मैं हिंदी में बात करता हूं ताकि अपनी बात जल्दी और आसानी से समझा सकूं: अशनीर ग्रोवर

रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा वैश्विक स्तर पर आयोजित किए जा रहे टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग 2022 का अंतिम दिन अपने पूरे सबाब पर रहा। इसमें दिन का आगाज अपने परंपरागत अंदाज में मंगलाचरण से हुआ जिसमें अंबरीश कालेले ने मोहन वीणा पर भक्ति संगीत की सुमधुर ध्वनियों से श्रोताओं का मन मोह लिया। इसके बाद महत्वपूर्ण सत्रों का दौर शुरू हुआ जिसमें देश के प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों ने शिरकत की और विभिन्न विषयों के विविध आयामों पर विचार व्यक्त किए।

पहला सत्र “व्यापार के बदलते रूप और मातृ भाषा का प्रभाव” विषय पर रहा जिसमें भारत पे के फाउंडर और शार्क टैंक इंडिया के सेलेब्रिटी “शार्क” अशनीर ग्रोवर शामिल हुए। इस दौरान उनसे विश्वरंग के सह-निदेशक सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने बातचीत करते हुए कई सवाल किए जिनके जवाब अशनीर ने अपने चिर-परिचित अंदाज में ही दिए। पहला सवाल करते हुए सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने पूछा कि आखिर अशनीर एक साहित्य महोत्सव में क्या कर रहे हैं क्योंकि यह कोई स्टार्टअप या एंटरप्रेन्योरशिप का मंच नहीं है। इस पर अशनीर ने कहा, “मुझे भोपाल काफी पसंद है। यहां काफी सारी चीजें है जिनका प्रमोशन होना चाहिए, इसलिए भोपाल आना ही था। इसके अलावा मैंने हाल ही में एंटरप्रेन्योरशिप पर पुस्तक “दोगलापन” लिखी है जिसका प्रमोशन करना जरूरी था। इसलिए विश्वरंग का यह साहित्य महोत्सव का मंच एक उपयुक्त जगह है जहां डिफरेंट ऑडियंस  से मिलने का मौका मिलता है।  
 “दोगलापन” किताब में क्या है, के सवाल पर अशनीर बताते हैं कि यंग एंटरप्रेन्योर्स को अक्सर क्लेरिटी नहीं होती कि क्या करना है क्या नहीं करना है। यह किताब नंबर्स को समझना, एंटरप्रेन्योरशिप की चुनौतियां इत्यादि इसके हर पहलू पर बात करती है। हम जानते हैं स्टार्टअप के कल्चर को घर घर तक लेकर शार्क टैंक इंडिया गया है, पर अभी भी काफी काम किया जाना बाकि है। यह उसी कड़ी में एक प्रयास है।
इसके बाद हमेशा हिंदी में बात करने और ग्रोथ में हिंदी भाषा के रोल पर जवाब देते हुए अशनीर कहते हैं कि आमतौर पर अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को ज्यादा पढ़ा लिखा समझा जाता है, पर मुझे लगता है शायद हमने अंग्रेजी को ज्यादा ही महत्व दे दिया है। जबकि जो बात 20 मिनट अंग्रेजी बोलकर समझाते हैं वो हिंदी में 2 मिनट में समझाई जा सकती है। मुझे लगता है टाइम खराब मत करो। आज इंडिया का टाइम आया है। आज जितनी अपॉर्च्युनिटी है स्टार्टअप की वो 20 साल बाद देश के डेवलप होने के बाद उतनी नहीं रहेगी। इसलिए  मैंने हिंदी को ही लाइफ में अडॉप्ट कर लिया। मैंने एमएनसी में भी जॉब की है, इसलिए अंग्रेजी में बातें ड्रामा ज्यादा लगती हैं।
“शार्क टैंक इंडिया” शो कितना स्क्रिप्टेड होता है, इस सवाल के जवाब में अशनीर कहते हैं कि सीजन 1 तो स्क्रिप्टेड नहीं था। मैंने इसमें बिल्कुल असली पैसों से स्टार्टअप में इंवेस्ट किया है। और वैसा भी जहां पैसा रियल होता है, वहां सब रियल होता है। जहां पैसा झूठा होता है वहां सब झूठा होता है। हां यह जरूर लगता है कि शो में शायद मसाला लाने के लिए कुछ ड्रामा पिच वाले स्टार्टअप को भी रखा गया था जैसे गोल नाभी, सिप लाइन।
इसके अलावा उन्होंने मीम कंटेंट पर बात करते हुए कहा कि यह अच्छा कल्चर है। आज फिल्में पिट रही हैं, लेकिन रील्स चल रही हैं। लोगों के पास देड़ मिनट से ज्यादा टाइम नहीं है। मुझे भी समझ आ गया कि कंटेंट चेंज हो गया है – मैसेज भेजना है तो रील्स बनाओ।
एक सवाल के जवाब में अशनीर कहते हैं कि जहां सरकार नहीं है, वहां ग्रोथ आसान है। यह बात आईटी और स्टार्टअप सेक्टर में देखने पर सच दिखाई पड़ती है।

