राज्यसभा में चीतों की मौत की गूंजीः मंत्री बोले सदमे में मरे तो NTCA का जवाब प्राकृतिक मौत

मध्य प्रदेश के श्योपुर कूनो नेशनल पार्क में चार महीनों में आठ चीतों की मौत पर केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के विरोधीभासी तथ्य सामने आए हैं। एक तरफ राज्यसभा में कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा को केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे बताते हैं कि चीतों की मौत दर्दनाक सदमे की वजह से हुई तो वहीं एनटीसीए चीतों की मौत प्राकृतिक बताया है। टास्क फोर्स चेयरमेन इन मौतों को रेडियो कॉलर के कारण त्वचा में चीता सूरज की गर्दन के घाव में कीड़े हो गए थे और सेप्टीसीमिया से उसकी मौत हुई। पढ़िये चीतों की मौत पर मंत्री, एनटीसीए और टास्क फोर्स के विरोधाभासी तथ्यों पर आधारित वरिष्ठ पत्रकार गणेश पांडेय की रिपोर्ट।

श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत क्यों हुई, यक्ष प्रश्न बना हुआ है। एनटीसीए ने भले ही चीतों की मौत को प्राकृतिक बताया था किंतु उससे पहले टास्क फोर्स के अध्यक्ष राजेश गोपाल मीडिया कर्मियों को बता चुके थे कि रेडियो कॉलर के कारण त्वचा में घर्षण हुआ। इसके कारण सूरज में कीड़े लग गए और उससे हुई सेप्टीसीमिया सूरज की मौत जबकि गत शुक्रवार को पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राज्यमंत्री अश्वनी कुमार चौबे ने राज्यसभा को बताया कि तेजस और सूरज की दर्दनाक सदमे में मौत हुई। यानि चीता के मौत पर उठ रहे सवाल के तीन अलग-अलग जवाब। सच क्या है, इस पर पर्दा डालने के लिए एनटीसीए के सदस्य सचिव एसपी यादव और चीता टास्क फोर्स के अध्यक्ष राजेश गोपाल ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्री भूपेंद्र यादव से सिफारिश कर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) पद से जेएस चौहान को हटवा दिया।
तन्खा ने चीतों की मौत पर पूछा था सवाल
एमपी के राज्यसभा सदस्य विवेक तनखा ने गुरुवार को कूनो नेशनल पार्क में चीता की मौत के कारणों पर सवाल पूछे थे कि क्या मंत्रालय ने अब तक चीतों की मौत के कारणों की जांच की है। यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो उसके कारण और मौतों को कम करने और उनकी आबादी को बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं? राज्यसभा सदस्य तनखा के सवाल के जवाब में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने प्रारंभिक नेक्रोस्कोपिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए गुरुवार को बताया कि मप्र के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में मरने वाले पांच वयस्क चीतों में से तीन ने दर्दनाक सदमे से दम तोड़ दिया, जबकि शावकों की मौत हीट स्ट्रोक के कारण हुई। मृत वयस्क चीतों में साशा, उदय, दक्ष, तेजस और सूरज थे, जबकि तीन अन्य भारत में पैदा हुए शावक थे।
“27 मार्च को क्रोनिक रीनल फेल्योर के कारण साशा की मृत्यु हो गई; उदय की मृत्यु 23 अप्रैल को कार्डियोपल्मोनरी विफलता के कारण हुई और दक्ष की भी 9 मई को एक दर्दनाक सदमे के कारण मृत्यु हो गई। उन्होंने कहा कि तेजस और सूरज की भी दर्दनाक सदमे के कारण मौत हो गई।
चीता की मौत पर क्या था एनटीसीए का जवाब
कूनो में सूरज और तेजस चीता की मौत पर वीडियो रिपोर्ट आने के बाद रविवार को एनटीसीए के सदस्य सचिव एसपी यादव ने एक बयान जारी किया, दावा किया कि चीतों की सभी मौतें प्राकृतिक थीं. स्थानांतरित किए गए 20 वयस्क चीतों में से, कुनो से पांच वयस्क चीतों की मौत की सूचना मिली है और प्रारंभिक विश्लेषण के अनुसार सभी मौतें प्राकृतिक कारणों से हुई हैं। मीडिया में रेडियो कॉलर आदि के कारण चीतों की मौत को जिम्मेदार ठहराने वाली रिपोर्टें हैं। ऐसी रिपोर्टें किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं हैं बल्कि अटकलों और अफवाहों पर आधारित हैं। चीतों की मौत के कारणों की जांच के लिए दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के अंतरराष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों/पशुचिकित्सकों से नियमित आधार परामर्श किया जा रहा है।
क्या बोले थे टास्क फोर्स के अध्यक्ष
चीता टास्क फोर्स के अध्यक्ष राजेश गोपाल ने शनिवार को बताया कि शुक्रवार को मप्र के जंगल में मृत पाया गया तीन वर्षीय चीता सूरज की रेडियो कॉलर से त्वचा फटने के कारण सेप्टीसीमिया से मौत हो गई थी। रेडियो कॉलर के कारण त्वचा में घर्षण हुआ, जिसके कारण सूरज में कीड़े लग गए। चीता टास्क फोर्स के अध्यक्ष ने कहा, गीले और आर्द्र मौसम की स्थिति के कारण उनकी स्थिति खराब हो गई, जिससे उनके शरीर और सेप्टीसीमिया में उच्च संक्रमण फैल गया, जो चीता में दुर्लभतम है।
अगर मौत प्राकृतिक थी तो रेडियो कॉलर क्यों हटाए गए?
चीता टास्क फोर्स अध्यक्ष राजेश गोपाल ने पहले ही यह स्वीकार कर लिया था कि तीन वर्षीय चीता सूरज की रेडियो कॉलर से त्वचा फटने के कारण सेप्टीसीमिया से मौत हुई है। टास्क फोर्स के अध्यक्ष गोपाल और दक्षिण अफ्रीका एवं नामीबिया के विशेषज्ञों द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण करने के पश्चात 6 चीतों के रेडियो कॉलर हटाए गए. यानि एनटीसीए के सदस्य सचिव का यह बयान की चीता की मौत प्राकृतिक थी, यह वन्य प्राणी विशेषज्ञों एवं दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के चीता के जानकारों हास्यापद लगा था।
कूनो में प्रे-बेस बढ़ाना होगा
वन्य प्राणी विशेषज्ञ एवं सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी रामगोपाल सोनी का कहना है कि यदि चीतों की बसाहट सफल करनी है तो प्रे-बेस बढ़ाना ही होगा. जितना क्षेत्र दिया है वो 20 चीतों के लिए पर्याप्त है, क्योंकि चीते समूह में शिकार करते है. इसलिए एक चीते को 100 वर्ग किलोमीटर चाहिए कि अवधारणा गलत है. 100 वर्ग किलोमीटर में यदि प्रे-बेस सघन हो तो 10 चीते आराम से रह सकते है. तो अभी कूनो और गांधी सागर को सही प्रबंधन से तैयार किया जाए. वैसे गीता के प्रबंधन में लापरवाही हुई है, इसका पोल भी हटाए गए ड्राइवर ने खोल दी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Khabar News | MP Breaking News | MP Khel Samachar | Latest News in Hindi Bhopal | Bhopal News In Hindi | Bhopal News Headlines | Bhopal Breaking News | Bhopal Khel Samachar | MP News Today