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विधानसभा चुनाव 2023ः विंध्य में कांग्रेस को खोने को कुछ नहीं मगर भाजपा को सीटों को सुरक्षित रखने की चुनौती

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में एकबार फिर विंध्य सरकार बनाने में मुख्य भूमिका निभाएगा क्योंकि यहां इस बार कांग्रेस का 2018 से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद दिखाई दे रही है। इस परिस्थिति में विंध्य में भाजपा को मौजूदा सीटों को बनाए रखने की चुनौती है जबकि कांग्रेस को खोने के लिए कुछ नहीं है सिवाय उसकी झोली में विधानसभा की 10 से ज्यादा सीटें पाने के। हालांकि यहां सिंगरौली में भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए एक नई चुनौी आम आदमी पार्टी है तो गौंडवाना गणतंत्र पार्टी आज भी दस विधानसभा सीटों पर पहले की तरह अपना दमखम दिखा सकती है। आईए जानते हैं विंध्य का चुनावी समीकरण।
विंध्य में मोटेतौर पर रीवा और शहडोल संभाग के रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया जिले आते हैं जिनमें 30 सीटें हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति में 2000 से पहले के करीब तीन दशक की राजनीति का केंद्र रहे विंध्य में कांग्रेस कमजोर हुई है जिसका नतीजा कांग्रेस सत्ता से दूर होती गई। यहां भाजपा ने दिन ब दिन अपने पैर जमाए और आज वह तीन चौथाई से ज्यादा सीटों पर अपना दबदबा बनाकर सरकार पर काबिज है। कांग्रेस को विंध्य में मजबूत बनाए रखने के लिए अर्जुनसिंह और श्रीनिवास तिवारी जैसे दिग्गज की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता और इन दोनों के जाने के बाद से यहां पार्टी को उबारने वाला कोई नेता सामने नहीं आया। हालांकि भाजपा के पास भी ऐसे नेता नहीं हैं लेकिन उनका संगठन मजबूत होने से विंध्य में बिखरी-बिखरी भाजपा भी विधानसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही है।
आज की स्थिति में भाजपा के पास ज्यादा सीटें
विधानसभा चुनाव 2018 में विंध्य की 30 सीटों में से 24 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की लेकिन उसे मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल में झटका लगने से वह सरकार बनाने से कुछ सीट दूर रह गई है। इसके पहले 1998 तक की स्थिति यह रहती थी कि विंध्य की 28 सीटों में से 16 कांग्रेस के पास हुआ करती थीं। 2013 में कांग्रेस को 12 विधानसभा सीटेंं मिली थीं लेकिन 2018 में बेहद खराब प्रदर्शन के साथ छह सीटों पर सिमटने से इस बार कांग्रेस ने यहां ताकत झोंक दी है।
कमलनाथ के हाथ में टिकट का फैसला
विंध्य की स्थितियों को देखते हुए इस बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने साफ कर दिया है कि किसी भी नेता के कहने पर टिकट नहीं दिया जाएगा और न ही काटा जाएगा। इससे यह साफ हो गया है कि विंध्य में टिकट बंटवारे में क्षेत्रीय नेताओं के हस्तक्षेप की संभावना कम हो गई हैं जिससे चितरंगी विधानसभा सीट पर कांग्रेस की 59 हजार की शर्मनाक हार जैसी स्थिति नहीं बनेगी।
अजय सिंह की सक्रियता से विंध्य में पार्टी को फायदा
पूर्व नेता प्रतिपक्ष और अर्जुनसिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे अजय सिंह इस बार अपने क्षेत्र के साथ विंध्य के अन्य क्षेत्रों में सक्रिय नजर आते हैं। उनके अब तक विरोधी समझे जाने वाले पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल से अजय सिंह के संबंधों में कटुता अब नजर नहीं आ रही है। मगर मामा-भांजे यानी राजेंद्र सिंह-अजय सिंह के अब तक एकसाथ विंध्य में दिखाई नहीं देने से पार्टी को पहले जैसे कुछ नुकसान हो सकता है। टिकट बंटवारे में इन तीनों स्थानीय नेताओं के बीच सामंजस्य की कमी पूर्व में बनी रही है और शायद इसीलिए कमलनाथ ने टिकट बंटवारे में अब वहां किसी नेता के हस्तक्षेप को लेकर अपने विचार स्पष्ट कर दिए हैं।
भाजपा के लिए चुनौती ही चुनौती
दूसरी तरफ विंध्य में भाजपा के लिए चुनौती ही चुनौती है क्योंकि उसका विंध्य में अब तक सबसे अच्छा प्रदर्शन आज विधानसभा में नजर आता है। मगर इतनी सीटें होने के बाद भी शिवराज मंत्रिमंडल में वहां का प्रतिनिधित्व उतनी संख्या में दिखाई नहीं देता। एकमात्र मीना सिंह वहां की एमएलए मंत्री मंत्रिमंडल में हैं जबकि बिसाहूलाल समझौते वाले मंत्री हैं। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम को मौका मिला है। विंध्य प्रदेश की मांग करके चुनौती पैदा करने वाले नारायण त्रिपाठी बागी जैसे हैं लेकिन उन्हें अभी तक किसी दल ने सहारा देने के लिए हाथ नहीं बढ़ाया है।
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