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गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शास्त्रीय गायन, कथक एवं भरतनाट्यम

गुरू की महानता के प्रति आदर प्रकट करने की सांस्कृतिक पहल पर गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय के साथ मिलकर संस्कृति विभाग ने गुरु पूर्णिमा पर्व का आयोजन किया। इसमें अलग-अलग शहरों में 12 शासकीय ललित कला एवं संगीत महाविद्यालयों में एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया। आयोजन में प्रदेश व देश के संगीत, नृत्य कलाकारों की प्रस्तुतियों के साथ ही ललित कला के विषय विशेषज्ञों के द्वारा व्याख्यान व डेमोस्ट्रेशन भी दिए गए। इसी क्रम में बुधवार को मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में सायं 7 बजे से प्रस्तुतियों का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन से किया गया। इस दौरान संचालक संस्कृति अदिति कुमार त्रिपाठी, उप संचालक सुश्री वंदना पाण्डेय, निदेशक जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे उपस्थित रहे। कार्यक्रम में गायन एवं नृत्य प्रस्तुतियां संयोजित की गई जिसमें नई दिल्ली की सुप्रसिद्ध गायिका सुश्री शाश्वती मंडल द्वारा शास्त्रीय गायन एवं सुश्री शालिनी खरे और सुश्री अमृता जगम एवं साथियों द्वारा कथक और भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी गई।
शुरूआत शास्त्रीय गायिका सुश्री शाश्वती मण्डल, नई दिल्ली एवं साथियों द्वारा शास्त्रीय गायन से की। उन्होंने प्रस्तुति में राग मियां मल्हार में बिलंबित और द्रुत ख्याल बंदिश की प्रस्तुति दी। इसके बाद उन्होंने रागदेश में टप्पा में रिम झिम बरसे मेहरवा…, की प्रस्तुति दी। प्रस्तुति के दौरान तबले पर श्री रामेन्द्र सिंह सोलंकी, हारमोनियम पर सुश्री पोरोमिता मुखर्जी, तानपुरे पर सुश्री साक्षी पंडोले ने संगत की।
अगले क्रम में सुश्री शालिनी खरे और सुश्री अमृता जगम एवं साथियों द्वारा कथक और भरतनाट्यम में नृत्यांगनाओं ने मां काली पर आधारित वंदना पर नृत्य प्रस्तुति दी। जो भरतनाट्यम और कथक की जुगलबंदी रही। इसके बाद नृत्यांनाओं ने नृत्य नाटिक के माध्यम से भगवान गौतम बुद्ध की भावनाओं पर केंद्रित यात्रा प्रस्तुत की। इस प्रस्तुति में बताया कि सिद्धार्थ अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों के दौरान राजशाही की तरह रहते थे। वे दुनिया में होने वाली घटनाओं से बेखबर थे। उनका विवाह यशोधरा से हुआ। तब अपने राज्य के बाहर की दुनिया को देखने गये और संसार के कष्टों से व्याकुल होकर उन्होंने जीवन पर प्रश्नचिह्न लगाना शुरू किया और उत्तर खोजने के लिए राज्य को पीछे छोड़, भगवान बुद्ध ने यशोधरा को भी त्याग दिया।
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