ज्ञान लोक मंगल की परम्परा है: उच्च शिक्षा मंत्री पवैया

उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने कहा है कि ज्ञान लोक मंगल की परम्परा है। सभ्यताएँ युग के अनुसार बदलती है लेकिन मूल्यों की संस्कृति नहीं। पवैया ने यह बात माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित भारतीय जीवन दृष्टि वर्तमान संदर्भ में व्याख्या ‘ज्ञान संगम’ में कहीं। आर.सी.व्ही.पी. नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबन्धकीय अकादमी के स्वर्ण जयंती सभागार में शुरू हुए दो दिवसीय ‘ज्ञान-संगम’ में प्रज्ञा प्रवाह और भारतीय शिक्षा मण्डल सहयोगी संस्थाएँ रही।उच्च शिक्षा मंत्री पवैया ने कहा कि रीति-रिवाजों को हमने धर्म और जीवन की आचरण-संहिता के रूप में अपनाया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे गये वाक्य ‘अतीत को पढ़ो, वर्तमान को गढ़ो और आगे बढ़ो’ को दोहराया और कहा कि स्वदेशी को अपनाने में युवा घबराते हैं और बाहरी वस्तुओं को श्रेष्ठ मानते हैं। इस विचार-धारा को बदलना होगा।  पवैया ने कहा कि बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि पीपल के वृक्ष को काटने पर ब्रह्म हत्या का पाप लगता है, जब यह बात वैज्ञानिक तथ्यों से सिद्ध हुई तब लोगों को समझ आई कि वह कार्बन-डाई-ऑक्साइड को ग्रहण कर ऑक्सीजन छोड़ता है। श्री पवैया ने कहा कि भारतीय योग को संसार ने अपनाया और एक दिन विश्व योग दिवस के नाम किया। यह सिर्फ तर्क के साथ अपनी बात को रखने से संभव हो सका है। उन्होंने ज्ञान-संगम के जरिये एक दूसरे में समाहित हो जाने वाले सम-सामायिक विषय को आत्म-केन्द्रित करने को कहा।

साहित्कार एवं विद्वान श्री नरेन्द्र कोहली ने कहा कि ‘मैं’ साधारण शब्द नहीं ‘आत्मा’ है और जो मैं हूँ वही तू है। उन्होंने वनस्पति से लेकर प्रकृति को प्राणवान बताया। उन्होंने कहा कि सबके भीतर वही तत्व है। उन्होंने अहंकार छोड़कर सेवा करने और सामने वाले के प्रति कृतज्ञ होने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि ऋषि राष्ट्र की रक्षा करता है। पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ कहानियाँ नहीं उनका सार निकाले और उसकी गहराई में जायें। श्री कोहली ने कहा कि हमेशा धर्म और न्याय का साथ दें। उन्होंने कहा कि मोहवश आज के दौर में बच्चे की गलती को माँ-बाप छुपाकर अन्याय का साथ देते हैं। इससे बच्चे गलत राह पर चले जाते हैं।

अखिल भारतीय प्रज्ञा-प्रवाह के संयोजक श्री नदंकुमार ने दर्शन, ज्ञान और विज्ञान पर प्रकाश डाला और कहा कि भारत सभी के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण रखता है। वह केवल मनुष्य में चैतन्य नहीं ढूँढ़ता, सभी में ईश्वर का अंश देखता है। उन्होंने प्रकृति में भी अपनत्व की भावना को बताया। वि.वि. के कुलपति प्रो. ब्रज किशोर कुठियाला ने विभिन्न सत्रों की जानकारी दी ओर कुलसचिव प्रो. संजय द्विवेदी ने संचालन किया।

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