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विधानसभा चुनाव के पहले मची राजनीतिक उथल-पुथल, दलों में घमासान से बड़े नेताओं की सांसें हो रहीं ऊपर-नीचे

विधानसभा चुनाव 2023 मध्य प्रदेश की राजनीति के लिए पिछले 67 साल से बहुत अलग होगा क्योंकि 2020 के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद पहला पूर्ण चुनाव है। इसमें राजनीतिक दलों में आया राम- गया राम की राजनीति से दलबदल करने वालों की वजह से पार्टियों में कार्यकर्ता चिंतित है तो जनता भी ऐसे लोगों के प्रति अपना रुख स्पष्ट कर उनके कृत्य को स्वीकार कर लेगी या फिर उन्हें सबक सिखाएगी। इन परिस्थितियों की वजह से आज के राजनीतिक हालात आम कार्यकर्ता के लिए पसोपेश भरे दिखाई दे रहे हैं। पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र कैलासिया की रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को 67 साल हो चुके हैं और सोलहवीं विधानसभा के लिए चुनाव को कुछ महीने ही बचे हैं। मगर अब तक सत्ताधारी दल भाजपा और कांग्रेस दोनों के भीतर मचे घमासान से सुलग रही विरोध की आग शांत नहीं हुई है। पिछले कुछ दिनों से भाजपा में यह ज्वाला ज्यादा तेज लपटों के साथ दिखाई दी है जिसकी गर्माहट भोपाल ही नहीं दिल्ली तक महसूस हुई थी। नेताओं की दिल्ली-भोपाल की यात्राओं से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा तक के लिए खतरे की घंटी सुनाई दी है। सीएम दो दिन नीति आयोग की बैठक और फिर संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम की वजह से दिल्ली में रहेंगे, कारण भले ही सरकारी हो लेकिन मध्य प्रदेश भाजपा में मचे घमासान को शांत करने के लिए उन्हें वहां दो दिन का समय उसे निपटने में भी गुजरने की चर्चा है।
भाजपा में 2020 का असर अब दिखने लगा
मध्य प्रदेश भाजपा में दलबदल करके 2020 में बनाई गई सरकार का असर अब साफ दिखाई देने लगा है। अब तक जो लोग मुखर होकर इस बात को बोल रहे थे, उनके स्वर अब सुनाई नहीं दे रहे हैं लेकिन उससे प्रभावित होने वाले नेताओं की सक्रियता बढ़ गई है। फिर चाहे उसमें नरेंद्र सिंह तोमर हो या कैलाश विजयवर्गीय या प्रहलाद पटेल या कुछ अन्य नेता, ये सभी अब तक जिस तरह से चुप्पी साधकर उन लोगों के खिलाफ कुछ भी नहीं बोल रहे थे, आज भी वे उस मुद्दे पर चुप तो हैं लेकिन यह चुप्पी विधानसभा चुनाव में पार्टी की कमजोर हालत देखकर धीरे-धीरे टूटती नजर आ रही है। अभी वे पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व व आरएसएस के बड़े कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा में मशगूल हैं और इसका नतीजा जल्द आने के आसार दिखाई दे रहे हैं।
कांग्रेस में भी नेताओं के बीच संबंध बाहर कुछ अंदर कुछ
वहीं, कांग्रेस में पिछले पांच साल से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को अब विधानसभा चुनाव के पहले उनके विरोधी दूसरी लाइन के नेताओं की चुनौती भीतर खाने में नजर आने लगी है। हाईकमान के साथ मध्य प्रदेश के नेताओं की बैठक 24 मई के बाद 26 मई को भी टल गई है जिसकी वजह भले ही कर्नाटक मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा बताया जा रहा है लेकिन उससे कहीं इतर दूसरे कारण भी है। मध्य प्रदेश के दूसरे लाइन के नेताओं अरुण यादव, अजय सिंह, डॉ. गोविंद सिंह से लेकर जीतू पटवारी जैसे नेता दिल्ली में अपने-अपने स्तर पर यहां की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को पहुंचा रहे हैं। पटवारी अपनी उपेक्षा से नाराज हैं तो यादव के साथ कमलनाथ के संबंध खट्टे मीठे बने रहते हैं। अजय सिंह से नाथ के संबंधों का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि वे कमलेश्वर पटेल को आगे कर रहे हैं।
दिग्विजय-पचौरी-भूरिया नाथ के साथ
वहीं, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया जैसे नेता भी हैं जो कमलनाथ के साथ दिखाई तो देते हैं लेकिन अंदरखाने की खबर है कि उनमें भी कुछ मुद्दों पर असंतोष है। दिग्विजय सिंह के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि उनके कमलनाथ से विरोध की खबरें केवल हवा हवाई है और उनके बीच अच्छा सामंजस्य है। सुरेश पचौरी के बारे में यह चर्चा है कि उनकी दिल्ली में वैसी बात नहीं रही तो अब उनकी मजबूरी कमलनाथ का साथ बन चुकी है। वैसे पचौरी का मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठन में कब्जा जैसा ही बताया जाता है और वे अपने हिसाब से संगठन में कई जिलों में जमावट कर चुके हैं। भूरिया किसी से भी बुराई मोल लेने के चक्कर में नहीं हैं।
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