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विमुद्रीकरण 2 साल से चल रहा था: संजीव भास्कर दाते

विमुद्रीकरण 2 साल से चल रहा था । बैंको ने बिना हल्ला किए 500 और 100 रुपये के सारे नोट ही पिछले 2 साल में बदल दिये थे। जो लोग 2016 की तुलना 1978 के करते हैं उन्हें नहीं पता है कि 1978 में जब 10000 रुपये के नोट के चलन पर रोक लगाई गयी तब केवल 326 बड़े नोट ही चलन में थे । और 2016 में 15 लाख करोड़ चलन में थे।स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी की मासिक पब्लिक लेक्चर सीरीज में प्रज्ञा प्रवाह के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में आज विमुद्रीकरण पर हुई चर्चा में मुख्य वक्ता पूर्व बैंक अधिकारी संजीव भास्कर दाते (पूर्व सीईओ इंदौर परस्पर बैंक ) ने यह कहा।
दाते ने कहा नवंबर 2016 में देश की स्थिति ऐसी बन गयी थी कि सरकार के पास विमुद्रीकरण लागू करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था। चर्चिल ने दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी को बर्बाद करने के लिए बड़ी मात्र में जाली मुद्रा भेजने की रणनीति बनाई थी जिसका परिणाम यह हुआ था जर्मनी में 5 करोड़ मार्क के नोट से आप ब्रेड के 2 टुकड़े नहीं खरीद सकते थे।
संजीव भास्कर दाते ने यह कहा जो लोग बैंक में काम करते हैं उन्हें पता है कि पिछले 2 -3 सालों में देश के बैंक काउंटर पर जाली मुद्रा की बाढ़ सी आ गयी थी । और ये हमला लगातार बढ़ता जा रहा था । ऐसी चुनौती से निपटने के लिए सरकार के पास विमुद्रीकरण के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा था।
इससे सरकार को क्या फायदा क्या हुआ इसकी असली जानकारी आपको 30 जून 2017 को ही मिल सकेगी जब रिजर्व बैंक अपनी बैलेन्स शीट तैयार करेगा । अभी मीडिया में जो आ रहा है वो बिना जानकारी के लगाये जा रहे कोरे अनुमान ही हैं। विमुद्रीकरण के असली फायदे आपको 1 साल बाद देखने को मिलेंगे अभी तो बस सांकेतिक फायदे के रूप में ब्याज दर ही कम हुई है पर परिणाम बहुत सारे हुए हैं जो धीरे धीरे आपके सामने आएंगे।
कैशलेस इकॉनमी भारत के नैतिक स्तर को ऊपर उठाने का एक सुनहरा मौका है क्योंकि कभी भी कोई व्यक्ति रिश्वत का ऑनलाइन ट्रांजेकशन नहीं करेगा। पूरे दुनिया में इस समय एक लहर चल रही है जिसके केंद्र में है – राष्ट्र सर्वोपरि की भावना । ट्रम्प, पुतिन और शिंजों आबे इसी विचारधारा के बल पर अपने देश का पुनर्निर्माण कर रहे है तो भारत इसे क्यों नहीं अपनाता। हम सबको “राष्ट्र सर्वोपरि” भाव से काम करते हुए देश की भलाई के लिए उठाए जा रहे कदमों का समर्थन करना चाहिए।
सीईओ, हुड़को चेयर , प्रशासन अकादमी हरेन्द्र मोहन मिश्र ने कहा विमुद्रीकरण एक ऐसा कदम है जिसने देश के भष्ट-तंत्र का खात्मा कर दिया है। हमारी परेशानी ये है कि हम चाहते तो सब अच्छा अच्छा हैं पर उसके लिए खुद कुछ नहीं करना चाहते।
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