21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस है और 22 मार्च को विश्व जल दिवस । वन है तो जल है। वन बचेगा तो ही जल रहेगा. कुछ स्वार्थी समूह जंगल उजाड़कर बस्ती बसाने में लगे है. ऐसे नासमझ को समझाने एक वृतांत दोहराता हूं।
रिटायर्ड APCCF आरजी सोनी
जब गंगा जी पृथ्वी में अवतरण को तैयार हो गई तो उन्होंने कहा मुझे रोकेगा कौन ? वरना मैं पृथ्वी को रसातल में ले जाऊंगी। इस पर भगीरथ ने भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया। शिव ने अपनी जटाएं फैलाई और गंगा को अपनी जटाओं में ही धारण कर लिया। तब भगीरथ के कहने पर एक धारा के रूप में छोड़ा। शिव कल्याणकारी है। शिव ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड है। आज भी हिमालय के उस भाग को शिवालिक कहा जाता है। अर्थात शिव की जटाएं। वास्तव में वन, शिव की जटाएं ही है यदि हमे नदियों से वर्ष भर निरंतर पानी चाहिए, जिससे नदियां सदानीरा रहे तो हमे सम्पूर्ण देश और विश्व के हर स्थान के वनों को बचाना ही होगा। वनों की अंधाधुन्द कटाई का परिणाम अब प्रत्यक्ष है। झाबुआ में कितना वन था, लेकिन कुछ लोगों की लालच और उकसावे पर आदिवासियों में से कुछ समूहों ने सारे वन नष्ट कर डाले आज वहां के आदिवासी दूसरे प्रदेशों और मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में मामा के नाम से मज़दूरी करते मिल रहे है। कुछ लोगों की करतूत पूरे समाज को झेलनी पड़ती है। यही हाल होगा बुरहानपुर का। बड़वानी का हाल मैं देख चुका हूं जहां का वन नष्ट होने के कारण किस कदर भुखमरी है । नर्मदा की सिंचित क्षेत्र तो ठीक है। हमने बांस के वन नष्ट कर दिए जबकि बांस वन सबसे अधिक आर्दता वाले क्षेत्र होते है। सबसे अधिक जीवो का संरक्षण करने वाले है। बालाघाट सबसे अधिक वर्षा का क्षेत्र बांस वनों के कारण है और आस पास के जिलों और गढ़ चिरौली के क्षेत्र में सम्रद्ध धान की फसल का राज बांस वन है। क्या हम प्रदेश के केवल एक जिले में बचे बांस वन को बचाने की सोच रहे है, उत्तर है नहीं। पहले हमको यही नही मालूम कि समस्या क्या है? बांस वनों के सम्पूर्ण क्षेत्र का विदोहन नही होने से बांस वन बरबाद हो जाएंगे। अधिकांश वनो में 40 % तक क्षेत्र लैंटाना से ग्रसित है जिसके कारण वहां कोई पुनरुत्पादन नहीं हो रहा धीरे- धीरे पुराने वृक्ष सड़ जाएंगे तब केवल लैंटाना ही बचेगा । वनों को बचाये तो पानी भी बचेगा। पानी के संरक्षण के जो उपाय है वो करना पड़ेगा।
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