राज्यों में सरकारें पांच साल के लिए बनती हैं और जनता के मुद्दों पर चर्चा के लिए सदन में सत्र बुलाए जाते हैं। अब सरकार में आने के बाद राजनीतिक दलों के नुमाइंदे जनता के मुद्दे पर चर्चा करने के बजाय सदन को अखाड़ा बना लेते हैं। 30 साल पहले मध्य प्रदेश विधानसभा में चर्चा के लिए जितना समय माननीय लेते थे आजकल वह सिमटकर एक चौथाई रह गया है। 15वीं विधानसभा का अंतिम सत्र तो मात्र 2 घंटे 34 मिनट में ही सीधी पेशाब कांड आदिवासी अत्याचार महाकाल लोक घोटाला सतपुड़ा भवन अग्निकांड के मुद्दों पर कांग्रेस के हंगामे और सत्ता पक्ष के चर्चा कराने से दूर रहने की वजह से खत्म हो गया. आपको बताते हैं छह विधानसभा में माननीयों ने कितने दिन व समय चर्चा के लिए सदन में दिया।
मध्य प्रदेश विधानसभा का इतिहास रहा है कि यहां मुद्दों पर चर्चा करने के लिए समय की पाबंदियां कभी नहीं रहीं और मध्य रात तक कार्रवाई चलती रही हैं लेकिन 30 साल में माननीयों ने सदन में अपनी बात रखने के लिए तर्कों के बजाय हंगामा ज्यादा किया। यह गिरावट 10वीं विधानसभा के बाद 11वीं में विशेष नहीं हुई लेकिन इसके बाद हर विधानसभा में तेजी से ग्राफ गिरा और एक समय जब लगभग साढ़े पांच सौ घंटे चर्चा होती है वह सवा सौ घंटे के आसपास आ गई है।
दिग्विजय सरकार में नौ महीने तक विधानसभा चली
दिग्विजय सरकार 1993 से 2003 तक रही और तब विधानसभा में मुद्दों पर चर्चा के लिए लंबा समय मिलने से कार्यवाही के दिन भी पांच साल में नौ महीने के लगभग हो जाते थे। दिग्विजय सरकार के पहले टर्म 1993-98 में विधानसभा के पांच साल में 13 सत्र हुए लेकिन इसमें विधानसभा की कार्यवाही के लिए 283 दिन का समय मिला था। सदन के भीतर माननीयों द्वारा चर्चा के लिए भी विशेष रुचि ली जाती थी जिससे 283 दिन सदन की कार्यवाही चलने के साथ 534 घंटे तक चर्चा संभव हो सकी थी। यानि 22 दिन से ज्यादा की चर्चा हुई। दिग्विजय सरकार के दूसरे कार्यकाल 1998-2003 में भी पांच साल में 13 सत्र हुए और सत्रों की अवधि 288 दिन की रही। 288 दिन की विधानसभा की कार्यवाही में माननीयों ने जनता से जुड़े मुद्दों और विकास व सरकार के कामकाज की खामियां बताने के लिए 517 घंटे सदन में चर्चा के लिए दिया।
दिग्विजय सरकार के बाद सत्र बढ़े, समय घटता गया
दिग्विजय सरकार के बाद भाजपा की सरकारें आईं जिनमें विधानसभा के सत्रों की संख्या तो बढ़ी लेकिन चर्चा के लिए निर्धारित दिनों के पहले सत्र समाप्त होने व चर्चा के लिए समय में भी तेजी से कमी आई। 12वीं विधानसभा में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री आए जिनमें उमा भारती, बाबूलाल गौर और मौजूदा सीएम शिवराज सिंह चौहान शामिल हैं। 12वीं विधानसभा में विधानसभा के 15 सत्र हुए लेकिन इनमें केवल 159 दिन बैठकें हुईं। इन बैठकों में 275 घंटे विधायकों ने विभिन्न मुद्दों व विषयों पर चर्चा की। इसके बाद 13वीं और 14वीं विधानसभा में 17-17 सत्र बुलाए गए लेकिन 13वीं विधानसभा में 167 दिन बैठकें बुलाई गईं जिनमें चर्चा के लिए 265 घंटे का समय विधायकों को मिल सका। 14वीं विधानसभा में 135 दिन बैठकें बुलाई गईं और चर्चा के लिए समय घटकर मात्र 182 घंटे रह गया।
15वीं विधानसभा में 128 घंटे ही माननीयों ने की सदन में चर्चा
मंगलवार 12 जुलाई 2023 को 15वीं विधानसभा का 15वां और आखिरी सत्र खत्म हो गया। इस विधानसभा के दौरान कोविड महामारी की वजह से कुछ सत्र औपचारिक रूप से हो सके। विधानसभा में 79 दिन बैठकें बुलाई गईं जिनमें छह विधानसभा की तुलना में सबसे कम 128 घंटे ही चर्चा हो सकी। इस विधानसभा में शुरुआत के पांच सत्र कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के रहे तो 10 सत्र शिवराज सरकार को मिले। कमलनाथ सरकार ने पांच सत्रों में 28 बैठकें बुलाकर 49 घंटे सदन में विभिन्न विषयों व जनता के मुद्दों पर चर्चा की लेकिन इसके बाद विधानसभा के आखिरी सत्र तक शिवराज सरकार ने 51 दिन की बैठकों में 79 घंटे चर्चा कराई।
Leave a Reply