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जनजातीय चित्र प्रदर्शनी 3 सितंबर से

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय द्वारा प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को चित्र प्रदर्शनी और चित्रों की बिक्री के लिये सार्थक मंच उपलब्ध कराने की दृष्टि से प्रतिमाह ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह विक्रय का संयोजन शलाका नाम से किया जाता है। इसी क्रम में 3 सितंबर ,2022 से भील समुदाय के युवा चित्रकार सुभाष अमलियार के चित्रों की प्रदर्शनी सह-विक्रय का संयोजन किया जा रहा है।
29वीं शलाका चित्र प्रदर्शनी 30 सितंबर, 2022 तक निरंतर रहेगी। साल 1985 में मध्यप्रदेश के ग्राम पंचकुई, मेघनगर, जिला-झाबुआ में जन्मे सुभाष अमलियार भील समुदाय के युवा चित्रकार हैं। अल्पवर्षा के क्षेत्र में जहाँ जीवन की मूलभूत सुविधाओं के लिए भी भीलों को कड़ा संघर्ष एवं अत्यधिक श्रम करना होता है, वहाँ भी वे अपने उन्मुक्त स्वभाव में सहज ही रहते हैं और वही इनकी कला में भी दिखता है। भील समुदाय में पारम्परिक अनुष्ठानिक चित्रण पिथौरा एवं पारम्परिक भगोरिया नृत्य कला अन्य किसी और परिदृश्य में नहीं दिखती, जहाँ एक ओर केवल पुरुष ही (बड़वा/पुजारा) पिथौरा गाता है एवं लिखंदारा चित्रण करता है, के अतिरिक्त बहुत ही कम भील पुरुष चित्रकर्म में देखे जा सकते हैं, हाँ महिलाएँ घर को अलंकृत करने का हर संभव उपाय अवश्य करती रहती हैं। शेष अन्य दिनों में जब भील दैनंदिन के संघर्षों में व्यस्त रहते हैं, तब केवल भगोरिया ही ऐसा समय है जब भील स्त्री-पुरुष अपने सम्पूर्ण कलाभिव्यक्तियों जैसे नृत्य, संगीत में मग्न होने का पर्याप्त समय पाते हैं। युवा चित्रकार सुभाष बहुत कम उम्र में परिवार के संग गाँव से भोपाल आ गए और अपने परिवार से चित्रांकन की बारीकियाँ को सीखते। यह सिलसिला चलता रहा और चित्रकार श्री सुभाष भील चित्रों का अंकन करने लगे।
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