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विकसित देशों के विकास में मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान: डॉ. कर्नावट

विकसित देशों के विकास में मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान: डॉ. कर्नावट

“अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” के उपलक्ष्य में रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, फेकल्टी ऑफ ह्युमेनिटीज एंड लिबरल आर्ट्स, भाषा शिक्षण केन्द्र एवं मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति हिंदी भवन, भोपाल द्वारा संयुक्त रूप से व्याख्यान समारोह का ऑनलाइन आयोजन जूम माध्यम से वर्चुअल प्लेटफार्म पर किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. जवाहर कर्नावट, वरिष्ठ साहित्यकार एवं निदेशक, मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति हिंदी भवन,भोपाल ने “मातृभाषाओं का वैश्विक परिदृश्य एवं रोजगार की संभावनाएं” विषय पर बहुत ही विस्तृत रूप से अपने रचनात्मक विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संपूर्ण विश्व के विकसित देशों के विकास में मातृभाषाओं का विशेष योगदान रहा है।

विश्व के बीस धनी एवं उच्च स्तरीय जीडीपी वाले देश अपनी–अपनी मातृभाषाओं में ही काम करते है। अपनी मातृभाषाओं से गहरा लगाव रखते हैं। वहीं विश्व के निम्न स्तरीय जीडीपी वाले बीस देश विदेशी भाषाओं पर निर्भर है। वर्तमान समय में तकनीक ने मातृभाषाओं के लिए वैश्विक स्तर पर बहुत ही सकारात्मक मार्ग प्रशस्त किया है। युवाओं द्वारा अपनी मातृभाषाओं को आत्मसात करना चाहिए। इससे हमारी मातृभाषा का संरक्षण एवं विकास भी संभव होगा। मातृभाषा में रोजगार की असीम संभावनाएँ निहित है। इस दिशा में युवाओं को स्वयं मातृभाषाओं के वैश्विक परिदृश्य का अवलोकन एवं विश्लेषण करना होगा।
कार्यक्रम का सफल रचनात्मक विचारोत्तेजक संचालन करते हुए युवा आलोचक अरुणेश शुक्ल ने कहा कि 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1952 में ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने अपनी मातृभाषा बांग्ला के लिये आंदोलन एवं संघर्ष किया। कई युवा शहीद हुए। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस उन्हीं युवाओं के बलिदान और संघर्ष को याद करते हुए मनाया जाता है।
आपने आगे कहा कि हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा ने बांग्लादेश बनने के बहुत पहले यह लिख दिया था कि एक दिन धर्म की अस्मिता को भाषा की अस्मिता नकार देगी। भाषा की अस्मिता धर्म की अस्मिता से बड़ी होती है। और बांग्लादेश बनने में उनकी यह बात सच साबित हुई। इस अवसर पर डॉ. रामा तक्षक, वरिष्ठ साहित्यकार एवं नीदरलैंड्स में विश्व रंग के राष्ट्रीय निदेशक, डॉ. अनिल जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण संस्थान, आगरा, देश के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव, डॉ. प्रियदर्शिनी नारायण, इफ्लू( इंग्लिश एंड फॉरेन लैग्वेजेज सैंट्रल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद), वरिष्ठ लेखिका डॉ. सुनीता खत्री, लघुकथा शोध केन्द्र की निदेशक सुश्री कांता राय सहित देश-विदेश के कई गणमान्य व्यक्तित्व ने रचनात्मक भागीदारी कर कार्यक्रम को अपार सफलता प्रदान की।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, प्राध्यापकों , विद्यार्थियों, वनमाली सृजन केन्द्रों के रचनाकारों सहित लगभग सौ से अधिक सृजनधर्मियों ने भी रचनात्मक भागीदारी की।

डॉ. संगीता जौहरी, डीन, फेकल्टी ऑफ ह्युमेनिटीज एंड लिबरल आर्ट्स, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल ने संकाय के अंतर्गत स्थापित विभिन्न केन्द्रों के रचनात्मक कार्यों के विषय में विचार व्यक्त करते हुए आगामी कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला।
सभी के प्रति आभार डॉ. ऊषा वैद्य, विभागाध्यक्ष, मानविकी एवं उदार कला संकाय द्वारा व्यक्त किया गया। कार्यक्रम के सूत्रधार–संयोजक:–डॉ. रुचि मिश्रा तिवारी, संजय सिंह राठौर, अरुणेश शुक्ल रहें एवं विशेष सहयोग विक्रांत भट्ट ने किया। तकनीकी समन्वय श्री महेन्द्र वर्मा, श्री सागर कुमार एवं श्री राजेश शाक्य द्वारा किया गया किया गया।
कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों ने कार्यक्रम के अंत में ऑनलाइन फीडबैक भरकर अपनी रचनात्मक प्रतिक्रिया दी। फीडबैक देते ही उन्हें त्वरित ऑनलाइन माध्यम से आकर्षक ‘ई-प्रमाण-पत्र’ प्रदान किये गये।

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