मुद्दों को छोड़ती कांग्रेस, पीछे नजर आ रही भाजपा रिकवरी में जुटी

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर सत्ताधारी दल भाजपा और सत्ता मिलने के बाद सरकार गिरने से विचलित कांग्रेस चुनावी शंखनाद कर चुके हैं। नर्मदा पूजन कर प्रियंका गांधी ने जबलपुर से तो भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भोपाल में बूथ स्तरीय कार्यक्रम से पार्टी का चुनावी बिगुल बजाया। शुरुआती दौर में भाजपा पिछड़ी नजर आ रही थी लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के एक तरह से कमान हाथ में ले लेने के बाद इसमें रिकवरी दिखाई देने लगी है तो वहीं कांग्रेस अच्छी शुरुआत मिलने के बाद मुद्दों को छोड़ती जा रही है जो उसके लिए आने वाले समय में नुकसान पहुंचा सकता है। पढ़िये रिपोर्ट।

विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा सत्ता में होने के बाद भी जिस रफ्तार से कुछ दिनों में आगे बढ़ी है, वह रफ्तार कांग्रेस में दिखाई नहीं दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डेढ़ महीने में तीसरी बार 12 अगस्त को मध्य प्रदेश दौरे पर आ रहे हैं। पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार माने जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे तो महीने में आए दिन हो रहे हैं। आज भी वे भोपाल आ रहे हैं और रात यहीं बिताएंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के भी मध्य प्रदेश में नियमित दौरे हो रहे हैं। यही नहीं, पार्टी ने प्रदेश नेतृत्व के भरोसे विधानसभा चुनाव कराने की रणनीति को त्याग दिया है और एक तरह से केंद्रीय नेतृत्व ने अपने विश्वस्त नेताओं को जिम्मेदारी दे दी है।
आदिवासी के बाद भाजपा की दलित वोट पर नजर
दो साल तक भाजपा ने आदिवासी वोट के लिए मध्य प्रदेश में हर संभव फैसले कर दिए हैं और इसके बाद अब उसके आदिवासी नेता अपने लोगों को पार्टी से जोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। आदिवासी वोट के लिए बिरसा मुंडा, टंट्या मामा, रघुवीर शाह, शंकर शाह, वीरंगाना रानी दुर्गावती, रानी कमलापति के नाम पर रेलवे स्टेशन, भवन, विश्वविद्यालय, चौराहों का नामकरण करने से लेकर पेसा एक्ट लागू के नियमों को लागू किया है। अब पार्टी दलित वोटों के लिए काम में जुट गई है। संत रविदास जयंती पर बड़े आयोजन में कई घोषणाएं कीं तो सागर में संत रविदास स्मारक बनाने का प्रधानमंत्री मोदी के हाथों से भूमिपूजन कराया जा रहा है। संत रविदास का संदेश लेकर प्रदेश के पांच हिस्सों से यात्राएं निकाली जा रही हैं।
कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व चुस्त, प्रदेश सुस्त
वहीं, प्रमुख विपक्षी दल मध्य प्रदेश में केंद्रीय नेतृत्व की सक्रियता का लाभ नहीं उठा पा रहा है। प्रियंका गांधी चुनावी तैयारियों के लिए पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं में जोऱ भरने के लिए अब तक दो दौरे कर चुकी हैं तो राहुल गांधी भी आदिवासी क्षेत्र ब्यौहारी में आठ अगस्त को आ रहे हैं और इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का दौरा प्रस्तावित है। मगर केंद्रीय नेतृत्व की सक्रियता को कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भुनाने में कहीं न कहीं चूक कर रहा है।
मुद्दों को छोड़ती कांग्रेस
प्रदेश में मुद्दे मिलने के बाद भी पार्टी उन पर बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पा रही है। सीधी के पेशाबकांड में पार्टी बघेलखंड में ब्राह्मण वोट की नाराजगी से डरकर मुद्दे को प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी उस पर आंदोलन खड़ा नहीं कर पाया है। इसी तरह छतरपुर के दलित पर मानव मल फेंके जाने के मुद्दे पर भी पार्टी नेतृत्व की ओर से कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ट्वीट कर लाइन भी दी थी। दोनों घटनाओं में उनके संगटन अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति विभाग की ओर से कोई बड़े आंदोलन की रणनीति नहीं बनी। इसी तरह मणिपुर में महिलाओं पर अत्याचार के मुद्दे को लेकर मध्य प्रदेश में महिला कांग्रेस ने प्रदेशभऱ में आंदोलन की श्रृंखला खड़ी करने का विचार तक नहीं किया। इसी तरह पटवारी और कर्मचारी चयन मंडल की दूसरी भर्तियों के घोटाले पर सरकार को व्यापमं घोटाले की तरह घेरे जाने की सोच अकेले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव में दिखाई दी और बाकी नेता उसे आगे बढ़ा ही नहीं पाए।

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