मंत्री बनने के बाद जमीन छोड़ने वाले MLA संकट में, BJP-कांग्रेस को तलाशने होंगे नए चेहरे

मध्य प्रदेश में अब दस महीने का वक्त विधानसभा चुनाव का बचा है लेकिन अभी भी भाजपा-कांग्रेस में मौजूदा विधायकों में से ज्यादातर ऊहापोह की स्थिति में है क्योंकि ऐसे एमएलए ने विधायक बनने या मंत्री बनने के बाद जमीन छोड़ दी थी। ऐसे लोग या तो क्षेत्र में होने के बाद भी अपने लोगों से ही घिरे रहे या फिर क्षेत्र के विकास की तरफ उन्होंने वैसा ध्यान नहीं दिया जिसकी लोगों को उनसे उम्मीद थी। यही वजह से आज शिवराज मंत्रिमंडल के 40 फीसदी तो कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे 60 फीसदी विधायक आज चुनाव हो जाएं तो उनकी हार को सुनिश्चित माना जा रहा है।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा और कांग्रेस पार्टियां जीतने वाले प्रत्याशियों की तलाश के लिए सर्वे करा रही हैं। इन चुनाव पूर्व सर्वे में दोनों ही पार्टियों के लिए चिंता का विषय बन गया है कि उनके मौजूदा विधायकों में से 50 फीसदी की स्थिति कमजोर बताई जा रही है। भाजपा में तो शिवराज मंत्रिमंडल के चालीस फीसदी मंत्रियों को टिकट दिए जाने पर उन्हें मतदाता सबक सिखा सकते हैं जिनमें से कांग्रेस छोड़कर भाजपा में पहुंचे विधायक भी शामिल हैं। ये विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद एक उपचुनाव का सामना कर चुके हैं जिसमें उनकी अच्छे मतों के अंतर से जीत भी हुई थी लेकिन इसके बाद भी आज पौने तीन साल में वे चुनाव मैदान में वैसे खरे नहीं उतर सकते हैं जैसे विधानसभा चुनाव 2018 व उपचुनाव में उतरे थे।
दमखम वाले नजर आ रहे एमएलए भी हो सकते हैं खोखले साबित
विधानसभा चुनाव 2023 में कई ऐसे मौजूदा मंत्री-विधायकों को अपने आवरण के कारण पटखनी खाना पड़ सकती है जिसके लिए अभी वे तैयार नहीं दिखाई दे रहे हैं। ऐसे मंत्री-विधायकों में महेंद्र सिंह सिसौदिया, कमल पटेल, डॉ. प्रभूराम चौधरी, विश्वास सारंग, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और हरदीप सिंह डंग, हरिशंकर खटीक, केपी त्रिपाठी, राजेंद्र शुक्ल, शरदेंदु तिवारी, संजय शाह, पारसचंद्र जैन के नाम प्रमुख रूप से चर्चा में हैं। अगर ये नेता दिखावे की राजनीति से बाहर नहीं निकले तो विधानसभा चुनाव में इन्हें बड़ा खामियाज भी उठाना पड़ सकता है।
कांग्रेस में भी कम नहीं दिखावे की राजनीति
विधानसभा में सत्ता मिलने और उसके बाद फिर विपक्ष में बैठने की स्थिति बनने के बाद भी कांग्रेस के कई नेताओं को सबक नहीं मिला है। आज भी वे मंत्रियों जैसी ही ठसक रखते हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम पीसी शर्मा, विजयलक्ष्मी साधौ, कमलेश्वर पटेल, तरुण भनोट, प्रियव्रत सिंह के नाम गिनाए जाते हैं। वैसे कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे बाला बच्चन, हुकुमसिंह कराड़ा, सुखदेव पांसे, लखन घनघोरिया, हर्ष यादव, लाखन सिंह यादव की स्थिति विधानसभा चुनाव 2018 की तुलना में आज कमजोर नजर आती है। वैसे कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण सिंह कांग्रेस के 54 मंत्री-विधायकों के सर्वे रिपोर्ट में कमजोर स्थिति का खुलासा कर ही चुके हैं।

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