माँ के साथ कला प्रदर्शनियों, चित्र शिविरों में जाकर सीखी चित्रकारी

सुभाष अमलियार ने चित्रकला अपनी माँ गंगुबाई से सीखी, जो स्वयं एक भीली चित्रकार हैं। साथ ही बेहतर जीवन के लिए मजदूरी का काम भी किया और छोटी उम्र से ही सुभाष, माँ गंगुबाई के साथ चित्र शिविरों, कला प्रदर्शनियों में आने-जाने लगे एवं माँ को चित्र बनाने में सहयोग भी करने लगे। माँ की मदद करते-करते एवं पढ़ाई के साथ समय मिलने पर स्वयं के लिए भी चित्र बनाये एवं प्रदर्शित भी किये। यह सिलसिला चलता रहा और चित्रकार श्री सुभाष भील चित्रों का अंकन करने लगे।  श्री सुभाष भील कथाएं, प्रकृति , परिवेश, पशु-पक्षी, मनुष्य और उसके क्रियाकलाप को रंग-रेखाओं के माध्यम से उकेरते हैं।

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय प्रतिमाह ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह विक्रय का संयोजन शलाका नाम से किया जाता है। इसी क्रम में  3 सितंबर से भील समुदाय के युवा चित्रकार सुभाष अमलियार के चित्रों की प्रदर्शनी सह-विक्रय का संयोजन किया जा रहा है। 29वीं शलाका चित्र प्रदर्शनी 30 सितंबर तक निरंतर रहेगी। सुभाष के चित्रों में खजूरवृक्ष, हिरण एवं पक्षी, गलवापसी  अनुष्ठान, चार गाय वृक्ष एवं पक्षी, गाय गोहरी, ग्रामीण परिवेश, दही मथते ग्रामीण, पिथौरा के घोड़े, बैलगाड़ी एवं ग्रामीण, मयूर, हिरण वृक्ष एवं पक्षी, हाथी एवं वृक्ष, गातला देव जैसे अन्य कई विषयों आधारित चित्र दिखाई देते हैं। विगत जनजातीय चित्र प्रदर्शनियों में चित्रकारों के चित्रों को दर्शक द्वारा काफी सराहा या है एवं उनके बनाये गये चित्रों को क्रय भी किया गया है।

साल 1985 में मध्यप्रदेश के ग्राम पंचकुई, मेघनगर, जिला-झाबुआ में जन्मे सुभाष अमलियार भील समुदाय के युवा चित्रकार हैं। अल्पवर्षा के क्षेत्र में जहाँ जीवन की मूलभूत सुविधाओं के लिए भी भीलों को कड़ा संघर्ष एवं अत्यधिक श्रम करना होता है, वहाँ भी वे अपने उन्मुक्त स्वभाव में सहज ही रहते हैं और वही इनकी कला में भी दिखता है। भील समुदाय में पारम्परिक अनुष्ठानिक चित्रण पिथौरा एवं पारम्परिक भगोरिया नृत्य कला अन्य किसी और परिदृश्य में नहीं दिखती, जहाँ एक ओर केवल पुरुष ही (बड़वा/पुजारा) पिथौरा गाता है एवं लिखंदारा चित्रण करता है, के अतिरिक्त बहुत ही कम भील पुरुष चित्रकर्म में देखे जा सकते हैं, हाँ महिलाएँ घर को अलंकृत करने का हर संभव उपाय अवश्य करती रहती हैं। शेष अन्य दिनों में जब भील दैनंदिन के संघर्षों में व्यस्त रहते हैं, तब केवल भगोरिया ही ऐसा समय है जब भील स्त्री-पुरुष अपने सम्पूर्ण कलाभिव्यक्तियों जैसे नृत्य, संगीत में मग्न होने का पर्याप्त समय पाते हैं। युवा चित्रकार सुभाष बहुत कम उम्र में परिवार के संग गाँव से भोपाल आ गए और अपने परिवार से चित्रांकन की बारीकियाँ को सीखते, जहाँ माता-पिता ने बेहतर जीवन जीने के दृष्टिगत राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में मजदूरी एवं उसके पश्चात वहाँ निर्मित आवासों के रख-रखाव का कार्य करना आरम्भ किया। बचपन से ही सुभाष और उनकी बहन अपनी माँ के साथ मानव संग्रहालय जाने लगे और वहीं खेल-खेल में ही मिट्टी एवं रंगों से मित्रता कर ली।

2004 से सुभाष ने चित्र प्रदर्शनियों में भागीदारी करनी आरम्भ किया तथा राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में आयोजित प्रदर्शनी में अपने पहला चित्र प्रदर्शित किया, चित्र बिकने पर उनमें एक नए मनोबल एवं उत्साह का संचार हुआ। उसके पश्चात सुभाष ने देशभर के अनेक शहरों में आयोजित चित्र प्रदर्शनियों एवं कला-शिविरों में निरंतर भागीदारी करना आरम्भ किया तथा 17 वर्ष की अपनी कला यात्रा में नई दिल्ली, बैंगलोर, चेन्नई, मुंबई, भोपाल आदि शहरों में अनेक चित्र शिविरों में वे शामिल हुए एवं चित्र प्रदर्शित कर चुके हैं। तारा पब्लिकेशन के लिए सुभाष ने अपनी माँ गंगूबाई के साथ मिलकर बच्चों के लिए भील भगोरिया आधारित एक चित्रात्मक पुस्तक भील कार्निवल भी सृजित की है, इसके अतिरिक्त सुभाष के द्वारा बनाये गए चित्र अनेक प्रतिष्ठित प्रकाशकों ने अपने प्रकाशनों में प्रकाशित किये हैं। वर्तमान में सुभाष भोपाल में रहकर अपनी कलायात्रा को निरंतरता प्रदान कर रहे हैं।

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