ओटीटी के जरिए फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचाना हुआ आसान : रसिका दुग्गल

विश्व रंग के अंतिम दिन सुबह के सत्र ‘नई कहानियों का नया मंच’ में महशूर अभिनेत्री रसिका दुग्गल विश्व रंग के दर्शकों से रूबरू हुईं। डॉ. पल्लवी राव ने सत्र के विषय को केंद्र में रखकर कई सवाल पूछे। जब उनसे पूछा गया कि शुरुआत कहाँ से और कैसे हुई तो उन्होंने बताया कि वे फिल्म इंस्टीटयूट के बारे में पहले ज़्यादा कुछ नहीं जानती थी लेकिन जब दाखिला लिया और कुछ समय बिताया तब उस जगह के बारे में जान पायीं कि वो जगह कितनी अद्भुत है। नए प्लेटफ़ॉर्म के बारे में बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि पहले भी शॉर्ट फिल्म बन रहीं थीं। फिल्म बन कर तैयार हो जाती थी लेकिन उन्हें दर्शकों तक पहुंचाना बहुत मुश्किल होता था। उनका डिस्ट्रीब्युशन ही नहीं हो पाता था। फिल्म बन कर पड़ी रहती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। इतने सारे ओ.टी.टी. प्लेटफ़ॉर्म हो गए हैं। यू ट्यूब भी है। मिलियंस व्यू एक- दो दिन में ही आ जाते हैं। अब फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचाना बहुत आसान हो गया है। उन्होंने मिर्जापुर और दिल्ली क्राइम के अपने किरदारों पर भी बात की।
जब डॉ. पल्लवी ने उनसे पूछा कि दुनिया में आपकी सबसे पसंदीदा जगह कौन सी है तो उन्होंने बताया कि कश्मीर उन्हें बेहद पसंद है। उन्होंने यह भी कहा कि जब आप किसी जगह बतौर टूरिस्ट जाते हैं तो उन जगहों के भीतरी पहलू आपसे अनछुए रह जाते हैं लेकिन जब शूटिंग करने जाते हैं तो बहुत करीब से उन जगहों को देख पाते हैं वहां के लोगों से बातचीत और उन्हें समझने के मौके मिलते हैं। कश्मीर में शूट की गई फिल्म हामिद के अनुभव भी उन्होंने शेयर किये। यह भी कहा कि अपने किये हुए काम का असर अगर ख़ुद आप पर नहीं हुआ तो फिर उस काम को करने का कोई मतलब नहीं। श्रोताओं में शामिल युवा कलाकारों ने भी रसिका से भरपूर सवाल किए और रसिका ने विस्तार से उनके जवाब दिए।

महत्वपूर्ण सत्र में “भारत का उभरता नया सिनेमा” विषय पर लेखक, फिल्म निर्माता विशाल भारद्वाज और एंकर इरफान ने बातचीत की। चर्चा में एंकर इरफान ने श्री भारद्वाज से बदलते सिनेमा पर सवाल किया तो  उन्होंने कहा कि जब कोई नई चीज या तकनीक आती है तो उसमें कई अच्छाईयां भी होती है और कई बुराईयां भी। मैंने ओटोटी में हमेशा अच्छाइयां देखी हैं। बदलाव हर दौर में हुये हैं। एक दौर आया जब मुंबई में बड़ी-बड़ी रिकॉर्डिंग की जाती थी। जहां 50-50 म्यूजिशियन बैठकर संगीत प्ले कर रहे होते थे। लेकिन कुछ समय के बाद म्यूजिक इंडस्ट्री में बदलाव हुआ और नये संगीतकार इंडस्ट्री में उभरकर आये और आज हमारे संगीत को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली। ओटीटी का आना अच्छा है फिल्म में समय की बंदिश है। ओटीटी का सीधा नाता कॉमर्शियल और इकॉनोमी से है। साथ ही इसमें बजट कम लगता है अच्छा कंटेट मिल रहा है। आज स्मॉल टाउन में वेब सीरीज बन रही हैं। इसमें सेंसरशिप नहीं है।
अनुभव साझा करते हुये उन्होंने कहा कि फिल्म मकबूल की स्क्रिनिंग के लिये सेंसर ने मुझे बुलाया। थियेटर के अंदर जाते ही वहां बैठी एक महिला ने मुझसे कहा कि ऐसी फिल्म क्यों बना रहे हो? इससे क्या फायदा होगा। कई सवाल किये। तो ओटीटी में इन सवालों से नहीं गुजरना पड़ता है। हां अगर आजादी मिल जाती है तो 90 प्रतिशत तो पहले गंदगी सामने आयेगी लेकिन समय के साथ अच्छे और खूबसूरत विषय ओटीटी पर दिखाई देने लगेंगे। आज ओटीटी में सब इन्वॉल्व हो रहे हैं। रचनात्मकता दिखाई दे रही है। इसके लिये हर एक स्टेट को इन्वॉल्व होना भी जरूरी है जो अभी कम है। इस सत्र का संचालन वरिष्ठ कला समीक्षक श्री विनय उपाध्याय द्वारा किया गया।
 —
समानांतर सत्र
“साहित्य के विश्व सरोकार : प्रेम और करुणा” विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि और साहित्यकार, माधव कौशिक कर रहे थे। जिनके साथ पैनल में आशीष अग्निहोत्री, राकेश कुमार, जानकीप्रसाद शर्मा, अखलाक अहमद, शफी किदवई और धनंजय वर्मा मौजूद रहे। आशीष जी ने अपनी बात फिल्मों के सहारे रखते हुए कहा कि सिनेमा विधा साहित्य का ही एक्स्टेंशन है। बात को आगे बढ़ाते हुए राकेश कुमार ने चीनी साहित्य के लेंस से प्रेम और करुणा को परिभाषित किया। इसी सिलसिले में अखलाक अहमद ने फारसी भाषा के बारे में कहा कि फारसी एक समय कई देशों को जोड़ने वाली भाषा बनी रही थी और फारसी का तमाम सूफी साहित्य और उसके बाकमाल कवियों, मसलन मौलाना रूमी, ने लगातार प्रेम और करुणा का संदेश दिया है।

