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विधानसभा चुनाव 2023ः नर्मदापुरम BJP का गढ़, पचौरी की अपनों को उतारने की कवायद

विधानसभा चुनाव 2023 में होशंगाबाद को नर्मदापुरम नाम देने वाली भाजपा के लिए यहां के तीन जिलों की 11 सीटों पर अपना वर्चस्व जमाने में कामयाबी मिलती रही है क्योंकि यहां कांग्रेस के पास बड़े नेता के रूप में हजारीलाल रघुवंशी के अलावा कोई दूसरा नाम सामने नहीं आ सका है। अभी पार्टी के पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी यहां अपने गणित के मुताबिक टिकट दिलाने की कवायद में जुटे हैं जो होशंगाबाद जिले की कुछ सीटों पर नजर आ रही है। जानिये क्या है यहां राजनीति का गणित।
मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा किनारे बसा होशंगाबाद जो अब नर्मदापुरम हो गया है, उसके संभाग में नर्मदापुरम के अलावा बैतूल और हरदा जिले आते हैं। इन जिलों में विधानसभा की 11 सीटें हैं। इस जिले में 2008 के परिसीमन में कुछ सीटें बढ़ी हैं। पिछले चुनाव की स्थिति देखें तो यहां भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। अनुसूचित जनजाति सीटों में से केवल टिमरनी सीट पर भाजपा जीती है जहां कांग्रेस ने अच्छी टक्कर दी और मंत्री विजय शाह के भाई संजय शाह को उनके भतीजे अभिजीत ने नाकों चने चबा दिए। सामान्य सीटों पर भाजपा ने सात में से पांच सीटें जीतीं।
पचौरी बिछे रहे बिसात
नर्मदापुरम जिले में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का हस्तक्षेप रहा है और इस बार भी संगठन में ब्लाकों में नियुक्तियां उसी हिसाब से की गई है। अब तक जो चर्चा है उसके मुताबिक पचौरी अपने एक समर्थक विधायक के रिश्तेदार को सिवनी मालवा से टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि यह क्षेत्र हजारीलाल रघुवंशी का रहा है। यहां से उनके पुत्र ओम रघुवंशी एक बार विधायक भी रह चुके हैं लेकिन इस बार उनकी टिकट कटने के आसार हैं। इसी तरह होशंगाबाद से दिग्विजय सिंह समर्थक मानक अग्रवाल टिकट की दावेदारी कर रहे हैं जिनके पचौरी से संबंध कभी अच्छे नहीं रहे हैं। ऐसे में उनकी टिकट में अड़ंगा लगाकर किसी अन्य को टिकट दिलाने में पचौरी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।
बैतूल में टकराव की स्थिति
बैतूल जिले में संगठन और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के बीच टकराव के संबंध हैं। विधायक सुखदेव पांसे हो या निलय डागा या संगठन के कुछ पदाधिकारी, इनके बीच समन्वय नहीं होने से पिछले दिनों पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ तक शिकायतें भी पहुंची थीं। इस जिले में मौजूदा विधायकों की स्थिति ठीक नहीं होने से पार्टी को टिकट बदलने की सिफारिशें भी हो रही हैं। वहीं, इस जिले में आदिवासी संगठन जयस का भी वर्चस्व होने से यहां उसके द्वारा भी अपने किसी सदस्य को टिकट दिलाने की मांग उठ सकती है।
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