को युद्ध में पराजित करके बुन्देलखण्ड में अपना स्वतंत्र हिंदू राज्य स्थापित किया और ‘महाराजा’ की पदवी प्राप्त की। महाराज छत्रसाल जू देव बुंदेला का जन्म बुंदेला क्षत्रिय पर्याय राजपूत परिवार में हुआ था और वे ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह के वंशज थे। वे अपने समय के महान वीर, संगठक, कुशल और प्रतापी राजा थे। उनका जीवन मुगलों की सत्ता के खिलाफ संघर्ष और बुन्देलखण्ड की स्वतन्त्रता स्थापित करने के लिए जूझते हुए निकला। वे अपने जीवन के अन्तिम समय तक आक्रमणों से जूझते रहे।
रानी पद्मावती
भारत की पावन धरती में समय-समय पर ऐसी वीरांगनाओं ने जन्म लिया है, जिनकी देश-भक्ति और पराक्रम आज भी हमारे लिए एक प्रेरणा-स्रोत है। ऐसी वीरांगना महारानी पद्मावती का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। रानी पद्मावती के त्याग, बलिदान और पराक्रम को देशवासी कभी नहीं भुला सकते। जिस हिम्मत और वीरता के साथ महारानी पद्मावती भारत देश के लिए शौर्य की एक मिसाल बनी, वह अद्भुत है।

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