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अविभाज्य समग्रता ही एकात्म मानववाद है : डॉ. शर्मा

एकात्म वह इकाई है, जिसे बांटा नहीं जा सकता। मानवता का विकास एकात्मता से होता है। पश्चिमी संस्कृति मात्र चार सौ साल पुरानी है। इसलिए हमें एकात्म मानववाद का अपना दर्शन अपनाना चाहिए। एकात्म मानववाद ही भाजपा का मूल दर्शन है। व्यक्ति और समाज अलग नहीं हैं। उनकी एकात्मता व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि में निहित है।
यह बात भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. महेश शर्मा ने धार के मांडव में चल रहे भाजपा प्रदेश प्रशिक्षण वर्ग के अंतिम दिन “एकात्म मानववाद“ विषय पर सत्र को संबोधित करते हुए कही। सत्र की अध्यक्षता प्रदेश उपाध्यक्ष श्री कांतदेव सिंह ने की। डॉ महेश शर्मा ने सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राजनीति की नई व्याख्या की। एक ओर उन्होंने जहां समाजवाद, मार्क्सवाद एवं पूंजीवाद सरीखे अभारतीय विचारधाराओं को भारतीय चिंतन-परंपरा, भारतीय दृष्टिकोण एवं भारतीय जीवन-शैली के सर्वथा प्रतिकूल माना और उन्हें अस्वीकार किया है। वहीं, दूसरी ओर भारतीय मानस के अनुकूल ‘एकात्म मानव-दर्शन’ व ‘अन्त्योदय’ की संकल्पना प्रस्तुत कर ‘भारत को भारत की दृष्टि से’ देखने-समझने का एक सार्थक सूत्र भी दिया है।
उन्होंने कहा कि समग्रता का एकात्मता के साथ आंकलन एक कठिन कार्य है, अतः मनुष्य समग्रता के विविध आयामों को क्रमशः आंकलित करता है। सुविधा के लिये किया जाने वाला यह विभाजन कभी समग्र को विखण्डित भी करता है। यह विखण्डन ही पाश्चात्य विद्वानों की व्याख्या में सिद्धांत का आकार ग्रहण किये हुए है। इन्ही विद्वानों ने मानव की व्याख्या कभी व्यक्ति परक की तो कभी समाज परक। कभी उन्हें मानव सामाजिक प्राणी लगा तो कभी राजनैतिक प्राणी तथा कभी उन्होंने आर्थिक मानव की भी कल्पना की। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने मानवीय आंकलन की इस विखण्डित दृष्टि से प्राप्त निष्कर्षों को मानव की समग्रता के लिए अशुभ माना। उन्होंने आग्रह किया कि यदि हमें मानव का शुभ करना है तो न केवल हम मानव को उसकी समग्रता के साथ आंकलित करें वरन सम्पूर्ण सृष्टि को भी उसकी समग्रता में देखें। अविभक्त समग्रता का नाम ही एकात्मता है। दीनदयाल जी ने कहा मानव न केवल व्यक्ति है, न केवल समाज है तथा न केवल सामाजिक प्राणी है, न केवल राजनैतिक एवं न केवल आर्थिक प्राणी है। मानव इन सब इकाइयों को समग्रता एवं एकात्मता के साथ जीता है। अतः मानवीय व्यवस्थाओं का अधिष्ठान एकात्मता या समग्रता ही होना चाहिये।
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