कांग्रेस में चुनाव हारने वाले संगठन के बाहर से करा रहे फैसले

19 साल से मध्य प्रदेश में सत्ता से बाहर कांग्रेस में आज भी चुनाव हारने वाले नेता संगठन के बाहर से ही अपने हिसाब से फैसले कराने में कामयाब हो रहे हैं। अनचाहे नेता की छवि को गुटीय राजनीति के सहारे बिगाड़ने का आज भी क्रम चल रहा है जिसके कारण दिग्विजय सिंह हो या अरुण यादव या अजय सिंह या दूसरे नेताओं के समर्थकों तक कमलनाथ की नजर पहुंचने ही नहीं दी जाती। आज भी पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी संगठन में अपने हिसाब से फैसले कराने में सफल नजर आ रहे हैं।

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चीफ कमलनाथ हैं जिनका कक्ष तीसरी मंजिल पर है। तीसरी मंजिल के उनके कक्ष के अलावा इस समय दो अन्य कक्षों के नेताओं को ताकतवर माना जा रहा है। इन कक्षों में बैठने वाले वयोवृद्ध नेता चंद्रप्रभाष शेखर और दूसरे नेता राजीव सिंह हैं। राजीव सिंह संगठन में अपने आपको करीब डेढ़ दशक का अनुभव मानते हैं लेकिन शेखर को संगठन में काम करने का पहला अनुभव है। शेखर उम्र की वजह से सीमित समय ही कार्यालय में दे पाते हैं जबकि राजीव सिंह पूरे समय रहते हैं। राजीव सिंह मुख्यतः सुरेश पचौरी के समर्थक माने जाते हैं और पीसीसी में संगठन स्तर पर दी जाने वाली जिम्मेदारियों में पचौरी समर्थकों को समायोजन कराने में वे कोई मौका नहीं चूकते हैं।
वचन पत्र हो या जिलों का प्रभार, हर मामले में पचौरी समर्थकों का समायोजन हो जाता है जबकि केंद्रीय नेतृत्व पचौरी से विशेष खुश नहीं है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में संगठनस्तर पर पचौरी को विशेष जिम्मेदारी नहीं है जबकि एक समय उनकी राय के बिना हाईकमान मध्य प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों के फैसले भी नहीं लेता था। इसके बाद भी मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटियों में पचौरी समर्थकों को अन्य दिग्गज नेताओं के समर्थकों से ज्यादा महत्व मिलता रहता है। वचन पत्र के लिए डॉक्टर्स, वकील, इंजीनियरों, उद्योगपति व व्यापारियों से चर्चा करने के लिए दी गई जिम्मेदारियों में 18 नेताओं में पचौरी समर्थक माने जाने वाले विजयलक्ष्मी साधौ, शोभा ओझा, आरिफ मसूद, भूपेंद्र गुप्ता जैसे नेताओं को शामिल किया गया है। यही नहीं इन नेताओं को महत्वपूर्ण जिलों की जिम्मेदारी दी गई जैसे इंदौर, भोपाल, मंदसौर, सागर जिले। पिछली बार वचन पत्र तैयार करने में खासी भूमिका निभाने वाले वीके बाथम को छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी जैसे पिछले जिले दिए गए हैं तो मुकेश नायक, बाला बच्चन जैसे नेताओं को दमोह, बड़वानी तक सीमित कर दिया गया है। ऐसे हारे हुए नेताओं के बाहर रहकर फैसले कराए जाने के कार्यप्रणाली से कांग्रेस विधानसभा चुनाव 2023 में जाएगी तो रिकॉर्ड नहीं बन जाए।

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