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मध्य प्रदेश चुनाव मैदान में 20 साल में बढ़ीं 79 पार्टियां, अब और बढ़ने के संकेत

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं जिसके लिए राजनीति में किस्मत आजमाने वाले एकसमान विचारधारा वाले लोगों के समूह दलों के रूप में फिर सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं। एमपी में 2003 में सत्ता परिवर्तन से लेकर आज तक चार विधानसभा चुनाव हुए हैं जिनमें चुनावी दंगल में किस्मत आजमाने वाले राजनीतिक दलों की संख्या 40 से बढ़कर 119 पहुंच गई है और अब 2023 में कई लोगों के समूह चुनाव में उतरने का मूड बना रहे हैं। आईए इस रिपोर्ट में आपको बताते हैं कि 2003 से 2018 तक किस तरह राजनीतिक दलों की सख्या घटी-बढ़ी और उसका राष्ट्रीय राजनीतिक दलों पर किस तरह असर पड़ा।
मध्य प्रदेश में 2003 में दिग्विजय सरकार को परास्त करने के लिए भाजपा ने अपनी फायर ब्रांड महिला नेता उमा भारती के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। तब चुनाव में 40 राजनीतिक दलों ने मैदान में अपने-अपने प्रत्याशियों को उतारा था। तब छह राष्ट्रीय दल भाजपा, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी और राज्य राजनीतिक दल के रूप में नौ दलों सीपीआई एमएल, एफबीएल, जेडी एस, जेडी यू, आरजेडी, आरएलडी, आरएसपी, शिवसेना, सपा के साथ 25 पंजीकृत दलों ने अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था। इसके बाद 2008 में यह संख्या 54, 2013 में 66 और 2018 में यह 119 पहुंच गई। 2008 में राष्ट्रीय राजनीतिक के रूप में आरजेडी चुनाव मैदान में उतरी जो 2003 में राज्य राजनीतिक दल के तौर पर चुनाव लड़ी थी लेकिन 2013 में फिर आरजेडी मध्य प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ी।
भाजपा की जनसंघ के नाम पर उतरेंगे प्रत्याशी
बीते विधानसभा चुनावों की भांति इस बार फिर एकसमान विचारधारा के लोग अलग दलों के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। किसी समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा को लेकर राजनीतिक मैदान में सक्रिय रहने वाले जनसंघ का नाम इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दिखाई देगा। जोरशोर के साथ जनसंघ ने मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने की ऐलान किया है। इसमें मध्य प्रदेश के जुझारू कर्मचारी नेता रहे अखिल भारतीय क्षत्रिय महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है और उन्हें मध्य प्रदेश सहित चार राज्यों का प्रभारी बनाया है। वे चुनाव वाले राज्यों में जनसंघ के संगठन को मजबूत करने जा रहे हैं। इसी तरह पिछले दिनों आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ तीन दिन तक आंदोलन करने वाली करणी सेना ने चुनाव में अपने लोगों को उतारने का ऐलान किया था। इसी तरह ओबीसी महासभा भी विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी कर रही है।
राज्य व पंजीकृत राजनीतिक दल वोट काटकर जीत-हार पर डालते रहे हैं असर
चुनाव में एक-दो प्रतिशत का वोट हार-जीत पर काफी असर डालता है और इसका असर 2018 के चुनाव में दिख चुका है। तब कांग्रेस को दशमलव 13 फीसदी कम वोट मिलने के बाद भी उसकी सरकार बन गई थी। तब राज्य के राजनीतिक दलों व पंजीकृत दलों ने 5.69 फीसदी वोट लिए थे। राज्य व पंजीकृत दलों के वोट का प्रभाव 2008 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा देखने को मिला। तब राज्य के राजनीतिक दल के रूप में चुनाव मैदान में जमा पार्टियों के प्रत्याशियों ने 2.73 तो पंजीकृत दलों के उम्मीदवारों ने 9.47 फीसदी वोट हासिल किए थे। ऐसे में इस बार अगर पंजीकृत दलों की संख्या और बढ़ती है तो विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने में कांग्रेस व भाजपा दोनों को ही इनके प्रत्याशियों पर नजर रखना होगी।
आप भी अपना वोट बढ़ाएगा
दिल्ली में लगातार दो बार औऱ पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भी इस बार मध्य प्रदेश में कुछ प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रह सकती है क्योंकि सिंगरौली नगर निगम चुनाव में उसने भाजपा-कांग्रेस दोनों को पटखनी दी है।
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