माता पिता ही उनके आदर्श – साध्वी विश्वेश्वरी देवी

श्री रामकथा के तीसरे दिन परम पूज्य संत साध्वी विश्वेश्वरी देवी जी (हरिद्वार) ने श्रीराम जन्मोत्सव का सुन्दर वर्णन करते हुए बताया कि भगवान विष्णु के अवतार के रूप में मानव शरीर में जन्म लेने वाले भगवान राम को यह कथा समर्पित है। चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र के कर्क लग्न में जब सूर्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तब भगवान् श्रीराम का माता कौशल्या के गर्भ से जन्म हुआ था। भगवान विष्णु ने असुरों का संहार करने के लिए राम रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।

राम को सदाचार का आदर्श माना गया है। श्रीराम के आदर्शों को जिसने जीवन में नहीं उतारा वह कभी सफल नहीं हो पाया। राम की सही मायने में आराधना और राम राज्य स्थापित करना है तो जय श्रीराम के उच्चारण के पहले उनके आदर्शों और विचारों को आत्मसात किया जाना चाहिए।
संत साध्वी विश्वेश्वरी देवी ने बताया कि जो बच्चे अपने माता पिता की बात नहीं मानते वह जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते। बच्चों को राम की तरह आदर्श बनकर जीवन जीना चाहिए और प्रत्येक माता पिता को दशरथ बनकर लालन पालन करना चाहिए। बच्चे के सामने माता पिता ही उनके आदर्श होते है।
श्री रामकथा प्रारंभ होने के पूर्व बच्चों के लिए रंगोली एवं भजन संध्या का कार्यक्रम रखा गया। जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों ने भाग लिया। श्रीरामकथा प्रारंभ होने से पूर्व डॉ. सुरजीत सिंह चौहान, श्रीमती दीप्ति चौहान, सुश्री पाखी चौहान ने व्यासपीठ पूजा की।

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