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भारत की GI ही है सोने की चिड़िया: जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री रजनीकांत

जनजातीय कार्य विभाग के वन्या प्रकाशन द्वारा शुक्रवार को भोपाल स्थित कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल सेंटर में जियोग्राफिक इंडिकेशन (जी.आई.) पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। ‘जियोग्राफिक इंडिकेशंस चैलेंजेस एंड द वे फॉर्वर्ड’ विषय पर आयोजित इस सेमिनार में दिल्ली से आए जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री रजनीकांत ने कहा कि भारत की जीआई ही सोने की चिड़िया है। यही जीआई भारत की आत्मा भी है जिसे संरक्षित व संवर्धित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी उद्देश्य से आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमने देशभर के 75 उत्पादों का जीआई रजिस्ट्रेशन किया है। यही जीआई प्रोडक्ट्स पहले देश की जीडीपी का बड़ा हिस्सा हुआ करते थे जिसका व्यापार करने के लिए पूरी दुनिया भारत की ओर आती थी।
जीआई के माध्यम से रोजगार व आर्थिक लाभ पहुंचाना उद्देश्यः डॉ. गोविल
सेमिनार का शुभारंभ जनजातीय कार्य विभाग की प्रमुख सचिव डॉ. पल्लवी जैन गोविल ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज के उत्पादों, कला व कलाकृतियों को संरक्षित किए जाने के प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए यह आयोजन किया गया। जनजातीय समाज थोड़ा संकोची होता है इसलिए उनकी कला व संस्कृति की विरासत को संरक्षित व सुरक्षित कर उसका अस्तित्व बचाए रखना बहुत जरूरी हो जाता है। हमारा उद्देश्य जीआई टैग से जनजातीय संस्कृतिक व कला को पहचान दिलाकर रोजगार के अवसर प्रदान करना है। साथ ही इसे आमजन तक पहुंचाना भी जरूरी है जिससे जनजातीय लोगों के लिए अनुसंधान व आर्थिक लाभ के अवसर सृजित किए जा सके।
इस सेमिनार में देश व प्रदेश के कला क्षेत्र व जीआई के विशेषज्ञ, कला समीक्षक, विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी, कानून विशेषज्ञ, कलाकार, उत्पाद निर्माता-विक्रेता आदि शामिल हुए। इस अवसर पर प्रमुख सचिव कुटीर एवं ग्रामोद्योग मनु श्रीवास्तव, जनजातीय कार्य विभाग आयुक्त संजीव सिंह, उपसचिव मीनाक्षी सिंह, एमडी हस्तशिल्प विकास निगम अनुभा श्रीवास्तव, अपर आयुक्त केजी तिवारी, डायरेक्टर टी.ए.डी.पी. रवीन्द्र सिंह चौधरी आदि उपस्थित रहे।
मध्यप्रदेश के उत्पादों की हो रही जीआई टैगिंग
सेमिनार में जनजातीय कार्य विभाग की उपसचिव व वन्या की प्रबंध संचालक मीनाक्षी सिंह ने भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की टेक्सटाइल कमेटी के डॉ. तपन कुमार राऊत के साथ मध्यप्रदेश के 7 उत्पादों के लिए जीआई टैग आवेदनों पर हस्ताक्षर किए। वन्या द्वारा विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों के उत्पादों के जीआई टैगिंग का कार्य किया जा रहा है जिसके प्रथम चरण में अनूपपुर के काष्ठ शिल्प (मुखौटा), झाबुआ गुड़िया, शहडोल अनूपपुर व डिंडौरी का जनजाति वाद्ययंत्र बाना व चिकारा, धार-झाबुआ-खरगौन-बड़वानी व अलीराजपुर का हस्तशिल्प बोलनी, पोतमाला व गलशन माला की जीआई टैगिंग का कार्य किया जा रहा है। यह कार्य भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के उपक्रम टेक्सटाइल कमेटी के सहयोग से किया जा रहा है।
दुर्लभ जनजातीय वाद्ययंत्र बाना का किया वादन
इस अवसर पर डिंडौरी के जनजाति वादक धरम सिंह वरकड़े ने दुर्लभ जनजातीय वाद्य यंत्र बाना का वादन किया। उन्होंने पितृपक्ष के उपलक्ष्य में पूर्वजों के सम्मान व जनजातीय राजाओं के सम्मान में गाए जाने वाले गोंडी लोकगीत की प्रस्तुति दी।
जनजातीय व जीआई टैग उत्पादों की लगाई प्रदर्शनी
सेमिनार में मध्य प्रदेश के जनजातीय व अन्य कला उत्पादों की लघु प्रदर्शनी भी लगाई गई। इसमें पिथौरा चित्रकला, भीली गलशन माला, पोत माला, लकड़ी के मुखौटे, भीली दुल्हन श्रृंगार पेटी बोलनी, बेल मेटल, चंदेरी साड़ी, बाघ साड़ी और महेश्वर साड़ी प्रदर्शित की गई। वहीं, दुर्लभ गोंड वाद्ययंत्र बाना परधान और चिकारा परधान भी विशेष रूप से प्रदर्शित किया गए। साथ ही जनजातीय अंचलों के खाद्य उत्पाद जैसे सफेद मुसली, कोदो, कुटकी व कड़की भी प्रदर्शित किए गए।
सेमिनार में शामिल प्रतिभागी
सेमिनार में भारत सरकार की टेक्सटाइल कमेटी, टीआरआई, नाबार्ड, ट्राइफेड, टीएडीपी, मैपसेट, दिल्ली विश्वविद्यालय, हस्तशिल्प विकास निगम, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, फीडस लॉ चेंबर्स, ह्यूमन वेलफेयर असोसिएशन आदि के प्रतिभागी शामिल हुए।
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