संगीत और पारंपरिक वेषभूषा के माध्यम से दी श्रीरामकथा की प्रस्तुति

अंतर्राष्ट्रीय श्रीरामलीला उत्सव में प्रथम प्रस्तुति हिन्दू प्रचार केंद्र, त्रिनिदाद एंड टोबैगो के कलाकार द्वारा श्रीरामकथा की दी गई, जिसमें कलाकारों ने लोकगीत से प्रस्तुति की शुरूआत की। इसके बाद सूत्रधार श्रीरामकथा के माता सीता हरण, जटायु वध, शबरी कथा, श्रीहनुमान मिलन और माता सीता- श्रीराम दरबार(राज्याभिषेक) प्रसंग को कहता है और कलाकारों ने अभिनय, संगीत के माध्यम से प्रस्तुति दी। 13 कलाकारों द्वारा हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में लाइव प्रस्तुति दी गई। प्रस्तुति में राम-श्रीओमप्रकाश सिंह, लक्ष्मण- श्रीधनराज लौतान, सीता-सुश्री प्रशांता सिंह एवं सुश्री शांता रामनाथ,श्रीहनुमान-श्री ईशहरी, रावण-श्री देव आनंद रामशरण ने किरदार निभाया।  इसमें जटायु की वेशभूषा त्रिनिदाद एंड टोबैगो कार्निवाल से ली गई है। रामायण की परंपरा है वह त्रिनिदाद एंड टोबैगो में वर्ष 1845 से प्रारंभ हुई है। यह दल 2007 से लगातार देशों में प्रस्तुति दे चुका है।

मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, नई दिल्ली के सहयोग से 22 अक्टूबर तक श्रीरामकथा के विविध प्रसंगों एकाग्र सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय श्रीरामलीला उत्सव का आयोजन रवींद्र भवन मुक्ताकाश मंच तथा परिसर में किया गया है। उत्सव के छठवें दिन कार्यक्रम की शुरूआत कलाकारों के स्वागत से की गई। इस दौरान संचालक संस्कृति अदिति कुमार त्रिपाठी, सहायक संचालक सुश्री वंदना जैन एवं अन्य अधिकारी, कर्मचारी तथा बड़ी संख्या में श्रोता-दर्शक उपस्थित रहे। 21 अक्टूबर– हिन्दू प्रचार केंद्र, त्रिनिदाद एंड टोबैगो के कलाकार द्वारा श्रीरामकथा, श्रीरघुनाथजी लीला प्रचार समिति, पुरी (उड़ीसा) द्वारा श्रीराम-सुग्रीव मित्रता, हनुमान-रावण संवाद एवं लंका दहन प्रसंग की प्रस्तुति दी गई।

श्रीहनुमान-रावण संवाद एवं लंका दहन
दूसरी प्रस्तुति श्रीरघुनाथजी लीला प्रचार समिति, पुरी (उड़ीसा) द्वारा श्रीराम-सुग्रीव मित्रता, श्रीहनुमान-रावण संवाद एवं लंका दहन प्रसंग की प्रस्तुति दी गई। गुरूनिर्मलदास दास जी महाराज ने बताया कि प्रस्तुति में कलाकारों ने उड़ीसा की पारंपरिक रामलीला जात्रा नाट्य शैली में प्रस्तुति दी। यह शैली 219 साल पुरानी है। जिसमें शारीरिक अभिनय, प्रभावी संगीत-संवाद, पौराणिक वेशभूषा के माध्यम से प्रस्तुति दी।  वहीं गुरू निर्मलदास जी ने कहा कि जब भी प्रस्तुति के लिये वे गाँव से निकलते हैं तो सबसे पहले दसपल्ला गाँव (मायागढ़) में भगवान श्रीहनुमान की पूजा-अर्चना करके प्रस्तुति के लिये निकलते हैं। लीला के प्रमुख कलाकार तब तक उपवास रखते हैं जब तक की प्रस्तुति समाप्त न हो जाये। प्रस्तुति के बाद ही प्रमुख कलाकार उपवास तोड़ते हैं।

