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आईसीएफटी यूनेस्को पुरस्कार के लिए भारत की ओर से ‘अल्लामा’ नामांकित
47वें आईएफएफआई में अंतरराष्ट्रीय फिल्म, टेलीविज़न और श्रव्य-दृश्य संचार परिषद् (आईसीएफटी) यूनेस्को (UNESCO) गांधी पुरस्कार के लिए 12वीं शताब्दी के तत्वज्ञानवेता की यात्रा पर बनी फिल्म ‘अल्लामा’ भारत की ओर से प्रतिस्पर्धा में उतरेगी। यह फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशक टी.एस. नगभरन ने बनाई है।
गांधी जी के शांति, सहिष्णुता और अहिंसा के विचारों को सर्वोत्तम तरीके से प्रदर्शित करने वाली फिल्म को यूनेस्को के सहयोग से आईसीएफटी पेरिस प्रतिष्ठित गांधी पुरस्कार और प्रमाणपत्र से पुरस्कृत करेगा। प्रतियोगिता के इस खंड में प्रतिष्ठित आईसीएफटी यूनेस्को गांधी पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए ‘अल्लामा’ सहित कुल आठ फिल्में शामिल होंगी। इस श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करने वाली अन्य फिल्मों में ‘ए रिअल वरमीर (A Real Vermeer)’ ‘बेलुगा (Beluga)’ ‘कॉल्ड ऑफ कलंदर (Cold of Kalandar)’ ‘एग्ज़ाइल्ड (Exiled)’ ‘हर्मोनिआ (Harmonia)’ ‘द अपॉलॉजी (The Apology)’ और ‘द फैमिलीः दमेन्शिया (The Family: Dementia)’ शामिल हैं।
‘अल्लामा’ 12वीं शताब्दी के तत्वज्ञानवेता के बारे में बनी एक फिल्म है। मंदिर की एक नर्तकी का यह पुत्र ज्ञान और अपनी चार अहम भावनाओं – तड़प, जुनून, विफलताओं और आत्मज्ञान के जवाब के लिए एक खोज पर निकलता है। जैसे-जैसे वह विकसित होता है, अद्वैतवाद और गैर द्वैतवाद दार्शनिक के तौर प्रभु की उपाधि प्राप्त करता है, वह अपने आसपास के आदर्श समाज में जहां कहीं भी हिंसा महसूस करता है, वहां उस पर सवाल खड़े करना शुरू करता है और लोगों को शांति की तलाश करने और मिल-जुलकर रहने के लिए प्रेरित करता है।




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