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जिस दुष्यंत संग्रहालय में काका हाथरसी का टाइपराइटर, उस संग्रहालय को जीवन देने वाले राजुरकर नहीं रहे

दुष्यंत कुमार किसी पहचान को मोहताज नहीं है लेकिन उनके नाम के संग्रहालय को जीवन समर्पित करने वाले राजुरकर राज भी इस दुनिया को विदा कह गए। बैतूल के छोटे से गांव में जन्मे राजुरकर राज ने दुष्यंत कुमार के नाम पर जो संग्रहालय बनाया उसके लिए वे आखिर तक लड़ते रहे और उसी संग्रहालय में आज भी काका हाथरसी का सवा सौ साल पुराना टाइपराइटर बहुत ही संभालकर संजोकर रखा गया है। ऐसे राजुरकर को विनम्र श्रद्धांजलि।

राजुरकर बैतूल जिले के गोधनी गांव में 27 सितंबर 1961 को जन्मे थे और हिंदी में ग्रेजुएट किया था। उनका हिंदी का काव्यात्मक नाटक एक कंठ विषपायीं था। राजुरकर आकाशवाणी में एनाउंसर थे और सरकारी नौकरी पूरी करने के बाद वे रिटायर हो गए थे। हिंदी के मशहूर गजलकार दुष्यंत कुमार के प्रति उनकी दीवानगी देखते ही बनती थी और उन्होंने करीब ढाई दशक पहले दुष्यंत कुमार की याद में संग्रहालय की स्थापना की। इसके लिए खुद ही संसाधन जुटाए और नार्थ टीटीनगर के एक सरकार मकान में इसे शुरू किया था। मगर स्मार्ट सिटी के निर्माण के चलते सरकारी आवास गिराए जा रहे थे तो उसके लिए महिला पॉलीटेक्निक के पास आवास आवंटित करा लिया। इसके बाद संग्रहालय यहां शिफ्ट हो गया था।

संग्रहालय में नाथ पंथियों की लिपि मौजूद
दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में कुछ बेहद आकर्षित करने वाली चीजें हैं जिनमें 1897 की नाथ पंथियों की तंत्रसाधना की नाथ लिपियां मौजूद हैं। इन लिपियों को राजुरकर को महेश्वर के बाबूलाल सेन ने भेंट किया था जिन्हें बेहद की सहेजकर रखा गया है। इसी तरह बालकवि बैरागी ने राजुरकर को एक टाइपराइटर दिया था। यह टाइपराइटर काका हाथरसी का था जो 1906 का बताया जाता है। काका हाथरसी का यह टाइपराइटर बैरागीजी को 1962 मिला था और उन्होंने संग्रहालय को 2005 में सौंप दिया। इसे भी संग्रहालय में संजोकर रखा गया है। इनके अलावा कुछ मशहूर हस्तियों के पत्र भी हैं जिनमें कमलेश्वर जी और मॉरीशस के एक कवि अभिमन्यु अनत के पत्र शामिल हैं।
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