आखिर कमलनाथ ने स्वीकार ली कागजी घोषणाओं और अपनी असफलता की बात: विष्णुदत्त

कांग्रेस और उसके नेता जनता के बीच कुछ भी कहते रहें, लेकिन 15 महीने रही उनकी सरकार का यथार्थ वो अच्छे से जानते हैं। इस सरकार ने अपने कोई वादे पूरे नहीं किए, समाज के हर वर्ग को धोखा दिया और हर मोर्चे पर बुरी तरह असफल रही। यह बात प्रदेश की जनता के जेहन में तो स्पष्ट थी, लेकिन मुझे खुशी है कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर प्रदेश के लोगों को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी यह बात स्वीकार ली। यह बात भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के संबोधन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। 

शर्मा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी सरकार को सिर्फ 15 महीने मिलने की जो बात कही है, उसके लिए कोई और दोषी नहीं है, बल्कि स्वयं कांग्रेस और उसके सत्ताकेंद्र ही जिम्मेदार रहे हैं। इनके लगातार हस्तक्षेप के चलते कांग्रेस के ही लोगों में असंतोष पैदा हुआ, जिसकी परिणति सरकार के गिरने के रूप में हुई। श्री शर्मा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूरी तरह कर्जमफी न होने की बात मानकर भारतीय जनता पार्टी के इस आरोप की ही पुष्टि की है कि कांग्रेस ने 10 दिनों में कर्जमाफी का जो वादा किया था, वो झूठा था। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने संबोधन में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, युवाओं को बेरोजगारी भत्ता जैसी जिन घोषणाओं की चर्चा की है, वो सिर्फ कागजों पर ही रहीं। न किसी कन्या को कन्यादान की बढ़ी हुई राशि मिली, न किसी युवा को बेरोजगारी भत्ता मिला। प्रदेश अध्यक्ष श्री शर्मा ने कहा कि जो सरकार अपने ही लोगों और प्रदेश की जनता का विश्वास नहीं जीत पाई हो, उसके मुखिया रहे व्यक्ति द्वारा निवेशकों का विश्वास जीतने की बात कहना हास्यास्पद है। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने संबोधन में लोकतंत्र और संविधान के प्रति जो चिंता जाहिर की है, वह सिर्फ नौटंकी है। कौन नहीं जानता कि कमलनाथ उस मंडली में शामिल रहे हैं, जिसने लोकतंत्र को कुचलने के लिए देश में आपातकाल लगाया था। श्री शर्मा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ किस मुंह से संविधान की गरिमा की बात कर रहे हैं, उन्होंने तो स्वयं नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में रैलियों का नेतृत्व करके संविधान को अपमानित किया है। उनके मन में न तो लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा रही है और न ही संविधान के प्रति सम्मान का भाव रहा है।

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