जंगल बचाने वाले अफसर को हटाए जाने से वनकर्मी खिलाफत में उतरे, वापसी का आंदोलन

बुरहानपुर के जंगलों पर अतिक्रमणकारियों के कब्जे को लेकर जिले के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से अड़कर कार्रवाई कराने वाले आईएफएस अधिकारी अनुपम शर्मा को हटाए जाने के बाद अब जिले के वन कर्मचारियों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। वनकर्मी डीएफओ को हटाए जाने से बेहद खफा हैं और उन्होंने जंगल बचाने वाले अपने अधिकारी की वापसी के लिए सरकार के तबादला आदेश के खिलाफ बागी तेवर अपना लिए हैं। जानिये इन वनकर्मियों ने अपने अफसर के लिए जो रास्ता अपनाया।

बुरहानपुर जिले के जंगल को काटकर उस पर अतिक्रमण करने वालों ने वन विभाग की चौकी और पुलिस थाने पर हमले की घटनाएं की और अपने साथियों को छुड़ाया था। इन घटनाओं के बाद भी डीएफओ अनुपम शर्मा ने अपने वन विभाग के कर्मचारियों का हौंसला बनाए रखने के लिए एक कप्तान की तरह अगुवाई की। पुलिस से फोर्स मांगी और कलेक्टर से सहायता, मगर जब अपेक्षित सहयोग नहीं मिला तो उन्होंने सख्त भाषा में जंगल को बचाने के लिए मदद की गुहार लगाई। उनकी इस कार्यप्रणाली से जंगल पर अतिक्रमण कराने वालों पर दबाव बना और करोड़ों रुपए कीमत की लकड़ी जब्त की गई।
डीएफओ की कार्यप्रणाली का असर तबादला
डीएफओ अनुपम शर्मा के जंगल को बचाने के लिए साम-दाम-दंड भेद की रणनीति के तहत काम करने से न केवल जंगल के अतिक्रमणकारियों बल्कि अपने साथी प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के निशाने पर वे आ गए। जिस तरह के आरोप लगते रहे थे कि अतिक्रमणकारियों को राजनीतिक संरक्षण है और वह डीएफओ शर्मा के तबादले से काफी हद तक सही भी साबित हो गए। डीएफओ अनुपम शर्मा का पदस्थापना के कुछ महीने में तबादला हो गया जिससे वन कर्मचारियों का भी मनोबल गिरा। नतीजा वनकर्मी अब खुलकर शर्मा के तबादले की खिलाफत करने में खड़े हो गए हैं।
वनकर्मियों के मनोबल पर चोट पहुंचाने वाली घटनाएं
उल्लेखनीय है कि विगत दिनों विदिशा जिले के लटेरी में सशत्र लुटेरों द्वारा गाड़ियों से होने वाली जंगल डकैतियाँ रोकने के लिए जंगल डकैतों पर सख़्ती करने और मुठभेड़ में आत्मरक्षार्थ गोली चलाने से एक डकैत की मौत होने पर विदिशा DFO, राजवीर सिंह को भी हटा दिया थाI साथ ही मृतक को 5 लाख मुआवजा और वन कर्मियों पर मुकदमा किया गया था I जिसके विरोध में प्रदेश के वन कर्मियों ने सरकारी बंदूके थानो में जमा करा दीं थी, जो आज भी जमा हैं I
वन कर्मियों का कहना है कि “सरकार तय करले, जंगल बचाना है या नहीं?” वनकर्मियों का सवाल है कि “वन की रक्षा हम करें, हमारी रक्षा कौन करे?”

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