विधानसभा चुनाव 2023ः बुंदेलखंड में कांग्रेस को मेहनत की जरूरत, भाजपा को गढ़ बचाने की चुनौती

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2023 में ग्वालियर-चंबल की 34 सीटें जिस तरह अब तक कांग्रेस के लिए मजबूत गढ़ रहीं थीं, वैसे ही बुंदेलखंड की 26 सीटों पर भाजपा चुनाव दर चुनाव मजबूत होती गई है। हालांकि इस गढ़ में कांग्रेस ने 2018 में कुछ सेंधमारी की थी लेकिन उपचुनावों के बाद उसकी स्थिति बीते चुनावों की तरह एक तिहाई सीटों के आसपास सिमटकर रह गई। इस बार कांग्रेस के लिए बुंदेलखंड स्थानीय नेताओं की आपसी खींचतान और कुछ नेताओं के दलबदल कर भाजपा में चले जाने से कुछ ज्यादा चुनौतीभरी परिस्थितियां हैं। आईए पढ़िये बुंदेलखंड का चुनावी गणित इस बार क्या होने की संभावना है।

बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश के छह जिले सागर, पन्ना, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़ व निवाड़ी आते हैं जिनमें 26 विधानसभा सीटें हैं। 2018 में चुनाव के बाद यहां भाजपा के पास 14 तो कांग्रेस के पास 10 और एक-एक सीटें बसपा व सपा के पास थी लेकिन चार उप चुनाव के बाद भाजपा की सीटें 17 और कांग्रेस के पास सात सीटें रह गईं।
सागर में कांग्रेस पर भाजपा भारी
बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा सीटें सागर जिले में हैं जहां आठ विधानसभा क्षेत्र हैं और यहीं इस समय कांग्रेस सबसे कमजोर स्थिति में खड़ी नजर आती है क्योंकि नगरीय प्रशासन चुनावों में इस क्षेत्र में कई निकाय निर्विरोध चुने गए है। यहां कांग्रेस के प्रत्याशियों को लेकर ज्यादा समस्या रही और विधानसभा चुनाव मजबूत प्रत्याशी मिलने को लेकर अभी से सवाल खड़े हो रहे हैं। टीकमगढ़ में भी प्रदेश कांग्रेस बेवजह जिला संगठन में बदलाव पर उतारू दिखाई दे रहा है जबकि वहां अब तक पार्टी के पक्ष में माहौल दिखाई दे रहा है। जिले की जतारा सीट पर भाजपा के मौजूदा विधायक के खिलाफ माहौल का लाभ कांग्रेस को मिल सकताहै तो टीकमगढ़ सीट पर भाजपा विधायक राकेश गिरी की छवि कागजों में अच्छी है। मगर कांग्रेस प्रत्याशी चयन में भोपाल की जगह जिलास्तर की रिपोर्ट पर फैसला करे तो भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।
छतरपुर में अब तीनों विधायक जीतने वाले प्रत्याशी नहीं रहे
दूसरा जिला छतरपुर है जहां पांच विधानसभा सीटें हैं। इस जिले में कांग्रेस संगठन में खींचतान है और पार्टी के तीन विधायकों के जीतने की संभावना कम नजर आती है। इनमें छतरपुर के आलोक चतुर्वेदी, राजनगर के कुंवर विक्रम सिंह, महाराजपुर के नीरज दीक्षित की जमीनी स्थिति ठीक नहीं है। चतुर्वेदी की जिला संगठन से पटरी नहीं बैठ रही है तो उनके खिलाफ कभी उनका चुनाव संचालन करने वाले कांग्रेस नेता दावेदारी कर रहे हैं। राजनगर के कुंवर विक्रम सिंह पिछली बार सपा-बसपा के 36 फीसदी वोट ले लेने के बाद बमुश्किल 800 वोट से जीत हासिल कर पाए थे और इस बार यहां शंकरप्रताप सिंह चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं। नीरज दीक्षित की क्षेत्र में छवि पांच साल में बहुत धुंधला गई है।
पन्ना में कांग्रेस के भीतर संकट
पन्ना जिले में कांग्रेस संगठन संकट में है क्योंकि कुछ समय में यहां जिला पदाधिकारियों व प्रभारी के खिलाफ नारेबाजी और हंगामे हो चुका है। एआईसीसी के प्रभारी सचिव भी यहां दौरा कर अपनी रिपोर्ट पीसीसी चीफ को सौंप चुके हैं। जिले की पवई सीट से दावेदारी करने वाले दो नेताओं मुकेश नायक व राजा पटैरिया बाहरी करार दिए गए हैं। पन्ना जिले में कांग्रेस संगठन की स्थिति का फायदा भाजपा को अभी तक मिलता दिखाई दे रहा है। दमोह जिले में पार्टी को उपचुनाव में पूर्व मंत्री जयंत मलैया परिवार के असंतुष्ट होने का लाभ मिला था लेकिन आज परिस्थितियां वैसी नहीं रही हैं। जिले में मलैया परिवार फिर भाजपा के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है जिसका नुकसान अब कांग्रेस को होगा।

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