न दाग न राग

अवुल पाकर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम, जितना बड़ा नाम उससे भी कहीं ज्यादा बड़ी है इस नाम की शख्सियत। यह नाम कई दशकों के बाद सामने आया है जिसमें न कोई दाग है और न ही उसका कोई राग है। यानि धर्म, समाज, जाति जैसा तमगा, इस नाम के साथ जुड़ा है। यह नाम धर्म, समाज, जाति से बहुत ऊपर उठ चुका था जिसे सभी धर्म के लोग अपना कहते और मानते थे, अब पूजेंगे।
पहले चाचा नेहरू को बच्चा-बच्चा जैसे अपना मानता था, वैसे ही आज का बच्चा अब्दुल कलाम को अपना मार्गदर्शक और पथ प्रदर्शक मानता था। बच्चे ही नहीं खुद अब्दुल कलाम बच्चों के लिए अपना ज्यादा से ज्यादा समय देते थे। जहां भी वे जाते थे तो बच्चों से सीधा संवाद करने में उन्हें काफी अच्छा लगता था। और तो और जब उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली तो वे कहीं और नहीं थे बल्कि उन बच्चों के बीच थे जो आगे जाकर विश्व बाजार को दिशा देने का काम करेंगे।
अब्दुल कलाम का शरीर भले ही इस दुनिया से चला गया है लेकिन उनकी बातें, उनके विचार लोगों के लिए प्रेरणा देते रहेंगे। मध्यप्रदेश सरकार ने तो अपने स्कूलों में उनकी जीवनी को पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला कर काफी अच्छा कदम बढ़ाया है और जल्द ही शायद सीबीएसई भी इस दिशा में कोई कदम उठाएगा। हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए यह प्रार्थना करते हैं कि उन्हें ईश्वर अपने चरणों में स्थान दे और जल्द ही हमें उन जैसा एक और व्यक्तित्व प्रदान करे।

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