सबसे ज्यादा कठिन है सरल लिखना
विश्वरंग में कथाकार समकाल करने के उपकरण विषय पर आयोजित सत्र में साहित्यकार उमाशंकर चौधरी ने कहा कि उपन्यास में विवरण बर्दाश्त किया जाता है, लेकिन कहानियों में विवरण स्वीकार किया जाता है। उन्होंने कहा की सबसे ज्यादा कठिन है सरल लिखना। इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार प्रकाश कांत ने कहा कि नए समुदाय आ रहे हैं, नए लोग आ रहे हैं। नया कंटेंट आ रहा है। इसलिए कहानी के उपकरण भी लगातार बदल रहे हैं यह समय की जरूरत है। साथ ही सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार भगवान दास मोरवाल, आनंद हर्षुल, श्रद्धा थवाईत शामिल रहे। कार्यक्रम में  आईसेक्ट पब्लिकेशन द्वारा वनमाली श्रृंखला के अंतर्गत प्रकाशित वरिष्ठ कथाकार सतीश जायसवाल की कहानियों पर केंद्रित 10 कहानियां पुस्तक का विमोचन भी किया गया।

लेखक से मिलिए– सत्र में वरिष्ठ कथाकार शशांक जी की उर्मिला शिरीष से बातचीत हुई। इस दौरान उन्होंने रचनाओं के पीछे विचार और लेखन प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। इसके बाद सत्र में आशुतोष जी की नीरज खरे से बातचीत हुई।

मानवीय संवेदनाओं को कविता के माध्यम से किया जागृत
सत्र में कवि एवं रचनाकार श्री संतोष चौबे, बलराम गुमास्ता, मोहन सगोरिया, रक्षा दुबे चौबे, सविता भार्गव, निरंजन श्रोत्रिय, नवल शुक्ल एवं अरुण देव मौजूद थें। कार्यक्रम की अध्यक्षता संतोष चौबे व मेजबानी बलराम गुमास्ता जी द्वारा की गई। साहित्य एवं कलाओं के अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव “विश्व रंग” में सत्र के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को कविता के माध्यम से जागृत करने की कोशिश की गई। श्री संतोष चौबे ने कहा कि मां के प्रेम को अक्सर कविता के माध्यम से तथा पिता के प्यार को गद्य के माध्यम से दर्शाया जाता है। आज के समय में यह सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम कविताओं के माध्यम से इस पर बात तो करे हीं मगर इस पर साथ ही कार्य भी करें। पूरे भारत देश को आज विश्व गुरु के रूप में देखा जा रहा है हम भारत में संस्कृति एवं प्रकृति के साथ समन्वयवादी विकास जैसे सिद्धांतों को अपनाने की बात करते हैं।

“जनजातीय साहित्य एवं कलाओं में विश्व दृष्टि” विषय पर आयोजित सत्र में लक्ष्मण गायकवाड़ (अध्यक्ष), शंपा शाह, त्रिलोक महावर, महादेव टोप्पो, देवीलाल पाटीदार बतौर वक्ता शामिल हुए। इस सत्र का संचालन प्रेमशंकर शुक्ल ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Khabar News | MP Breaking News | MP Khel Samachar | Latest News in Hindi Bhopal | Bhopal News In Hindi | Bhopal News Headlines | Bhopal Breaking News | Bhopal Khel Samachar | MP News Today