मध्य प्रदेश में मौजूदा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल है। इसी आधार पर राजनीतिक भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषियों और आ रहे सर्वे में भी कांग्रेस के सत्ता में लौटने की बात तेजी से शुरू हो गई है। इसको लेकर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार गणेश पांडे की एक विस्तृत रिपोर्ट आपके सामने रख रहे हैं। पढ़िये रिपोर्ट।
वरिष्ठ पत्रकार गणेश पांडे
कांग्रेस के राहुल गांधी से लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी सत्ता में लौटने के दावे कर रहे हैं किंतु इतना आसान नहीं है, जितना कांग्रेस नेता अनुमान लगा रहे हैं. वह इसलिए कि प्रदेश की 65 सीटों पर कांग्रेस डेढ़ दशक से जीत के लिए तरस रही है. 70 से 80 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस को विजयी उम्मीदवार नहीं मिल पा रहे हैं. सीएम चेहरे को लेकर कांग्रेस में आंतरिक कलह चल रही है, सो अलग. ये तमाम परिस्थितियां ऐसी है, जो इस बात को इंगित कर रही हैं कि कांग्रेस के लिए सत्ता में लौटना आसान नहीं है. उल्लेखनीय यह भी है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह डैमेज कंट्रोल के लिए लाडली बहना योजना से लेकर ₹5 की थाली जैसी कई लोक लुभावने घोषणा कर रहे हैं. इसके बाद भी क्या मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी होगी? यह सवाल अभी भविष्य के गर्भ में हैं. मप्र में राज्य सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की हवा बहने लगी है. इन हवाओं के रुख का अंदाजा कांग्रेस नेताओं को है. यही कारण है कि दिल्ली से लेकर भोपाल तक के कांग्रेसी नेता यह मानकर चल रहे हैं कि अब मप्र से शिवराज सरकार की विदाई तय है और हमारी सत्ता में वापसी भी. कांग्रेस के आंतरिक सर्वे ने कांग्रेस नेताओं के रक्तचाप बढ़ा दिए हैं. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने स्वयं प्रदेश अध्यक्ष एवं वेटिंग-इन- सीएम कमलनाथ को यह संकेत दिए हैं कि ग्राउंड रियलिटी में करीब 30 मौजूदा विधायकों की स्थिति बहुत कमजोर है. इसमें प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी से लेकर कमलनाथ के कई खास क्षत्रप विधायक सुखदेव पांसे, निलय डागा, ओमकार सिंह मरकाम, एनपी प्रजापति और रवि जोशी तक शामिल है. इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी मानते हैं कि बुंदेलखंड में पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है. पिछले चुनाव में निमाड़ क्षेत्र में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी किंतु कमलनाथ और अरुण यादव के बीच चल रहे शीत युद्ध के चलते संगठन की स्थिति कमजोर पड़ती नजर आ रही है. इसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है. यानी पिछले चुनाव नतीजों की तुलना में इस चुनाव में निमाड़ से भी कम सीटें मिलने के आसार हैं. वैसे भी निमाड़ क्षेत्र खासकर आदिवासी क्षेत्रों में जयस कांग्रेस की जीत का समीकरण बिगाड़ रही है. इसी प्रकार महाकौशल में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी अपने प्रत्याशी खड़े कर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति बना रही है. प्रदेश की करीब 65 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां कांग्रेस को पिछले तीन विधानसभा चुनावों से सफलता हाथ नहीं लगी है. हालांकि कमलनाथ ने इन 65 सीटों पर पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री एवं चुनावी गणितज्ञ दिग्विजय सिंह को सौंपी है. इन सीटों पर दिग्विजय सिंह दौरा कर कांग्रेस को एकजुटता से चुनाव लड़ने की घुटी पिला चुके हैं. 