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अटर्नी जनरल का हलफनामा मुस्लिम पर्सनल लॉ पर हमले का रूप

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में यह कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक केस में सरकार के अटर्नी जनरल के हलफनामें से सरकार की मंशा ज़ाहिर होती है। इस हलफनामें मंेे केन्द्र सरकार के अटॉर्नी जनरल ने कहा था बिना सिविल कोर्ट के हस्तक्षेप के कोई भी तलाक नहीं हो सकता। बोर्ड के नुमाइंदों ने सरकार को अपनी नाराजगी दर्ज करा दी है। साथ ही कहा है कि भारत के संविधान द्वारा गारंटी हम अपनी नाराजगी को रिकर्ड कराते हैं और इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के हमले के रूप में देखते हैं वर्तमान सरकार का यह रुख भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत सुरक्षा के विपरीत है। हम स्पष्ट बयान करते हैं के हमारा समुदाय मुस्लिम पर्सनल लॉ पर व्यक्तिगत कानून पर इस तरह के हमले को बर्दाश्त नहीं करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सू-मोटो आधार पर विवाह तलाक, बहुविवाह(र्ॅनअयचसअ) लिंग न्याय (क्षीहगि ङूेचनैाअ) आदि से संबंधित मुद्दों को उठाया था। बाद में, निजी पार्टियों ने भी अदालत से संपर्क किया और कार्यवाही में शामिल हो गए। इसके बाद, यह मुद्दा तलाक-ए-बिदत ट्रिपल तालक की वैधता की जांच के लिए सीमित था। सुन्न्ी मसलक के चारों आइम्मा हनफी, मालिकी, हम्बली और शाफई के पक्ष का जायजा लिया गया। सुप्रीम कोर्ट मंे चर्चा इन चारों मसलकों तक ही सीमित रखी गई।
ऑल इंडिया पसर्नल लॉ बोर्ड की मीटिंग हुए विचार के प्रमुख अंश जारी करते हुए आरिफ मसूद ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों के साथ एक विचार लिया है, जिसमंे तलाक-ए-बिद्त को अलग रखा गया है झीा षीगैच। एआईएमपीएलबी, 22।08।2017 के फैसले का सम्मान करता है। इस्लामी शरिया कानून (मुस्लिम पर्सनल ल) कुरान, हदीस, इज्मा और कियास पर आधारित है। हम दोहराते हैं कि इस्लामी कानूनों में व्यक्तिगत, वैवाहिक संबंधों में विश्वास और प्रथाओं की पवित्रता व्यक्तिगत और वैवाहिक संबंधों में भ्ाारत के अन्य नागरिकों के विश्वास और प्रथाओं से अलग नहीं मानी जा सकती है। जो अपने स्वयं के कस्टम और अभ्यास का पालन करते हैं और उनके पास इस अमल का संरक्षण होता है।
सुन्न्ी विद्यालय के चार इमामों का मानना है कि तालाक के तीन अध्यायों का अभ्यास प्रभ्ााव में आ रहा है जो शरिया और हदीस पर बनी है इन चार सुन्न्ी विद्यालयों के विचारों पर लागू शरिया के अनुसार बोर्ड की स्थिति, यह है कि तालक-ए-बिदत नापसंदीदा है लेकिन वैध है। एक लंबे समय के लिए, हमने सामुदायिक सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से इस अभ्यास को हतोत्साहित करने के लिए कदम उठाए हैं और लगभ्ाग दो दशक पहले मॉडल्ा निकाह नामा बना दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पहले, ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अप्रैल 2017 मंे यह अेलान किया था कि जो तलाके बिदत देगा उसका समाजिक बहिष्कार होगा इसके अलावा बोर्ड ने एक अेफिडेविट दाखिल किया था जिसमें यह हिदायत सभ्ाी काज़ी और इमाम मौलवियों को दिया गया था।
जो निकाह कर रहे हैं उन्हें सलाह दी जानी चाहिए कि तलाक के हालात बनें तो भ्ाी तलाक बिदत नहीं बोलेंगे। इस तहरीक को आगे बढ़ाने के लिए बोर्ड बड़े पैमाने पर हमारे सामुदायिक सुधार कार्यक्रमों को आयोजित कर रहा है। बोर्ड ने शरिया के सही इल्म की तेहरीक के लिए मुस्लिम महिलाओं और मुस्लिम पुरुषों को शिक्षित करने के लिए विभ्ािन्न् स्तरों पर विभ्ािन्न् कार्यक्रमों को शुरू करने का भ्ाी संकल्प किया है। और इस प्रक्रिया में विभ्ािन्न् संगठनों से सहायता ली जाएगी।
बोर्ड हमेशा शरीयत के भ्ाीतर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए खड़ा रहा है। बोर्ड ने तलाकशुदा महिलाओं के लिए मदद सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने का भ्ाी संकल्प लिया है। बोर्ड इस योजना के लिए वक्फ बोर्डों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए केन्द्र सरकार से भ्ाी अनुरोध करेगा।
बोर्ड ने एक कमेटी का गठन किया है जो (इस्लाहे मुआशरा) के सुधार के लिए सुझाव देगा। यही कमेटी सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक के फैसले को लेकर भ्ाी जांच करेगी और फैसले में अगर कोई असंगतताएं शरीया के नज़र से हैं तो उनको बोर्ड को बताएगी।
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