श्रीराम-सुग्रीव मित्रता दृश्य को दिखाया
प्रस्तुति में श्रीराम-सुग्रीव मित्रता दृश्य को दिखाया, जिसमें सुग्रीव से बाली द्वारा राज पाठ छीन लेने से सुग्रीव सदैव भयभीत रहते थे, कि कहीं बाली किसी को उन्हें मारने के लिए न भेज दे, लेकिन भगवान श्रीहनुमान पर्वत पर राजा सुग्रीव के साथ उनके मित्र और रक्षक बनकर रहते थे। इसी प्रकार एक दिन प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण माता सीता की खोज करते हुए पंपासर तट पर पहुंच जाते हैं। सुग्रीव के गुप्तचरों ने उन्हें बताया कि दो तेजस्वी ब्राह्मण इसी पर्वत पर बढ़े जा रहे हैं, किन्तु दोनों के हाथों में धनुष है और दोनों ही बलवान प्रतीत होते हैं। यह सुनकर सुग्रीव डर जाते हैं और गया, उसे लगा बाली ने ही इन दोनों को वेष बदल कर मारने भेजा है। सुग्रीव को आश्वस्त कर श्रीहनुमान ब्राह्मण के वेष में श्रीराम और लक्ष्मण के सामने पहुंचे। तब ही श्रीहनुमान-श्रीराम मिलन होता है और प्रभु श्रीराम को श्री हनुमान साथ ले जाकर राजा सुग्रीव से मिलाते हैं। अगले दृश्य में बाली वध, श्रीहनुमान-रावण संवाद एवं लंका दहन प्रसंग को प्रस्तुत किया।

भक्ति गायन की प्रस्तुति
21 अक्टूबर को दोपहर प्रस्तुति अंतर्गत अभिषेक निगम एवं साथी, उज्जैन द्वारा भक्ति गायन की प्रस्तुति दी गई । उन्होंने सेवा म्हारी मनीलो गणेश देवा गोरखनाथ…, राम रमे है चौक में…,राम रस मिठो घनो र.., राम म्हारे घर आना…,चोसट जोगनी…, गीतों की प्रस्तुति दी। मंच पर गायन में श्री अभिषेक निगम, सह गायन में श्री प्रहलाद गेहलोत, प्रलभ श्रीवास्तव, ढोलक पर श्री विशाल कुशवाहा, वायलिन पर श्री राधे पारस, तबले पर श्री देवेंद्र विश्वकर्मा ने संगत की।अगली प्रस्तुति श्री मनीष यादव एवं साथी सागर द्वारा बरेदी नृत्य प्रस्तुति की दी गई। बुंदेलखंड का यह लोकनृत्य कार्तिक माह में अमावस्या से पूर्णिमा तक नृत्य किया जाता है।  ग्वाला समुदाय अपने पशुओं को सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मुख्यतः ग्वाल समुदय का नृत्य है बरेदी। छोटे बच्चे कृष्ण का रूप धर कर हाथ में लाठी लेकर घर-घर जाते हैं और बांसुरी की लय, ढोलक की थाप पर विभिन्न हस्त पद संचालन के साथ नृत्य करते हैं और अन्न प्रसादी प्राप्त करते हैं। दीपावली के दूसरे दिन गौमाता व गोवर्धन की पूजन के बाद उल्लास के साथ सामूहिक नृत्य किया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं पर आधारित होता है।

“संकटमोचन” चित्र प्रदर्शनी का संयोजन
श्रीहनुमान कथा की चौपाइयों और दोहों को 42 चित्रों में समेटाउत्सव अंतर्गत पहली बार श्री हनुमान चालीसा आधारित “संकटमोचन” चित्र प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है। श्रीहनुमान के महान चरित को पहली बार चित्रात्मक रूप से अभिव्यक्त करने का कार्य मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा किया गया है। चित्र सृजन का कार्य ख्यात चित्रकार श्री सुनील विश्वकर्मा-वाराणसी के द्वारा किया गया है। प्रदर्शनी में उनके द्वारा बनाये 42 चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। श्री विश्वकर्मा की विशिष्टता भारतीय आध्यात्मिक चरितों को पूर्ण शुचिता के साथ अभिव्यक्त करने की रही है।

