महेश्वर विद्युत् परियोजना का जन विरोधी समझौता रद्द: नर्मदा बचाओ आंदोलन

नर्मदा बचाओ आंदोलन का दावा है कि मध्यप्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिनमिटेड के 18 अप्रैल के आदेश से एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ है जिससे महेश्वर परियोजना को सार्वजानिक हित के खिलाफ मानते हुए परियोजना का विद्युत क्रय समझौता(पी पी ए) रद्द कर दिया है. इस आदेश के साथ ही परियोजना के लिए दी गई एसक्रो गारंटी और पुनर्वास समझौते को भी रद्द कर दिया गया है. महेश्वर परियोजना के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन के तहत प्रभावितों के 23 वर्ष के निरंतर संघर्ष की यह एक एतिहासिक जीत है और इस प्रकार इस परियोजना के रद्द होने से प्रदेश की जनता का 42000 करोड़ रुपया लुटने से बच जायेगा.

क्या है आदेश?
नर्मदा बचाओ आंदोलन का दावा है कि राज्य सरकार के उपक्रम मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड द्वारा 18 अप्रैल 2020 को प्रयोजनाकर्ता श्री महेश्वर हायडल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को भेजे गए आदेश में कहा गया है कि परियोजनाकर्ता ने विद्युत क्रय समझौते के तमाम प्रावधानों का उल्लंघन किया है, परियोजना में वित्तीय धोखाधड़ी हुई है, और साथ ही परियोजना से बनने वाली बिजली की कीमत ₹18 प्रति यूनिट से अधिक होगी, अतः यह परियोजना सार्वजनिक हित में नहीं है. इसलिए इसके विद्युत क्रय समझौते सन 1994 एवं संशोधित समझौते 1996 को रद्द किया जाता है. इसके बाद दिनांक 20 अप्रैल 2020 के आदेश के द्वारा इस परियोजना के संबंध में किये गये पुनर्वास समझौते और दिनांक 21 अप्रैल 2020 के आदेश के द्वारा इस परियोजना के संबंध में दी गई एस्क्रो गारंटी को भी रद्द कर दिया गया है. (आदेश संलग्न हैं)

क्या है महेश्वर परियोजना:
महेश्वर जल विद्युत परियोजना के तहत नर्मदा नदी पर मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में एक बड़ा बांध बनाया जा रहा है. 400 मेगवाट क्षमता वाली इस बिजली परियोजना को निजीकरण के तहत 1994 में एस कुमार समूह की कंपनी श्री महेश्वर हायडल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को दिया गया था. राज्य सरकार ने कंपनी के साथ सन 1994 में विद्युत क्रय समझौता और सन 1996 में संशोधित विद्युत क्रय समझौता किया था. इस जनविरोधी समझौते के अनुसार बिजली बने या न बने और बिके या न बिके फिर भी जनता का करोड़ों रुपया 35 वर्ष तक निजी परियोजनाकर्ता को दिया जाता रहना था. इस परियोजना की डूब में 61 गाँव प्रभावित हो रहे थे.

विस्थापितों का 23 वर्ष का संघर्ष:
महेश्वर परियोजना के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल, चित्तरूपा पालित व् महेश्वर बांध प्रभावितों के नेतृत्व में गत 23 वर्षों से अनवरत संघर्ष किया जाता रहा है. नर्मदा आन्दोलन ने आंकड़ो और दस्तावेजो के आधार पर प्रारंभ से ही यह दर्शाया था कि इस परियोजना से कम बिजली बनेगी, और वह बहुत महंगी होगी. साथ ही परियोजनाकर्ता एस कुमार्स के साथ हुए जन विरोधी विद्युत् क्रय समझौते के कारण, मध्य प्रदेश सरकार को यह बिजली 35 साल तक खरीदनी ही पड़ेगी, और यदि नहीं भी खरीद पाए, तो भी हर साल भारी भरकम भुगतान करना होगा. अतः आन्दोलन ने लगातार मांग की कि चूँकि यह परियोजना प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था को बर्बाद कर देगी अतः इसे जन हित में रद्द कर देना आवश्यक है. आन्दोलन ने परियोजनकर्ता द्वारा की गयी सैकड़ों करोड़ रूपये की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया. आन्दोलन ने ज़मीनी हकीकत के आधार पर यह भी स्थापित किया था कि इस बांध से प्रभावित होने वाले 60,000 किसान, मजदूर, केवट, कहार, आदि प्रभावितों के लिए पुनर्वास नीति के अनुसार कोई व्यवस्था नहीं है.

इन मुद्दों को उठाते हुए, 23 साल के संघर्ष के दौरान हज़ारो परियोजना प्रभावित महिला और पुरुषो ने बार- बार धरने, प्रदर्शन, अनशन किये, लाठी चार्ज, गिरफ्तारी, जेल के शिकार बने. परियोजनकर्ता और सरकार ने आन्दोलनकारियों को प्रताड़ित करने के लिये मंडलेश्वर, खरगोन, भोपाल, मुंबई आदि न्यायालयों में सैंकड़ो झूठे केस दर्ज किये. आन्दोलन ने परियोजना प्रभावितों के पुनर्वास के सम्बन्ध में उच्च न्यायालय व् नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिकाएं भी दायर कीं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में लंबित याचिका में ट्रिब्यूनल ने अपने अंतिम में निर्देशित किया था कि जब तक पूरी योजना के समस्त लोगो का सम्पूर्ण पुनर्वास पूरा नहीं हो जाता, बांध में पानी नहीं भरा जा सकता है. उल्लेखनीय है कि आज तक कि महेश्वर परियोजना प्रभावितों का 85% से अधिक पुनर्वास बाकी है.

