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राम के वन गमन पर रोई पूरी अयोध्या, दर्शक हुए भावविभोर

छतरपुर में महलों के पास चल रही श्री लाल कड़क्का रामलीला के नौवें दिन स्थानीय कलाकारों द्वारा दशरथ प्रतिज्ञा, राम वनगमन और तमसा तीर विश्राम की लीला का मंचन कलकारों ने किया। नौवें दिन की महाआरती पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष राजेन्द्र यादव मोनू और आकाश यादव ने की। आपको बता दें कि लीला के दौरान राम का किरदार अंकित चतुर्वेदी ने निभाया जबकि लक्ष्मण की भूमिका में पार्थ अरजरिया ने जीवंत अभिनय प्रस्तुत किया।
लीला में दिखाया गया कि चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ एक दिन अपने कक्ष में बैठे अपने केशों को सुलझा रहे थे। तब उन्होंने दर्पण में देखा कि उनके केश कुछ सफेद नजर आ रहें हैं। इसको देखकर वह निर्णय लेते हैं कि मैं अब बूढ़ा हो चला हूं इसलिए अपने बड़े पुत्र राम को राजगद्दी सौंप दी जाए। इस बात को लेकर वह अपने सहयोगी मंत्रियों से मंत्रणा करते हैं। इस बात की भनक पूरे महल में फैल जाती है। इसके बाद मंथरा और कैकेई की लीला हुई। इस प्रसंग में कैकेई की दासी मंथरा, कैकेई को बताती है कि महाराज दशरथ अपने बड़े बेटे राम को राजगद्दी देना चाहते हैं। आपका बेटा भरत, भगवान श्रीराम का दास बनकर रह जाएगा। फिर आपकी भी अवहेलना होगी। इस बात को सुनकर कैकेई पश्चाताप करती हैं। तब मंथरा और कैकेई से राजा दशरथ से अपनी मांगे वरदान को याद
दिलाती हैं। अब समय आ गया है कि आप अपने वरदान में भरत को राजगद्दी और भगवान श्रीराम को 14 साल का वनवास मांग लीजिए। अगली लीला के क्रम में दशरथ कैकेई संवाद लीला हुई। इस प्रसंग में राजा दशरथ कोपभवन में जाकर कैकेई को समझाने का प्रयास करते हैं। मैं जो कर रहा हूं वह ठीक है, इससे आपको कोई परेशानी नहीं होगी। कैकेई अपनी मांग पर अड़ी रहती हैं। वह मजबूर होकर कैकेई को, भरत को राजगद्दी और राम को 14 साल का वनवास देने का वचन देते हैं। तदोपरांत कौशल्या राम संवाद लीला हुई। इस प्रसंग में राम, माता कौशल्या के पास वन जाने की आज्ञा मांगते हैं। वह आज्ञा, तो नहीं देना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने अपने पति के वचनों पर गौर करके राम को आज्ञा देती हैं। वह अपने पिता के वचनों का मान रखकर वनवास को जाएं। हृदय को विहृवल
कर देने वाली इस लीला के बाद राम वन गमन लीला हुई। इस प्रसंग में भगवान श्रीराम, जब वन गमन के लिए प्रस्थान करने के लिए सीता जी से कहते हैं कि मैं वन गमन कर रहा हूं। आप सबका ध्यान रखिएगा, इस पर माता सीता, भगवान श्रीराम से कहती हैं कि जहां पति होगा, वहीं पत्नी को भी होना चाहिए। पत्नी का स्थान पति के साथ है न कि राजमहल में है, सलिए मैं आपके साथ वन चलूंगी। लक्ष्मण भी भगवान श्रीराम से आग्रह करते हैं कि वह भी उनके साथ सेवा के लिए चलेंगे। उनके बिना वह महल में नही रहेंगे। राम के बहुत समझाने पर वह नहीं मानते हैं। वह भी भगवान श्रीराम और सीता के साथ वन गमन के लिए प्रस्थान करते हैं। यह देखकर राज्य की प्रजा बहुत दुखी होती है। वह भी उनके साथ चलने के लिए प्रार्थना करती है, लेकिन उनके मना करने पर कुछ दूर तक प्रजा साथ चलती हैं। यह देखकर भगवान राम सभी अयोध्यावासियों से कहते हैं कि आप लोग वापस जाइए, मैं 14 सालों के बाद दोबारा अयोध्या वापस आऊंगा। तदोपरांत भगवान श्री राम, माता जानकी और लक्ष्मण ने तमसा नदी के किनारे विश्राम किया।
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