राजनीतिक फंडिंग से ही सत्ता का बनता है रास्ता

पहले राजनीतिक पार्टियां सदस्यों के छोटे-छोटे सहयोग से चला करती थीं। चुनाव में प्रत्याशी अपने दोस्तों के चंदे से जमा राशि और सहयोग से सांसद-विधायक बना करते थे। मगर आज का समय राजनीतिक दल और उनके नेता बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों, कारोबारियों, व्यापारियों के फंड से चलती हैं या चुनाव में दम-खम लगाते हैं। दल-नेताओं को फंड उपलब्ध कराने वाले परिवार, कारोबारी-व्यापारी सरकारों से उसके बदले बड़े-बड़े काम निकालते हैं लेकिन राजनीतिक फंडिंग का यह खेल कुछ दशकों में ऐसा फला-फूला है कि अधिकांश दल-नेता इसमें डूब गए हैं। आज आयकर विभाग की कार्रवाई का उद्देश्य भी यही है जिससे फंडिंग करने वालों की गतिविधियों पर नियंत्रण पाया जा सके।

आज सुबह जब सूरज निकला तो देश के कई शहरों के शराब, स्टील, शिक्षा और अन्य कारोबारी और बड़े परिवारो के लोगों की नींद उड़ गई। दर्जनों गाड़ियों का काफिला उनके ठिकानों पर जमा था और दरवाजे की कॉल बेल बजते ही जब दरवाजे खुले तो सरकारी अमले ने उऩ्हें घेर लिया। मोबाइल, टेलीफोन कब्जे में लेकर लोगों को घर में ही रोककर तलाशी शुरू कर दी।
आयकर विभाग ने आज जिन लोगों के यहां कार्रवाई की वे कोई मामूली नहीं हैं। उनके राजनीतिक कनेक्शन हैं। वे पर्दे के पीछे रहकर सरकारों का संचालन करते हैं मगर कहीं दिखाई नहीं देते।

आयकर विभाग को इन लोगों पर सरकारी खजाने में टैक्स जमा करने के बजाय राजनीतिक दलों को फंड देकर सरकारों में पैठ बनाने का संदेह है। आयकर विभाग को इन लोगों के यहां मिलने वाले रिकॉर्ड में कई राज खुलेंगे जिसमें राजनीतिक दलों व नेताओं को दी गई राशि का खुलासा होगा। इससे सरकारों को चलाने वाले ऐसे दूसरे लोगों में भी कहीं न कहीं भय का माहौल बनेगा।

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