घोटालों से घिरी रही है महेश्वर परियोजना : 5 सी ए जी (CAG) रिपोर्ट में जिक्र अनियमितताओं का

इस परियोजना में तमाम वित्तीय अनियमितताएं हुई और इसके कारण बार-बार परियोजना का कार्य बंद हुआ, परियोजना स्थल की कुर्की हुई और पिछले 10 वर्षों से परियोजना का काम ठप्प पड़ा था. कांग्रेस हो या भाजपा सभी सरकारों ने निजी प्रयोजनाकर्ता को जनता की कीमत पर फायदा पहुंचाने का प्रयास किया. भारत की सर्वोच्च संस्था नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, सी ए जी (CAG) ने वर्ष 1998, 2000, 2003, 2005 और 2014 की पांच रिपोर्टों में महेश्वर परियोजना के सम्बन्ध में गंभीर भ्रष्टाचार का खुलासा किया है, 2014 की रिपोर्ट में CAG ने यहाँ तक लिखा कि सरकार क्यों नहीं महेश्वर परियोजना का समझौता रद्द करती है.

इसके अलावा भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI) ने अपनी सन 2001 के रिपोर्ट में भी स्पष्ट कहा था कि परियोजनाकर्ता एस.कुमार्स ने तमाम बैंक व् सरकारी संस्थायों से महेश्वर परियोजना के लिए लिये गये 106.4 करोड़ रुपये को उसी ग्रुप की अन्य कम्पनी को डाइवर्ट कर दिया था. इस कारण नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने बार बार यह मांग की थी कि परियोजना के लिए आये सार्वजनिक पैसे का फोरेंसिक ऑडिट (forensic audit) किया जाए.

मध्य प्रदेश की जनता के 42000 करोड़ रूपये लुटने से बचे?

400 मेगावाट क्षमता की महेश्वर जल विद्युत् परियोजना से मात्र 80 करोड़ यूनिट बिजली पैदा होना प्रस्तावित है. अभी जारी आदेश में स्वीकार किया गया है कि इसकी बिजली की कीमत 18 रूपये प्रति यूनिट से अधिक होगी. मध्य प्रदेश में वर्तमान में बिजली प्रदेश की समूची मांग पूरी करने के बाद भी 3000 करोड़ यूनिट अतिरिक्त है और वर्त्तमान में बिजली 2.5 रु/ यूनिट की दर पर उपलब्ध है.

अतः महेश्वर की बिजली बनती भी तो खरीदी नहीं जा सकती थी. परन्तु महेश्वर परियोजनाकर्ता से हुए विद्युत् क्रय समझौते के अनुसार बिजली न खरीदने पर भी सरकार को निजी परियोजनाकर्ता को लगभग 1200 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष, 35 वर्ष तक देना पड़ता. अतः साफ है कि 35 वर्ष में बिना बिजली खरीदे 42,000 करोड़ों रुपए मध्य प्रदेश की जनता के लूट लिए जाते. अतः परियोजना रद्द होने से जनता के यह 42,000 करोड़ रु लुटने से बच गये.

निजीकरण के नाम पर जनता की लूट बंद हो:

महेश्वर परियोजना निजीकरण के नाम पर जनता की लूट का एक वीभत्स उदाहरण है. शुरू से ही इस परियोजना का उद्देश्य जनता के पैसे की लूट था, जिसे विस्थापितों के आन्दोलन ने लगातार भयावह दमन सहते हुए पूरी ताकत से उठाया. इस परियोजना के निजीकरण का आधार था कि परियोजनाकर्ता निजी पैसा लायेगा और खुले बाजार में पैदा होने वाली बिजली के दाम कम होंगे. परन्तु वास्तविकता यह है कि परियोजना में लगा पूरा पैसा सार्वजनिक बैंकों के आम जनता का पैसा है और जनविरोधी समझौतों के कारण व् वित्तीय अनियमितताओं के कारण बिजली के दाम भयावह रूप से बढ़कर 18 रु/यूनिट हो गये. परियोजनाकर्ता ने सार्वजानिक वित्तीय संस्थाओं से आम जनता का करोड़ों रुपया परियोजना के नाम पर लेकर अन्यत्र लगा दिया गया. राज्य सरकार को परियोजनाकर्ता के डिफ़ॉल्ट के कारण102 करोड़ रुपया एस्क्रो गारंटी में देना पड़ा. निरंतर चलती इस लूट में सभी सरकारें शामिल रही.

नर्मदा आन्दोलन मांग करता है कि जनता का सारा पैसा वापस लाया जाये और इस उदाहरण से सबक लेकर आगे निजीकरण के नाम पर सार्वजनिक पैसे की लूट को बंद किया जाये.

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