मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर इस बार राजनीतिक दलों में ओबीसी, एससी-एसटी के वोट पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। भाजपा-कांग्रेस के अलावा अब तक विधानसभा चुनाव में इनका गणित बिगाड़ती आईं समाजवादी पार्टी भी बहुजन वोट वाली आजाद समाज पार्टी व ओबीसी महासभा को साथ लेकर चलने की रणनीति बना रही है। भाजपा को सत्ता से बाहर करने की कोशिशें केंद्र में हो रही हैं जिनकी शुरुआत मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से होने की संभावना है। आईए बताते हैं अब तक क्या हुआ।
मध्य प्रदेश में कोरोना काल में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा दोबारा सरकार में आई और उसकी नजर अनुसूचित जनजाति के वोट पर टिकी। उसने मध्य प्रदेश आदिवासी प्रदेश में मंगूभाई पटेल को राज्यपाल के तौर पर भेजा और फिर यहां आदिवासी समाज के उपेक्षित जैसे नायकों को सार्वजनिक रूप से सम्मान देने के बड़े कार्यक्रम किए। फिर चाहे रानी कमलापति हो या टंट्या मामा या रघुनाथ शाह या शंकर शाह उन्हें याद करते हुए रानी कमलापति के नाम पर भोपाल के हबीबगंज स्टेशन और टंट्या मामा की बड़ी प्रतिमा तो छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय कर दिया। पेसा एक्ट को लागू करने के बाद भाजपा सरकार ने जगह-जगह उसके नियम बताने के नाम पर कार्यक्रम किए। इसी तरह एससी वोट के लिए ज्योतिबा फुले-संत रविदास-आंबेडकर जयंती पर बड़े कार्यक्रम कर महू में आंबेडकर जन्मस्थली के विकास को अपनी सरकार में होने का श्रेय लिया। वहीं, ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने के मामले में कोर्ट तक प्रकरण घसीटकर ले जाने को कांग्रेस को दुर्भावना के रूप में प्रचारित किया।
कांग्रेस की नजर भी एससी-एसटी, ओबीसी पर टिकी
वहीं, कांग्रेस ने भी कोरोनाकाल में हुए सत्ता परिवर्तन से जूझते हुए प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के नेतृत्व को मजबूत करने के लिए सबसे पहले प्रदेश अध्यक्षों को बदला। अनुसूचित जनजाति के प्रदेश अध्य़क्ष अजय शाह के स्थान पर रामू टेकाम तो अनुसूचित जाति के प्रदेश अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी को हटाकर प्रदीप अहिरवार को जिम्मेदारी दी। अनुसूचित जाति के युवाओं के संगठन जयस के साथ चर्चाएं कीं क्योंकि उनका साथ कांग्रेस को 2018 में मिला था। हालांकि जयस संगठन को बांटने का काम शुरू हो चुका है जिसका नुकसान कांग्रेस को ही होगा। पेसा एक्ट के भाजपा के दावा को गलत बताने के लिए इन आदिवासियों के नेताओं को आगे कर कांग्रेस ने समाज को बताने का प्रयास किया कि पेसा एक्ट तो कांग्रेस की दिग्विजय सरकार लाई थी परंतु भाजपा ने एक्ट के ऐसे नियम बना दिए हैं जो पेसा एक्ट की मंशा को पूरी नहीं कर पाएंगे। कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के लोगों को साथ पाने के लिए हाल ही में भोपाल में सम्मेलन किया था। इसी तरह पिछले दिनों ओबीसी सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें कांग्रेस के ओबीसी नेता अरुण यादव, यादवेंद्र सिंह यादव, अशोक सिंह, पूर्व मंत्री हर्ष यादव, संजय यादव जैसे नेता मौजूद थे। अरुण यादव ने कमलनाथ को बिना शोरशराबे या कार्यक्रम के 27 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर सराहना की और भाजपा पर आरोप लगाया कि उसने इसे छीन लिया। वहीं, अब सरकार बनने पर भागीदारी का ध्यान रखने की मांग भी रख।
सपा, आजादपार्टी, आरएलडी की नजर भी एमपी पर
विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो ओबीसी, एससी-एसटी के वोटों को देखते हुए अब फिर समाजवादी पार्टी, आजाद समाज पार्टी, आरएलडी और ओबीसी महासभा भी सक्रिय हो गई हैं। सपा जहां मध्य प्रदेश में करीब 25 साल से चुनावी राजनीति करती रही है तो आजाद समाज पार्टी ने भी हाल ही में भोपाल, शाजापुर और अन्य जगहों पर सभाएं कर बिगुल बजा दिया है। ओबीसी महासभा तो ओबीसी ही नहीं बल्कि एससी-एसटी को साथ में लेकर राजनीतिक दलों पर अपनी हिस्सेदारी के लिए कई बैठकें भी कर चुके हैं। अब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, आरएलडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और ओबीसी महासभा की राष्ट्रीय कोर कमेटी के सदस्य लोकेंद्र गुर्जर की इंदौर में हाल ही में संयुक्त बैठक हो चुकी है।
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