लीला भक्तिमति शबरी और निषादराज गुह्य की प्रस्तुति

प्रभु श्रीराम, माता सीता, भ्राता लक्ष्मण के साथ  उनके वनवास काल के सखा-साथी जब अधर्म के विनाश पश्चात अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने उमंग-उत्साह  के साथ घर की चौखटों पर दिये जलाकर उनका स्वागत किया। लोकाचार में यही अवसर दीपावली पर्व के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। अयोध्या की दीपावली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा आयोजित दीपोत्सव पर्व के अवसर पर मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं उत्तरप्रदेश शासन संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वाधान में श्रीराम और वनवासियों के परस्पर संबंध को उजागर करने के लिए वनवासी लीलाओं की प्रस्तुति का संयोजन किया गया। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के संग्रहाध्यक्ष श्री अशोक मिश्र ने बताया कि अयोध्या में आयोजित उत्सव अंतर्गत जनजातीय कलाकारों द्वारा वनवासी लीला क्रमशः भक्तिमति शबरी और निषादराज गुह्य की प्रस्तुति 22 अक्टूबर, 2022 को दी गई। उत्सव अंतर्गत वनवासी लीला नाट्य पर आधारित चित्र प्रदर्शनी का भी संयोजन किया गया, जिसमें चेरियालपट्म शैली आंध्रप्रदेश में भक्तिमति शबरी के चित्र तथा नाथद्वारा शैली, राजस्थान में निषादराज गुह्य के चित्रों की प्रदर्शनी संयोजित की गई।

लीला की कथाएं- 

वनवासी लीला नाट्य भक्तिमति शबरी कथा में बताया कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं।  अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। भील समुदाय़ शबरी का लालन-पालन करते हैं और शबरी युवावस्था में आती हैं तो उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है लेकिन अपने विवाह में जानवरों की बलि देने का विरोध करते हुए, वे घर छोड़ कर घूमते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं, जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे। लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए। भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं।

वनवासी लीला नाट्य निषादराज गुह्य में बताया कि भगवान राम ने वन यात्रा में निषादराज से भेंट की। भगवान राम से निषाद अपने राज्य जाने के लिए कहते हैं लेकिन भगवान राम वनवास में 14 वर्ष बिताने की बात कहकर राज्य जाने से मना कर देते हैं। आगे के दृश्य गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से इंकार कर देता है। केवट की प्रेम वाणी सुन, आज्ञा पाकर गंगाजल से केवट पांव पखारते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देते हैं। कहते हैं कि हे प्रभु हम एक जात के हैं मैं गंगा पार कराता हूं और आप भवसागर से पार कराते हैं इसलिए उतरवाई नहीं लूंगा। लीला के अगले दृश्यों में भगवान राम चित्रकूट होते हुए पंचवटी पहुंचते हैं। सूत्रधार के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है। रावण वध के बाद श्री राम अयोध्या लौटते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है। लीला नाट्य में श्री राम और वनवासियों के परस्पर सम्बन्ध को उजागर किया गया।  

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