कमलनाथ के गढ़ में शाह की रैली, लोकसभा के बहाने विधानसभा चुनाव का बिगुल बजाएंगे

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भाजपा संगठन और नेतृत्व 2018 विधानसभा चुनाव में सरकार नहीं बना पाने के बाद से ही सक्रिय है और यही वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का फोकस मध्य प्रदेश बना हुआ है। 19 मार्च को अमित शाह छिंदवाड़ा में रैली करने जा रहे हैं जहां भाजपा को लोकसभा में एकमात्र सीट पर हार मिली थी। शाह की रैली को हार हुई भाजपा की सीटों पर रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है लेकिन इस रैली से भाजपा के विधानसभा चुनाव का बिगुल की गूंज भी सुनाई दे सकती है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ का गृह नगर छिंदवाड़ा है जिसे वे मुख्यमंत्री पद पर थे तब और आज जब वे सीएम नहीं हैं तो भी याद रखते हैं। छिंदवाड़ा से 40 साल का राजनीतिक सफर पूरा करने वाले कमलनाथ को अपने गढ़ में एक बार पराजय का सामना करना पड़ा था और इसके बाद 2019 में जब कांग्रेस 28 सीटें हार गई थी लेकिन छिंदवाड़ा में भाजपा जीत नहीं सकी थी। अब भाजपा लोकसभा चुनाव में हारी हुई सीटों पर फोकस कर रही है और अमित शाह उसी रणनीति के तहत 19 मार्च को छिंदवाड़ा पहुंच रहे हैं। छिंदवाड़ा में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के दौरे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भी वहां लगातार जाते रहने से कांग्रेस और खासकर कमलना के लिए चिंता की बात है।
मध्य प्रदेश पर मोदी-शाह का फोकस
गृह मंत्री अमित शाह के मध्य प्रदेश के लगातार हो रहे दौरों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी विधानसभा चुनाव 2023 में कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मध्य प्रदेश को लेकर गंभीर नजर आते हैं क्योंकि यहां के ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट से लेकर खेलो इंडिया यूथ गेम्स की मेजबानी देने के फैसले में वे सीधे जुड़े रहे। जी 20 के विभिन्न समूहों की बैठकों के लिए मध्य प्रदेश के इंदौर व खजुराहो को शामिल किया गया। इससे मध्य प्रदेश की देश व विदेश में विकास की ओर अग्रसर स्टेट व सकारात्मक माहौल वाले राज्य की छवि बनी है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों का विस्थापन करने से वाइल्ड लाइफ टूरिज्म के क्षेत्र में मध्य प्रदेश को विशेष तवज्जोह केंद्र सरकार ने दी है।

विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा ऐसे चुकी थी
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा अपनी चौथी बार सरकार बनने से चूक गई थी क्योंकि उसके पास सात विधायक कम पड़ गए थे। कांग्रेस को भाजपा से पांच सीटें ज्यादा मिली थीं और 114 विधायकों के जीतने के बाद कांग्रेस ने बसपा-सपा व निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर सरकार बनाई थी। मात्र पांच सीटों का अंतर होने के बाद भी सरकार नहीं बना पाने की परिस्थिति से बचने के लिए भाजपा इस बार कोविड काल के बाद से ही लगातार आदिवासी-अनुसूचित जाति और ओबीसी मतदाताओं को रिझाने के काम में जुटी है।

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