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जीतिए लोगों के दिल की बस्तियां दुशमनी को क़ब्र में दफ़नाइए

मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा ज़िलेवार गतिविधि “सिलसिला” के अंतर्गत उज्जैन में “साहित्यिक गोष्ठी” आयोजित की गई। देश की आजादी के 75 वर्ष के अवसर अमृत महोत्सव के अंतर्गत मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश में संभागीय मुख्यालयों पर नवोदित रचनाकारों पर आधारित “तलाशे जौहर” कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद अब ज़िला मुख्यालयों पर स्थापित एवं वरिष्ठ रचनाकारों के लिए “सिलसिला” के अंतर्गत कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इस कड़ी का चौंतीसवां कार्यक्रम लाल मस्जिद जमाअत ख़ाना, उज्जैन में रविवार को “शेरी व अदबी नशिस्त” का आयोजन ज़िला समन्वयक शबनम अली के सहयोग से किया गया।
अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी के अनुसार उर्दू अकादमी द्वारा अपने ज़िला समन्वयकों के माध्यम से प्रदेश के सभी ज़िलों में आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत “सिलसिला” के अन्तर्गत व्याख्यान, विमर्श व काव्य गोष्ठियाँ आयोजित की जा रही हैं। ज़िला मुख्यालयों पर आयोजित होने वाली गोष्ठियों में सम्बंधित ज़िलों के अन्तर्गत आने वाले गाँवों, तहसीलों, बस्तियों इत्यादि के ऐसे रचनाकारों को आमंत्रित किया जा रहा है जिन्हें अभी तक अकादमी के कार्यक्रमों में प्रस्तुति का अवसर नहीं मिला है अथवा कम मिला है। इस सिलसिले के तैंतीस कार्यक्रम भोपाल, खण्डवा, विदिशा, धार, शाजापुर टीकमगढ़, सागर एवं सतना, रीवा, सतना सीधी, रायसेन, सिवनी, नरसिंहपुर नर्मदापुरम दमोह, शिवपुरी, ग्वालियर, बुरहानपुर, देवास, रतलाम, बालाघाट, छिंदवाड़ा, अशोक नगर, हरदा बैतूल, जबलपुर, गुना, बड़वानी, इंदौर, कटनी, सीहोर, खरगोन राजगढ़, शहडोल एवं नीमच में आयोजित हो चुके हैं और आज यह कार्यक्रम उज्जैन में आयोजित हुआ जिसमें उज्जैन ज़िले के रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।
उज्जैन ज़िले की समन्वयक शबनम अली ने बताया कि आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में 24 शायरों और साहित्यकारों ने शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर हमीद गौहर ने की। मुख्य अतिथि के रूप में समीरुल हक़ एवं विशेष अतिथियों के रूप में शकील पटवारी एवं ज़ाहिद नूर एडवोकेट मंच पर उपस्थित रहे।
जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर इस प्रकार हैं।
जीतिए लोगों के दिल की बस्तियां
दुशमनी को क़ब्र में दफ़नाइए
राज़ रोमानी
ख़िदमत ए ख़ल्क़ तो करूं लेकिन
अपने बच्चों फिर खिलाऊँ क्या
इक़बाल परवाज़ी साहब
अपने जज़्बात, अपने सीनों में
हम भटकते रहे मशीनों में ।
सलामत हुसैन सलामत
इसकी आब-ओ-हवा है सबसे जुदा
इस ज़मीं आसमान में कुछ है
जो भी आया यहाँ वो फिर न गया
बात हिन्दोस्तान में कुछ है
अबरार ‘असर’
हिंदू मुस्लिम सिख मसीही भाई भाई हैं यहां
नफ़रतों से दूर इनकी उलफ़तों को हो सलाम
अब्दुल वाहिद ख़ान वाहिद
हादसे हाथ मलते रहे साजिशें मूंह के बल गिर पड़ी,
ये करम मुझ पे रब का हुआ काम मां की दुआ गई
शाकिर शादाब तराना
ज़हनों पे कोई तीर न बरछी बनाइए।
कुछ फूल नक़्श कीजिए, तितली बनाइए
जावेद मिर्ज़ा
दे देगें जान मुल्क की अज़मत के वास्ते
रुस्वा न होने देंगे तिरंगा यहाँ कभी
सुरख़ाब बशर
जंग में मुल्क की सरहद पे हिफाज़त के लिए
दूध और ख़ून का रिश्ता नहीं देखा जाता
अंसार अहमद अंसार
शान इसकी है शबनम निराली बहुत!
सारी दुनियाँ का भारत ही सिरमौर है!!
शबनम सुल्ताना
शहादत पे मातम नहीं होने वाला,
ये जज़्बा कभी कम नहीं होने वाला,
जयहिन्द स्वतंत्र
कार्यक्रम का संचालन शबनम अली द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में डॉ. ज़िया राना ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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