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छतरपुर की सवा सौ साल पुरानी लाल कड़क्का रामलीला में आज तीसरे दिन भगवान श्रीराम के जन्म का मंचन हुआ। छतरपुर महलों के पास चल रही रामलीला के मंच पर भगवान श्री राम के जन्म के साथ शंकर दर्शन और बाल लीला का कलाकारों द्वारा सजीव मंचन किया गया।
आज तीसरे दिन रामलीला में दिखाया गया कि किस तरह रावण ने ऋषि मुनियों को संदेशा पहुंचाया कि वे भगवान का भजन न करें मैं ही उनके लिए भगवान हूं। जब ऋषि मुनियों ने बात नहीं मानी तो रावण के पुत्र मेघनाथ और सेना ने सभी कासिर धड़ से अलग कर उनका रक्त एक विशाल पात्र में भर लिया। इस पात्र को मिथिला की भूमि में दफन किया गया जिस कारण से मिथिला में भारी अकाल पड़ा।
दशरथ का पुत्र प्राप्ति यज्ञ
वहीं दूसरी ओर महाराजा दशरथ की उम्र चौथेपन पर आ गई थी लेकिन उनका कोई पुत्र न होने से अत्यंत व्यथित थे। ऋषि मुनियों के सुझाव पर महाराज दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ आरंभ करने की ठानी। महाराज कीआज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया। महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी,विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया। निश्चित समय आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ जी तथा अपने परम मित्र अंग देशके अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि को लेकर यज्ञ मण्डप में पधारे। इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया। सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगन्ध से महकने लगा। समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट कर के सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई। राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद चरा(खीर) को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों ने चार सुंदर राजकुमार राम,लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को जन्म दिया।
महारानी कौशल्या को चतुर्भुज दर्शन
भगवान विष्णु ने महारानी कौशल्या को चतुर्भुज रूप में दर्शन दिए लेकिन उन्होंने भगवान को बालरूप में पाने की इच्छा जताई जिस पर भगवान बाल रूप में महाराजा दशरथ के घर जन्मे। वहीं भगवान शंकर स्वयं प्रभु की बाललीला का दर्शन करने पृथ्वी पर पहुंचे। तीसरे दिन की महाआरती समिति के अध्यक्ष डॉ. स्वतंत्र शर्मा, उपाध्यक्ष आनंद अग्रवाल आदि ने की।
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