टेराकोटा, बांस, लोहा, पीतल, तांबा एवं अन्य धातु से बने उत्पादों का प्रदर्शन

185 से अधिक शिल्पीदीपावली के अवसर पर दीपोत्सव मेला अंतर्गत 185 से अधिक शिल्पी विविध माध्यमों के शिल्प एवं वस्त्र, टेराकोटा, बांस, लोहा, पीतल, तांबा एवं अन्य धातु से बने उत्पादों का प्रदर्शन और विक्रय किया गया। शिल्प मेले में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, कश्मीर, दिल्ली एवं अन्य राज्यों के बुनकर और शिल्पकारों ने हिस्सा लिया है। सभी शिल्पी अपने-अपने विशिष्ठ शिल्पों के साथ इस मेले में पधारे हैं। शिल्पों में प्रमुख रूप से दीपों के त्योहार में उपयोग की जाने वाली सामग्री जैसे दीपक, हैंगिंग लाइट्स, हैंगिंग डेकोरेटिव आइटम्स इत्यादि हैं। साथ ही बनारसी साड़ी, चंदेरी साड़ी, भोपाली बटुये, जरी-जरदोजी, मिट्टी के खिलौने, गोंड-भील एवं मधुबनी पेंटिंग, साज-सज्जा आइटम, मेटल आयटम, बांस से बने शिल्प, सिरेमिक आर्ट इत्यादि भी खास हैं। दीपोत्सव मेले में मध्यप्रदेश के श्री पवन गंगवाल अपने साथ दाबू प्रिंट के वस्त्र लेकर आये हैं। बातचीत में उन्होंने बताया कि दाबू का अर्थ है दबाना। दबाने की प्रक्रिया में एक मिश्रित पेस्ट का प्रयोग होता है जिसमें चूना, गोंद, गुड़, तेल, गेंहू एवं काली मिट्टी का प्रयोग किया जाता है और अलग अलग विधियों के माध्यम से वस्त्र तैयार किया जाता है।  

स्वाद- व्यंजन मेला
स्वाद- व्यंजन मेलाउत्सव अंतर्गत स्वाद- व्यंजन मेला में बघेली व्यंजन में पानी वाला बरा-चटनी, रसाज, बुंदेली व्यंजन में गोरस, बिजोरा, गुलगुला एवं राजस्थानी व्यंजन में जोधपुरी प्याज की कचौरी, मिर्ची बड़ा, छोले टिक्की, बिहारी व्यंजन में लिट्टी-चोखा, मराठी व्यंजन एवं सिंधी तथा भील एवं गोण्ड जनजातीय समुदाय के व्यंजन भी शामिल हैं। वहीं लोकराग के अंतर्गत नृत्य, गायन एवं कठपुतली प्रदर्शन की गतिविधियाँ प्रतिदिन दोपहर 2 बजे से रवींद्र भवन परिसर में आयोजित की जायेंगी। कार्यक्रम में प्रवेश निःशुल्क है एवं आप सादर आमंत्रित हैं।

उत्सव में 22 अक्टूबर

श्री सत्संग रामायण ग्रुप, फिजी द्वारा श्रीरामकथा एवं श्री आदर्श रामलीला मंडल, सतना (म.प्र) द्वारा लक्ष्मण शक्ति, मेघनाथ-रावण वध एवं श्रीराम राज्याभिषेक प्रसंग मंचित करेंगे। 

लोकराग के अंतर्गत नृत्य, गायन एवं कठपुतली प्रदर्शन

श्री रूद्रकांत ठाकुर एवं साथी, सिवनी द्वारा भक्ति गायन एवं सुश्री श्वेता अग्रवाल एवं साथी रीवा द्वारा अहिराई नृत्य प्रस्तुति

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