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विभीषण नायक से खलनायक तकः रामभक्त को राजनीति में बनाया जा रहा खलनायक

भगवान राम के भक्त विभीषण ने अपने भाई के अधर्म के रास्ते को देखते हुए अपने ईष्ट राम का साथ दिया। रामभक्त विभीषण ने सीता को रावण के कब्जे से मुक्त कराने के लिए राम का साथ दिया और उन्हें रावण की मृत्यु के भेद के बारे में बताया था। विभीषण को नायक की तरह रामायण में पेश किया गया लेकिन इन दिनों की राजनीति में नेता उन्हें खलनायक की तरह प्रस्तुत करने में तुले हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने और कांग्रेस सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाने वालों पर ढाई साल से तंज कसा जा रहा है। उन्हें कांग्रेस द्वारा खलनायक बताया जा रहा है तथा विभीषण संज्ञा दी जा रही है।
कांग्रेस की कमलनाथ सरकार कोविड 19 की पहली लहर के पूर्व गिरी थी जिसमें कांग्रेस के 22 विधायकों ने दलबदल करते हुए भाजपा का दामन थाम लिया था। उसके बाद कोविड की पहली-दूसरी लहर में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार आ गई और इन विधायकों में से ज्यादातर को मंत्री बनाकर मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। हालांकि बाद में उपचुनाव में कुछ विधायक हार गए और उनका मंत्री पद चला गया। उनमें से अधिकांश निगम-मंडल के अध्यक्ष बना दिए गए। कोरोना महामारी के दो साल सभी तरह की गतिविधियों पर प्रतिबंध की वजह से इस उलटफेर को लेकर तत्काल में राजनीतिक हो-हल्ला सड़कों पर नहीं हो सका औऱ समय के साथ लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया। मगर अब चुनाव नजदीक आने से कांग्रेस-भाजपा में बागी विधायकों के दलबदल का मामला फिर जोर पकड़ने लगा है। हद तो यह है कि इसमें अब दोनों तरफ से ही रामभक्त विभीषण को घसीटा जा रहा है।
धर्म का साथ देने वाले विभीषण आज खलनायक बताए जा रहे
राम-रावण युद्ध में धर्म का साथ देने वाले रामभक्त विभीषण को आज मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस हो या भाजपा, खलनायक जैसे पेश कर रहे हैं। कांग्रेस जहां सीधे तौर पर कमलनाथ सरकार को गिराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले 22 विधायकों को विभीषण बताकर खलनायक कहने से नहीं चूक रही है तो भाजपा नेता तंज कसते हुए इन विधायकों को अप्रत्यक्ष रूप से घर का भेदी लंका ढहाये वाला बताने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में रामभक्त विभीषण के अधर्म के विरुद्ध लड़ाई आज के राजनीतिक के परिदृश्य में सवालों के कटघरे में खड़ी कर दी गई है।
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