मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के पहले हमने आपके सामने अब तक ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य, महाकौशल, नर्मदापुरम-भोपाल, निमाड़ की 187 सीटों का पिछले पांच चुनाव के आधार पर विश्लेषण पेश किया और उसी कड़ी में मालवा की 43 सीटों का एनालिसिस दे रहे हैं। हालांकि पांच चुनाव के आधार पर भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई देता है क्योंकि उसने यहां की 29 सीटों पर तीन या इससे ज्यादा जीत हासिल कर रखी है तो उसकी तुलना में कांग्रेस के पास ऐसी 10 सीटें ही हैं। पढ़िये हमारे विश्लेषणात्मक रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश में मालवा आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध क्षेत्र माना जाता है। यहां मिनी मुंबई इंदौर है जिसे मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी भी कहा जाता है तो ज्योतिर्लिंग महाकाल भी विराजमान हैं। आदिवासी बहुल आलीराजपुर-झाबुआ भी है जहां भील जनजाति की आबादी है। मालवा में मुख्य रूप से इंदौर, उज्जैन, आगर, देवास, शाजापुर, रतलाम, मंदसौर, नीमच, आलीराजपुर, झाबुआ आते हैं जहां विधानसभा की 43 सीटें हैं। आदिवासी बहुल आलीराजपुर-झाबुआ की सभी पांच सीटें जनजाति वाली हैं और इनके अलावा रतलाम की दो व देवास की एक सीट जनजाति आरक्षित है तो इंदौर की सांवेर, उज्जैन की तराना व घट्टिया, रतलाम की आलोट, आगर की आगर व देवास की सोनकच्छ विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति की हैं। शेष सभी 30 सीटें सामान्य हैं।
पांच चुनाव से भाजपा या कांग्रेस के कब्जे वाली सीटें
मालवा की चार सीटें हैं जहां 1998 से लेकर अब तक जितने चुनाव हुए हैं उनमें कांग्रेस को अब तक जीत नहीं मिली है। इनमें इंदौर की दो और चार नंबर तो देवास की देवास और खातेगांव सीट हैं जहां कांग्रेस को अभी जीत की दरकार है। इनके अलावा भाजपा का जहां 1998 से लेकर 2018 तक के चुनाव में तीन और चार बार चुनाव जीती है, उन सीटों में आलीराजपुर, झाबुआ, पेटलावद, इंदौर दो और पांच, महू, महिदपुर, तराना, उज्जैन उत्तर व दक्षिण, बड़नगर, रतलाम ग्रामीण व शहर, जावरा, आलोट, मंदसौर, गरोठ, मनासा, नीमच, जावद, बागली, हाट पीपल्या, शुजालपुर, आगर व सुसनेर शामिल हैं तो कांग्रेस के लिए ऐसी सीटों में शाजापुर, सोनकच्छ, जोबट, थांदला, देपालपुर, इंदौर तीन, सांवेर, घट्टिया, सैलाना और सुवासरा को शामिल किया जा सकता है।
इंदौर में कमजोर संगठन, कांग्रेस के लिए परेशानी
इंदौर में कांग्रेस के लिए जिला अध्यक्ष पर फैसला नहीं ले पाने की परिस्थितियां विधानसभा चुनाव के पहले मुसीबत पैदा कर सकती है। स्थानीय गुटबाजी का खामियाज जैसे जैसे समय बीत रहा है, पार्टी के लिए नुकसान बढ़ता जा रहा है। इंदौर में कमजोर संगठन का असर आसपास के जिलों पर भी पड़ता है। वैसे यहां भाजपा के संगठन में बहुत ज्यादा तालमेल दिखाई नहीं देता है और यही वजह से कांग्रेस के कमजोर संगठन का बीजेपी यहां लाभ उठाने की स्थिति में दिखाई नहीं दे रही है।
सिंधिया समर्थकों के समायोजन की बीजेपी को चुनौती
मालवा में सिंधिया समर्थकों की संख्या ग्वालियर-चंबल के बाद सबसे ज्यादा मालवा क्षेत्र में है जिनके समायोजन को लेकर भाजपा संगठन के सामने बड़ी चुनौती है। विधानसभा चुनाव में सिंधिया समर्थकों को इंदौर, उज्जैन, मंदसौर जैसे प्रमुख जिलों में टिकट वितरण में समायोजित करने में पार्टी को कठोर फैसले लेने होंगे जिससे चुनाव में विपरीत हालात भी पैदा हो सकते हैं। कांग्रेस इन परिस्थितियों पर नजरें गाड़े है और उसका फायदा लेने में वह कोई देरी नहीं करेगी।
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