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विश्व रंग, साझा संसार नीदरलैंड्स, भारतीय ज्ञानपीठ और वनमाली सृजन पीठ, दिल्ली का संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय आयोजन

विश्व रंग, साझा संसार नीदरलैंड्स, भारतीय ज्ञानपीठ और वनमाली सृजन पीठ, दिल्ली का संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय आयोजन

वरिष्ठ कवि–कथाकार, “विश्व रंग” के स्वप्न दृष्टा एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के
कुलाधिपति श्री संतोष चौबे की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “साहित्य का विश्व रंग” का
अनूठा आयोजन साझा संसार, नीदरलैंड्स, विश्व रंग, भारतीय ज्ञान पीठ और वनमाली सृजन
पीठ, दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से जूम एवं फेसबुक लाईव पर किया गया। उल्लेखनीय है कि साहित्य का विश्व रंग का निरंतर यह सातवां अंतर्राष्ट्रीय आयोजन है।

साहित्य का विश्व रंग की अध्यक्षता करते हुए श्री संतोष चौबे ने सभी प्रवासी भारतीय
रचनाकारों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि आप सभी की रचनाएं विविधता के साथ-साथ
भाषा, कथ्य एवं शिल्प के स्तर पर बहुत ही सार्थक रचनाएं है। उल्लेखनीय है कि श्री संतोष चौबे ने कोरोना के लॉकडाउन काल में विश्व के सुप्रसिद्ध रचनाकार
ई.एफ.शूमाकर की चर्चित पुस्तक “गाइड फॉर परप्लेक्स्ड” का हिंदी अनुवाद “भ्रमित आदमी के
लिए एक किताब” (कोविड के बाद की दुनिया के लिये) नाम से किया है। श्री संतोष चौबे द्वारा
अनुदित पुस्तक को बड़े पैमाने पर देश–विदेश में पढ़ा और सराहा गया है। इस अवसर पर
उन्होंने इस पुस्तक से कुछ अंशों का अविस्मरणीय पाठ किया।
वरिष्ठ कवि एवं विश्व रंग अंतर्राष्ट्रीय आयोजन के सह निदेशक श्री लीलाधर मंडलोई ने कहा
कि साहित्य का विश्व रंग के आयोजन को सालभर हो रहा है। इसके शुरुआती दौर में हमने
मिलकर एक सपना बुना था। हम लोग एक-एक तिनका बिलकुल उस बयां की तरह जुटा रहे थे,
जिसमें वैविध्य हो, जिसमें खुबसूरती हो और कन्टेन्ट के रूप में हम कुछ नये रूपाकार दे सके।
आज वह सपना एक बयां के घोसले की मानिंद बहुत सुंदर हो उठा है।

सर्वप्रथम प्रवासी भारतीय रचनाकारों व सभी साहित्यप्रेमी श्रोताओं का स्वागत साझा संसार,
नीदरलैंड्स के निदेशक श्री रामा तक्षक द्वारा किया गया।
इस अवसर पर आयरलैंड से वरिष्ठ साहित्यकार–पत्रकार श्री अभिषेक त्रिपाठी ने अपने
संस्मरणात्मक आलेख में उत्तरी आयरलैंड एवं दक्षिण आयरलैंड की ऐतिहासिक तस्वीर को बहुत
ही संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया।
नीदरलैंड्स से युवा लेखिका सुश्री शिवन्तिका श्रीवास्तव ने कोरोना विभिषिका के लॉकडाउन काल
में छोटे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, खेलकूद एवं उनके संपूर्ण विकास पर पड़ रहे प्रभावों के
विरूद्ध पंचतंत्र की कहानियों के अनूठे प्रयोग से बच्चों की रचनात्मकता को बनाए रखने की
शिक्षाप्रद पहलकदमी को अपनी संस्मरणात्मक कहानी के माध्यम से बहुत ही सुंदरता के साथ
प्रस्तुत किया। नीदरलैंड्स की धरती पर इस कठिन समय में बच्चों की रचनात्मकता के लिये
पंचतंत्र की कहानियों का यह अभिनव प्रयोग वर्तमान समय में इनकी सार्थकता को दर्शाता है।
स्पेन से वरिष्ठ कहानीकार सुश्री पूजा अनिल ने अपनी चर्चित कहानी “भीतरी तहों में” से
नायिका आयशा का बहुत ही रूमानियत और अहसासों से भरा प्रेम पत्र का अविस्मरणीय पाठ
कर ‘साहित्य के विश्व रंग’ की शाम को प्रेम के रंगों से भिगो दिया।
बल्गारिया से वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री मोना कौशिक ने अपनी लघुकथा “लाल मखमली जुते” में
माता-पिता के रोज–रोज के झगड़ों के बीच तीन साल की अबोध बालिका के कोमल मन की
भावनाओं को रौंदे जाने को बहुत ही मार्मिकता से बयां किया। वहीं कहानी के अंत में रिश्तों की
आस की डोर को भी थामे रखा।
टोरंटो कनाडा से वरिष्ठ लेखिका सुश्री हंसा दीप ने अपनी कहानी “बड़ों की दुनिया में” आठ साल
की बालिका परि की बाल सुलभ भावनाओं को दरकिनार करते हुए परिवार के बड़े सदस्यों द्वारा
अपने विचार थोपे जाने के जरिए बाल मनोविज्ञान को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत
किया।
इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन का बहुत ही सुंदर, सफल एवं अविस्मरणीय संचालन नीदरलैंड्स की
युवा रचनाकार सुश्री शिवांगी शुक्ला द्वारा किया गया। संचालन के उनके अंदाजे बयां ने इस
अंतर्राष्ट्रीय आयोजन को हमेशा के लिए यादगार बना दिया।
उल्लेखनीय है कि इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन का तकनीकी संचालन नीदरलैंड्स से युवा रचनाकार
श्री आशीष कपूर द्वारा किया गया।

साझा संसार,हौलैंड के निदेशक वरिष्ठ रचनाकार श्री रामा तक्षक ने सभी आयोजक संस्थानों की
ओर से समस्त प्रवासी भारतीय रचनाकारों एवं साहित्यप्रेमियों का हार्दिक आभार व्यक्त करते
हुए कहा कि इस कठिन समय में भी समय निकालकर आप सभी रचनात्मक आशा का संचार
संपूर्ण विश्व में कर रहे है, यह अनुकरणीय है, वंदनीय है, इसके लिये आप सभी का बहुत-बहुत
हार्दिक साधूवाद, बहुत–बहुत आभार।
उल्लेखनीय है कि जूम एवं फेसबुक पर इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन “साहित्य का विश्व रंग”
अंतर्राष्ट्रीय आयोजन को कई देशों में साहित्यकारों एवं रचनाधर्मियों ने देखा, सुना और सराहा।

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