MP में अफसरों की राजनीतिक पिच पर बल्लेबाजी, सिविल सर्विस के बाद जनसेवा में कामयाबी का प्रतिशत कम

सिविल सर्विस का मतलब असैनिक सेवा यानी सेना में नहीं आते। सिविल सर्विस के बाद राजनीति के माध्यम से जनसेवा में उतरने वाले मध्य प्रदेश में दर्जनों उदाहरण हैं लेकिन इनमें कामयाबी के शिखर तक पहुंचने वालों की संख्या बहुत कम रही है। अजीत जोगी से शुरू होकर यह सिलसिला हाल ही में राजनीति में उतरने का ऐलान कर चुके होमगार्ड डीजी पवन जैन तक जारी है। इस बीच कई नौकरशाह व अन्य सरकारी नौकरी करने वाले राजनीति के मैदान में उतर चुके हैं। पेश है इन लोकसेवक-जनसेवकों पर आधारित एक रिपोर्ट।

मध्य प्रदेश की राजनीति में प्रशासनिक और एकादमिक कार्य करने के बाद उतरने वालों का सिलसिला कई दशकों से चला आ रहा है। अविभाजित मध्य प्रदेश में उस समय के तेजतर्रार आईएएस अधिकारी अजीत जोगी राजनीति में उतरे थे और कुछ साल बाद ही छत्तीसगढ़ राज्य बन गया तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी भी मिल गई थी। उसी दौर में मध्य प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी रहे सुशीलचंद्र वर्मा ने भाजपा का दामन थामा और लगातार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर भोपाल लोकसभा सीट को भाजपा का अभेद्य किला बना दिया जो आज भी कांग्रेस के लिए सबसे कमजोर सीट हो चुकी है।

जनसंपर्क विभाग के मुखिया उतरे राजनीति में
राजनीति में उतरने वाले प्रशासनिक अफसरों में कुछ नाम सरकार की इमेज को निखारने वाले विभाग जनसंपर्क के मुखिया के भी हैं। अपर मुख्य सचिव स्तर से रिटायर होने वाली अजीता बाजपेयी पांडे हो या भागीरथ प्रसाद, दोनों ही राजनीति के मैदान में उतर चुके हैं। भागीरथ प्रसाद तो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए हैं और वहां से लोकसभा सदस्य भी रहे और अजीता बाजपेयी पांडे, मध्य प्रदेश कांग्रेस की मुख्य रणनीतिकारों में शामिल हैं। स्व. होशियार सिंह भी रिटायरमेंट के बाद से ही कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रहे तो पुलिस के पूर्व अधिकारी रहे प्रवीण कक्कड़ आज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के मुख्य सलाहकार की भूमिका में हैं।

अपराधियों में अपना खौफ जमाने के बाद राजनीति ये उतरे
अपराधियों में किसी समय अपने नाम का खौफ जमाने वाले पूर्व आईपीएस पन्नालाल, रुस्तम सिंह भी राजनीति के मैदान हैं। रुस्तम सिंह तो न केवल विधायक बल्कि मंत्री भी रह चुके हैं तो पन्नालाल को भाजपा ने एक बार चुनाव में प्रत्याशी बनाया था। इसी तरह पूर्व आईपीएस एचएम जोशी भी राजनीति में उतरे थे लेकिन किसी राजनीतिक दल से नहीं बल्कि अपने बल पर चुनाव लड़े थे। राजनेता के परिवार से पुलिस सेवा में आए एक पूर्व पुलिस अधिकारी महेंद्र जोशी भी वीआरएस लेकर अपने परिवार की राजनीतिक विचारधारा वाली कांग्रेस पार्टी में पहुंचे हैं और अपने पैतृक नगर शुजालपुर से चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं, पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच के पति आईएएस अधिकारी रहे एमएन बुच भी बैतूल जिले से चुनाव लड़े थे लेकिन इत्तफाक से वे हार गए थे।

पर्दे के पीछे रहकर राजनीति में
कई प्रशासनिक और अन्य अधिकारी अपने आपको पर्दे के पीछे रखकर राजनीति से जुड़े हैं जिनमें पूर्व आईएएस अधिकारी एसएस उप्पल, वीके बाथम, शशि कर्नावट, एसकेएस तिवारी, आजाद सिंह डबास और डीएस राय के नाम शामिल हैं। उप्पल भाजपा में चुनाव आयोग और विधि से जुड़े मसलों को देखते हैं तो बाथम कांग्रेस में वचन पत्र बनाने वाली समिति के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। शशि कर्नावट पिछले चुनाव में कांग्रेस में काफी सक्रिय थीं लेकिन इन दिनों नदारत हैं। तिवारी अभी कांग्रेस में एक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं तो डबास कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद आम आदमी पार्टी में चले गए थे। डीएस राय काफी लंबे समय कांग्रेस से जुड़े हैं।

मौजूदा राजनीति में ये नाम चर्चा में
आजकल की राजनीति में जो सरकारी नौकर चर्चा में हैं, उनमें करीब आधा दर्जन नाम हैं। अभी होमगार्ड डीजी पवन जैन का नाम सबसे ऊपर हैं जिन्होंने अपने रिटायरमेंट के पहले सरकारी नौकरी छोड़ने का मन बना लिया है और राजस्थान से वे चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। वहीं, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर रहे वेदप्रकाश शर्मा भी चुनावी राजनीति में उतरने को तैयार हैं तो अभी डिप्टी कलेक्टर को छोड़ने वाली निशा बांगरे बैतूल जिले में चुनाव लड़ने की तैयार कर रही हैं। वहीं, 2019 में रतलाम-झाबुआ से लोकसभा चुनाव जीत चुके गुमान सिंह डामोर और खंडवा से लोकसभा उपचुनाव जीते सुमेर सिंह सोलंकी भी सरकारी सेवा में रह चुके हैं।

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