मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 का बिगुल अधिकृत रूप से भले ही नहीं बजा है लेकिन भाजपा-कांग्रेस की तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं। अब तक हमने आपको ग्वालियर-चंबल, विंध्य, बुंदेलखंड, महाकौशल और नर्मदापुरम क्षेत्र की 139 विधानसभा क्षेत्रों के पिछले पांच चुनावों के आकलन के आधार पर 2023 के हालातों से रूबरू कराया है। आज राजधानी भोपाल से सटे पांच जिलों की 25 विधानसभा सीटों का विश्लेषण बता रहे हैं जिसमें भाजपा लगभग आधी सीटों पर चार या पांच लगातार जीतकर भारी साबित रही है तो कांग्रेस उसके मुकाबले कमजोर दिखाई दी है। मगर विधानसभा चुनाव 2023 में पासा पलटने के आसार नजर आ रहे हैं। पढ़िये हमारी रिपोर्ट।
राजधानी भोपाल और उससे लगे चार अन्य जिलों रायसेन, सीहोर, विदिशा और राजगढ़ में 25 विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें से भोपाल की हुजूर, मध्य और रायसेन की सिलवानी सीट परिसीमन में 2008 में बढ़ी हैं। देखा जाए तो पिछले पांच चुनाव में भाजपा भोपाल की गोविंदपुरा और सीहोर की आष्टा सीट पर कभी भी नहीं हारी है तो उसने पिछले पांच में से चार चुनाव जिन सीटों पर जीते हैं, उनमें भी विदिशा, भोजपुर, कुरवाई, सिरोंज, शमसाबाद, सीहोर, इछावर, बुदनी, बैरसिया और सिलवानी (बरेली) सीटें शामिल हैं जबकि कांग्रेस इन चुनावों में भोपाल उत्तर सीट कभी नहीं हारी है तो चार चुनाव जीतने वाली सीटों में उसके खाते में खिलचीपुर विधानसभा है।
वोटों के ध्रुवीकरण वाली सीटों पर भाजपा भारी
यह कहा जा सकता है कि वोटों के ध्रुवीकरण वाली सीटों में भाजपा के खाते में काफी सीटें हैं जिनमें भोपाल नवाब के शासन वाले क्षेत्र रहे अधिकांश क्षेत्र शामिल हैं। इनमें सीहोर व रायसेन जिले की विधानसभा सीटें आती हैं। सीहोर जिले की सीहोर, इछावर, आष्टा तो रायसेन की सिलवानी व विदिशा की कुरवाई विधानसभा सीट शामिल मानी जा सकती हैं। कांग्रेस को भी वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ भोपाल की भोपाल उत्तर सीट पर मिलता रहा है।
कई नेता जननेता जैसे, अलग-अलग विधानसभा सीटों से जीतते रहे
भोपाल जिले से सटी विधानसभा सीटों में कुछ जननेता ऐसे भी हैं जिनका प्रभाव एक से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में माना जा सकता है। इनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित रामपाल सिंह, राघवजी तो कांग्रेस के देवेंद्र पटेल के नाम गिने जा सकते हैं। सीएम चौहान अपने गृह जिले सीहोर की बुदनी से अभी निर्वाचित हो रहे हैं तो पूर्व में विदिशा विधानसभा सीट व संसदीय सीट से भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनके अलावा रामपाल सिलवानी व उदयपुरा और राघवजी विदिशा, शमसाबाद में चुनाव जीत चुके हैं तो कांग्रेस के देवेंद्र पटेल ऐसे हैं जो उदयपुरा व सिलवानी सीट से चुनाव जीत चुके हैं। वैसे सिलवानी-उदयपुरा परिसीमन में बदली हैं।
कांग्रेस में दिग्विजय-पचौरी तो भाजपा में शिवराज का प्रभाव
भोपाल संभाग के पांच जिले राजनीतिक गतिविधियों से हमेशा जुड़े रहते हैं और यहां के मतदाताओं पर छोटी से छोटी राजनीतिक घटना का असर दिखाई देने लगता है। इन जिलों में भाजपा नेताओं में सीएम चौहान का विशेष प्रभाव रहा है क्योंकि उनका गृह नगर सीहोर है और स्कूल जीवन से ही वे भोपाल में रहे हैं। वहीं, कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी पांच दशक से भोपाल से जुड़े हैं तो पचौरी का कॉलेज जीवन से ही भोपाल से संबंध रहा है। यहां की 25 विधानसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के इन दिग्गजों की पकड़ हमेशा बनी रहती है। हालांकि पचौरी का चुनावी बैकग्राउंड उजला नहीं रहा है और वे किसी भी चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सकते हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी में उनकी दिल्ली में एक समय पकड़ जबरदस्त होने से उनका पार्टी में कार्यकर्ताओं का एक समूह बन गया है।
विधानसभा चुनाव 2023 में समीकरण ऐसे होने के आसार
आने वाले चुनाव में इस बार भोपाल संभाग की विधानसभा सीटों पर समीकरणों के बदलने के आसार दिखाई दे रहे हैं। भोपाल में संघ की ओर से दो सीटों पर प्रत्याशी दिए जाने की संभावना है। भोपाल की सात सीटों में से भोपाल उत्तर सीट पर कांग्रेस के लिए चुनौती बनने के आसार हैं क्योंकि यहां से लगातार चुनाव जीत रहे पूर्व मंत्री आरिफ अकील स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। उन जैसे प्रभाव का प्रत्याशी कांग्रेस के पास नहीं होने से भाजपा के लिए इस बार संभावनाएं बन रही हैं तो भोपाल दक्षिण पश्चिम में भी कांग्रेस के लिए चुनौती भरा लक्ष्य बनने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। कर्मचारी वर्ग बहुल सीट होने के बाद भी मौजूदा विधायक व पूर्व मंत्री पीसी शर्मा के लिए यहां कठिन हालात दिख रहे हैं जिससे प्रदेश नेतृत्व भी भली-भांति परिचित है। भोपाल मध्य पर भाजपा प्रत्याशी की दावेदारी में पूर्व विधायक ध्रुवनारायण सिंह का नाम आने से कांग्रेस के मौजूदा विधायक आरिफ मसूद के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। सीहोर में सीहोर सीट पर भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व विधायक रमेश सक्सेना को कांग्रेस अगर इस बार टिकट देती है तो भाजपा के हाथ से यह सीट छिटक सकती है क्योंकि सक्सेना का यहां प्रभाव है। रायसेन में उदयपुरा सीट से कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय मसानी तैयारी कर रहे हैं क्योंकि वहां किरार समाज की आबादी ज्यादा है। वैसे कांग्रेस के यहां मौजूदा विधायक देवेंद्र पटेल हैं जिनका टिकट काटकर मसानी को टिकट दिए जाने से पार्टी में असंतोष को नेता लेना नहीं चाहेंगे। भोजपुर सीट पर सुरेश पचौरी किस्मत आजमा चुके हैं और उनके अब चुनाव लड़ने की संभावना कम है तो दूसरे दावेदारों में से पार्टी को चुनने की चुनौती है।
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