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सहरा हूँ मेरे सीने पे चलते हैं मुसाफ़िर

मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा सिलसिला के तहत बुरहानपुर में साहित्यिक गोष्ठी आयोजित की गई। संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग और उर्दू अकादमी के इस आयोजन में शनिवार को कई स्थानीय उर्दू के रचनाकारों ने अपनी-अपनी प्रस्तुतियां दी। इस शेरी व अदबी नशिस्त का आयोजन जिला समन्वयक शऊर आशना के सहयोग से किया गया।
अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी के अनुसार उर्दू अकादमी द्वारा अपने ज़िला समन्वयकों के माध्यम से प्रदेश के सभी ज़िलों में आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत “सिलसिला” के अन्तर्गत व्याख्यान, विमर्श व काव्य गोष्ठियाँ आयोजित की जा रही हैं। ज़िला मुख्यालयों पर आयोजित होने वाली गोष्ठियों में सम्बंधित ज़िलों के अन्तर्गत आने वाले गाँवों, तहसीलों, बस्तियों इत्यादि के ऐसे रचनाकारों को आमंत्रित किया जा रहा है जिन्हें अभी तक अकादमी के कार्यक्रमों में प्रस्तुति का अवसर नहीं मिला है अथवा कम मिला है। इस सिलसिले के पंद्रह कार्यक्रम भोपाल, खण्डवा, विदिशा, धार, शाजापुर टीकमगढ़, सागर एवं सतना, रीवा, सतना सीधी, रायसेन, सिवनी, नरसिंहपुर नर्मदापुरम दमोह, शिवपुरी एवं ग्वालियर में आयोजित हो चुके हैं और आज यह कार्यक्रम बुरहानपुर में आयोजित हुआ जिसमें बुरहानपुर ज़िले के रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत प्रस्तुत कीं।
बुरहानपुर ज़िले के समन्वयक शऊर आशना ने बताया कि बुरहानपुर में आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में 22 शायरों और साहित्यकारों ने शिरकत की। साहित्यिक गोष्ठी दो सत्रों पर आधारित थी, प्रथम सत्र में सेमिनार आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता डाॅ. एस एम शकील ने की। इस सत्र में डॉ. ज़हीर ने “बुरहानपुर में उर्दू का जन्म एवं राष्ट्र भक्ति” विषय पर एवं अल्ताफ़ अंसारी ने “बुरहानपुर के शायरों की शायरी में राष्ट्र भक्ति एवं राष्ट्रीय एकता” विषय पर अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए वहीं शब्बीर रौशन ने “भाई का फ़र्ज़” के शीर्षक से कहानी प्रस्तुत की। दूसरे सत्र में मुशायरा आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता बुरहानपुर के वरिष्ठ शायर मसूद ख़ान ने की मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. तारिक़ ख़ान एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में मुशर्रफ ख़ान, मनोज अग्रवाल, मास्टर फज़्लुर्रहमान, सैयद जूज़र अली, एवं नूर काज़ी मंच पर उपस्थित रहे।
जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर इस प्रकार हैं।
सहरा हूँ मेरे सीने पे चलते हैं मुसाफ़िर
मैं राह में गिरती हुई दीवार नहीं हूँ
मोहम्मद अली हिलाल
हर इक गोशे में ताबानी बहुत है
हमारा मुल्क नूरानी बहुत है
एजाज़ उम्मीदी
मिरे बनाए हुए बुत भी बात करने लगें
ये मुअजज़ा मिरे दस्ते हुनर में आ जाए
ज़ाहिद वारसी
बातें सभी करते है जन्नत की धुआंधार
इस जमीं को जन्नत बना दो तो कोई बात बने
रमेश धुआंधार
फल मक़सदे तालीम का बाज़ार में आए
जो बात किताबों में है किरदार में आए
रियासत अली रियासत
परवाज़ मुझसे भीक तो मांगी न जाएगी
भूका हूँ मेरे पेट में ख़ंजर उतार दे
मेहबूब परवाज़
ख़ुद अपनी ज़ात में महके वो फूल ही क्या है
मज़ा तो जब है कि सारे चमन को महका दे
ख़लील असद
चारों तरफ हो प्यार की खुशबू-आबो हवा,
मज़हब हो सबका एक बस एक हो वतन।
ठाकुर वीरेंद्र सिंह चित्रकार
ये वस्फ़े ख़ास कहाँ हर किसी में आता है
किसी किसी को ख़ुदा आईना बनाता है
शऊर आशना
कशकोल हाथ में लिए फिरता भी कब तलक
भूका फ़कीर दूसरे दर पर चला गया
तफ़ज़ील ताबिश
क़दम क़दम पे उजाले उतर के आयेंगे
तिरे नसीब के तारे उतर के आयेंगे
ख़ालिद अंसारी
शेरी नशिस्त का संचालन शऊर आशना द्वारा किया गया। कार्यक्रम में मसूद रियाज़, अज़हर अंसारी, हिकमत उल्लाह ने भी ज़िला समन्वयक का सहयोग किया। कार्यक्रम के अंत में इक़बाल क़ौसेन ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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