मध्य प्रदेश शासन दस सालों में आदिवासियों पर दर्ज 15 हजार से ज्यादा वन अपराधों को वापस लेने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए वन विभाग का एक्शन बनकर तैयार होने वाला है। पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार गणेश पांडेय की यह रिपोर्ट।
10 वर्षों में 15,000 से अधिक आदिवासियों पर दर्ज वन अपराध को वापस लेने के लिए वन विभाग के एक्शन प्लान में न्यायालयों में विचाराधीन प्रकरणों को निपटाने के लिए शासकीय अधिवक्ताओं को कहा गया है। वहीं पीसीसीएफ संरक्षण शाखा ने अन्य वर्ग पर दर्ज वन अपराधिक प्रकरण वापस होंगे अथवा नहीं, यह स्पष्ट नहीं किया है।
जानकारी के मुताबिक निर्देशों के बाद ही प्रकरणों को समाप्त करने के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (संरक्षण) डॉक्टर अजीत कुमार श्रीवास्तव ने एक्शन प्लान तैयार कर सीसीएफ और डीएफओ को भेज दिया है। एक्शन प्लान में कहा गया है कि आगामी 3 माह में वन अधिनियम 1927 एवं वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों के विरुद्ध विगत 10 वर्षों में पंजीबद्ध प्रकरणों के निराकरण किया जाए. डॉक्टर श्रीवास्तव द्वारा संकलित यह गए आंकड़े के मुताबिक विभाग के पास 3852 प्रकरण लंबित है. इनमें सबसे अधिक प्रकरण बुरहानपुर जिले की है. बुरहानपुर में अवैध अतिक्रमण करने से लेकर अवैध कटाई तक के मामले आदिवासियों पर दर्ज हैं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अतिक्रमण के अपराध को रोकने पर 10 वर्षों में कई डीएफओ बदले जा चुके हैं. कई मर्तबा वन विभाग के अधिकारियों एवं अफसरों की पिटाई भी हुई. अब चुनाव की बेला में आरोपियों पर दर्ज सभी अपराध सरकार वापस लेने जा रही है.
बुरहानपुर के मामले में 3 महीने का समय
प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ श्रीवास्तव ने बुरहानपुर के फील्ड के अफसरों को आपराधिक प्रकरण के निराकरण के लिए 3 महीने का समय दिया है. प्रदेश में सबसे अधिक वन अपराध के प्रकरण बुरहानपुर में ही दर्ज हुए हैं. डॉक्टर श्रीवास्तव ने अपने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि बुरहानपुर में आदिवासियों पर वन अधिनियम 1927 और वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत दर्ज 513 प्रकरण न्यायालय में लंबित है. सरकारी वकीलों के जरिए इन प्रकरणों का निराकरण करवाएं. यहां यह उल्लेखनीय है कि बुरहानपुर जिले में कुल 1लाख 90 हजार 100 हेक्टेयर जंगल है. 17000 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रामकों को पट्टे के रूप में बांट दी गई है. सूत्रों की मानें तो बुरहानपुर में करीब 58000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र पर अतिक्रमण माफिया ने कब्जा कर लिया है.
आदिवासी वोट बैंक तय करता है जीत
फिलहाल प्रदेश की 47 में से 32 सीट्स बीजेपी के पास हैं. 15 पर कांग्रेस का कब्जा है. लोकसभा की 29 सीट्स में से 6 सीटें आदिवासी हैं. इनमें से 5 पर बीजेपी और 1 पर कांग्रेस है. यानी कहा जा सकता है कि बीजेपी के सिर पर जीत का सेहरा आदिवासी सीटों के दम पर बंधता रहा है. 2023 की जीत भी आदिवासियों का भरोसा हासिल किए बिना संभव नहीं है. दरअसल आदिवासी सिर्फ 47 आरक्षित सीटों पर ही नहीं बल्कि प्रदेश की 74 अन्य सीटों को भी प्रभावित करते हैं.
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