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रेलवे कोच-अंग्रेजों की बिल्डिंग की कटनी की कलर फैक्टरी जमीन विवादः 21 साल कोर्ट में चला, हाउसिंग बोर्ड जीता

कटनी शहर में मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड (अब मध्य प्रदेश गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल) ने अंग्रेजों के जमाने में स्थापित कलर की रेड ऑक्साइड फैक्टरी की जमीन कोलकाता के एक मालिक से खरीदी लेकिन लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना में दो दशक पहले एफआईआर दर्ज करा दी गई। 21 साल कोर्ट में मामला चला और हाउसिंग बोर्ड को आर्थिक हानि पहुंचाने के आरोपों को अदालत ने गलत पाया और सौदे से हाउसिंग बोर्ड को करीब 20 करोड़ रुपए का फायदा होने के तथ्य पाते हुए आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया। अंग्रेजों के जमाने की कलर फैक्टरी कब स्थापित हुई और जमीन का विवाद कब से शुरू हुआ, कब-कब क्या हुआ, जानिये इस रिपोर्ट में।
अंग्रेजों के समय इस्टर्न रेलवे कंपनी में असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में ब्रायवेंट जार्ज अल्फर्ट आया था। उसने 1860 में कटनी में रेड ऑक्साइड से रंग बनाने की फैक्टरी शुरू की थी। वह सीहोरा स्थित रेड ऑक्साइड माइन्स से कच्चा माल लाकर कटनी की फैक्टरी में रंग बनाता था। उस रंग का रेलवे के कोच, मालगाड़ी के डिब्बों और अंग्रेजों की बिल्डिंग के पुताई में इस्तेमाल किया जाता था। यह रंग निर्यात भी होता था। मगर 1945 में फैक्टरी के अंग्रेज अपने देश चले गए और उन्होंने कोलकाता के कलर-वार्निस के बड़े व्यापारी बीड ब्रदर्स को फैक्टरी बेच दी। बीड ब्रदर्स ने इसे चलाया लेकिन करीब 1980 में सीहोरा का वह क्षेत्र वन भूमि घोषित हो गया जहां से फैक्टरी का कच्चा माल आता था तो फैक्टरी भी धीरे-धीरे बंद हो गई। इसकी 200 एकड़ जमीन थी तो इस पर स्थानीय लोगों की नजर पड़ी। कोर्ट केस लगाए गए जिससे बीड ब्रदर्स ने फैक्टरी के मालिकाना हक शेयर के साथ स्थानीय बीडी गौतम को बेच दिए। इसके बाद इस जमीन का विवाद शुरू हुआ।
हाउसिंग बोर्ड ने जमीन खरीदने का विज्ञापन जारी किया
बीडी गौतम के जमीन का मालिकाना हक लेने के बाद हाउसिंग बोर्ड ने कटनी में जमीन खरीदने का विज्ञापन जारी किया तो गौतम ने उसमें भाग लिया। 72 एकड़ जमीन हाउसिंग बोर्ड को बेचने के लिए वह तैयार हो गया लेकिन इस बीच कटनी के एक स्थानीय खनिज व्यापारी आनंद गोयनका ने आपत्ति लगा दी। उनका कहना था कि जमीन उसकी है और उसने खरीदी है। मगर हाउसिंग बोर्ड ने जमीन खरीदने के लिए संचालक मंडल की बैठक की और उसमें जमीन के बारे में सभी रिपोर्ट्स के आधार पर सौदा करने का फैसला किया।
हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त में एफआईआर
हाउसिंग बोर्ड के जमीन के सौदा करने के बाद 2002 में अरुण अग्रवाल ने लोकायुक्त में शिकायत की और आरोप लगाया कि सौदे से अधिकारियों ने हाउसिंग बोर्ड को आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। इसके बाद लोकायुक्त की विशेष पुलिस स्थापना ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की। यह मामला 21 साल चला और हाल ही में इसमें कटनी की भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विशेष कोर्ट की न्यायाधीश पल्लवी द्विवेदी ने तत्कालीन कलेक्टर शहजाद खान और हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन भू-अर्जन अधिकारी श्रीराम मेश्राम को दोषमुक्त करार दिया। उन्होंने अपने आदेश में कलेक्टर गाइड लाइन में जमीन की कीमत के हिसाब से कटनी शहर में गौतम से हाउसिंग बोर्ड द्वारा खरीदी गई जमीन का मूल्य ज्यादा पाया और इससे हाउसिंग बोर्ड को किसी भी रह की आर्थिक हानि होना प्रमाणित नहीं पाया।
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