65 सीटों पर दिग्विजय सिंह द्वारा की गई मेहनत का चुनाव में क्या असर पड़ता है, यह आने वाला वक्त बताएगा. इन विधायकों के क्षेत्र में स्थिति कमजोर कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के अनुसार आगामी विधानसभा चुनाव में लगभग 30 विधायकों की स्थिति कमजोर है. यानी उनकी जीत को लेकर लेकर संशय है. मसलन, खरगोन जिले की 3 विधानसभा क्षेत्र भीकनगांव, महेश्वर, और खरगोन विधानसभा क्षेत्र में जयस ने कांग्रेस के समीकरण को बिगाड़ दिया है. इसी प्रकार बड़वानी जिले की सेंधवा विधानसभा क्षेत्र में ग्यारसी लाल रावत और थांदला में वीर सिंह भूरिया की जीत पर कांग्रेस संशय में हैं. कमोबेश यही स्थिति धार जिले की धरमपुरी, मनावर और सरदारपुर की है. इंदौर में संजय शुक्ला और राऊ विधायक जीतू पटवारी और भोपाल की दक्षिण-पश्चिम विधानसभा में पीसी शर्मा की जीत पर असमंजस के बादल मंडरा रहे हैं. बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी और भैंसदेही विधानसभा क्षेत्र में जयस की सक्रियता से कांग्रेस की जीत के समीकरण गड़बड़ा रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के किचन केबिनेट विधायक सुखदेव पांसे और निलय डागा की जीत पर भी संदेह है. महाकौशल में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की सक्रियता के कारण मंडला जिले के निवास विधायक डॉ अशोक मर्सकोले, बिछिया विधायक नारायण सिंह पट्टा और डिंडोरी विधायक ओमकार सिंह मरकाम की जीत पर भी दुविधा बनी हुई है. प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की कर्मस्थलीय जिला छिंदवाड़ा की 7 में से 3 विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले कमजोर है.दिलचस्प पहलू यह है कि भाजपा आलाकमान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को छिंदवाड़ा में ही घेरने की विशेष रणनीति तैयार की है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ स्वयं यह मानते हैं कि बुंदेलखंड में कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है. यानी आलोक चतुर्वेदी, विक्रम सिंह नातीराजा और नीरज विनोद दीक्षित की जीत पर दुविधा बनी हुई है. 5000 से कम अंतरों से जीते कांग्रेस विधायक कांग्रेस के करीब 13 विधायक ऐसे हैं, जो 5000 से भी कम अंतर से जीते हैं. इस बार ग्राउंड पर उनकी स्थिति कमजोर नजर है. अब सरकार की एंटी-इनकंबेंसी ही उन्हें जिता सकती है. मसलन, ग्वालियर दक्षिण के प्रवीण पाठक मात्र 121 वोटों के अंतर से जीते हैं. वैसे ग्वालियर दक्षिण विधानसभा बीजेपी की परंपरागत सीट रही है. इसी प्रकार जबलपुर उत्तर से विनय सक्सेना -578, राजनगर से विक्रम सिंह नातीराजा – 732, ब्यावरा से गोवर्धन दांगी-826, बड़वानी विधायक बाला बच्चन- 932, मांधाता विधायक नारायण पटेल-1236, तराना विधायक महेश परमार -2209, घटिया विधायक रामलाल मालवीय-4628, छतरपुर विधायक आलोक चतुर्वेदी – 3495, पिछोर विधायक केपी सिंह कक्काजू-2675 और झाबुआ विधायक बाल सिंह मेड़ा – 5000 मतों के अंतर से जीते हैं. आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी स्थिति डांवाडोल हो रही है. कई सीटों पर जिताऊ उम्मीदवार नहीं भोपाल की बैरसिया, गोविंदपुरा, नरेला और हुजूर विधानसभा क्षेत्रों सहित करीब 70 से 80 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस को जिताऊ उम्मीदवार नहीं है. इसके अलावा बुधनी, सीहोर, सांची, सांवेर, जबलपुर कैंट, विजय राघौगढ़, धार, बदनावर, नेपानगर, उज्जैन दतिया, आमला, अंबाह, जावरा, सुवासरा, शिवपुरी, गुना, रेहली, नरयावली, सागर, हटा, रामपुर बघेलान, रीवा, त्योंथर, सीधी, सिंगरौली, जैतपुर, जयसिंह नगर, बांधवगढ़, मानपुर, मुड़वारा, पनागर, सिहोरा, बालाघाट, सिवनी, टिमरनी, सिवनी मालवा, होशंगाबाद, सोहागपुर, पिपरिया, भोजपुर, सिलवानी, शमशाबाद, शुजालपुर, देवास, खातेगांव, बागली, हरसूद, खंडवा पंधाना बुरहानपुर धार, इंदौर क्रमांक दो, इंदौर क्रमांक 4 इंदौर क्रमांक 5 समेत करीब 80 सीटें ऐसी है, जहां कांग्रेस पिछले 15 सालों से जिताऊ उम्मीदवार तैयार नहीं कर सका है.
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